Wednesday, September 22, 2010

maa

लोरी गा मैं सो जाऊं .उन यादों में खो जाऊं
जिसमे सपने सच्चे थे माँ हम कितने अच्छे थे
माथे पर काला टीका बिन उसके बचपन फीका
नज़र कहीं न लग जाये तेरा यही सलीका था
माथा फिर सहला दे माँ चैन भरा जीवन पाऊँ. लोरी गा मैं सो जाऊं.
गलती जितनी बार करूँ उतना ही हर बार डरूं
गुस्सा तेरा सह जाऊं तुझसे लिपट-लिपट जाऊं
गुस्सा फिर दिखला दे माँ मैं न कहीं भटक जाऊं.लोरी गा मैं सो जाऊं .
माँ मैं तबसे भूखा हूँ जबसे तुझसे रूठा हूँ
सब कुछ मेरे पास मगर कुछ खाली कुछ टूटा हूँ
फिर एक बार खिला दे माँ भूखा कहीं न रह जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं .
मुझको नींद नहीं आती माँ मुझको डर लगता है
सालों साल नहीं सोया सूरज रोज निकलता है
थपकी मुझे लगा दे माँ मैं सुकून से सो जाऊं. लोरी गा मैं सो जाऊं.-ललित

Friday, September 10, 2010

hifazat

कभी पढ़ते हैं हम गीता कभी कुर-आन पढ़ते हैं
इबादत में कभी रोज़ा कभी नौरात रखते हैं
यही अरदास है रब से हमें रखे हिफाज़त से
रहे कायम अमन दुनिया में ये फ़रियाद करते हैं - ललित