Wednesday, December 19, 2012

तर्क और मौन -



तर्कों की दुनिया में चुप  रहने वाले अक्सर गुनहगार साबित कर दिए जाते हैं .-सत्यमेव जयते

Sunday, November 4, 2012

लौटने का इंतज़ार-

जो पन्ने नज़रों से गुज़रे थे कभी
दुबारा  पलटे  न जा सके
मै यह सोच कर उन्हें सहेजता रहा कि  कभी वक़्त मिलेगा
 उनसे रू -बरू होने का
खुद के खोने का .
इसी ख़याल में अक्सर खो जाता हूँ
कि कल जरूर बैठूँगा उनके पास
बिखरी इबादतों को समेट  कर उन्हें खुश कर लूँगा
जिन्दगी जी लूँगा .
मैं उन तक पहुँच तो जाता हूँ पर पकड़ नहीं पाता .
रोज़ देखता हूँ आलमारियों से कोई शिकायत करता है
 पूछता है मेरे लिए वक़्त कब आएगा?
मैं जिन्दगी की तेज़ रफ़्तार में फिर से कल मिलने की बात कह के निकल जाता हूँ .
वो किताब मेरे लौटने का इंतज़ार करती है
वो जिन्दगी मेरे लौटने का ऐतबार करती है .-ललित 

Friday, November 2, 2012

जिन्दगी की गाड़ी जब -जब आउट ऑफ़ कण्ट्रोल होने लगे तब-तब हल्की सी ब्रेक लगा देनी चाहिए.-सत्यमेव जयते 

Saturday, October 27, 2012


Ek achhee rachna kisee achhe shayar kee-



जिन्दा रखता है मगर जीना मुहाल रखता है
मेरा मसीहा भी मेरा कितना ख्याल रखता है..
दिन तो गुजर जाता है पेट से वफा करने मेँ
रात को दिल मगर हजारोँ सवाल रखता है..
लाली चेहरोँ से सियासतदानोँ के टपकती रहती है
धन काला है मगर चेहरोँ को लाल रखता है..
फँसा लेता है सामने आ जाये कोई मछली अगर
छिपा कर अपने वजूद मेँ हर शख्स जाल रखता है..
बूढ़े बाप की दवाई की पर्ची खो जाती है अक्सर
मगर बेटा वसीयत को बहुत सम्हाल रखता है..
माँ ने एक उम्र तक धोयी थी उसकी गन्दगी 'हरमन'
वो माँ के पास जाता है, मुँह पर रुमाल रखता है........

राजनैतिक सुधार-

हिंदुस्तान में आर्थिक सुधारों के बाद समय आ गया है की राजनैतिक सुधारों की बात की जाय . राजनैतिक सुधारों की बात इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राजा (शासक ) के भाग्य से प्रजा (देश )का भाग्य निर्धारित होता है . प्रजा अपने भाग्य और अपनी नियति से खुश नहीं और राजा को अपने आर्थिक सुधारों से फुर्सत नहीं .मसलन आर्थिक सुधार  के लिए  राजा के सभासद अपने-अपने क्षेत्र में विकास निधि की धनराशि  भी उसी व्यक्ति, स्कूल या ठेकेदार को देना पसंद करते हैं जो 40% उन्हें वापस लौटा दे .दाता भी खुश- पाता भी खुश ;दोनों मजे में हैं ,बीच में नाखुश इस देश का भाग्य है .जनता वोटर बनकर धन्य है ,कृतकृत्य है ; इलेक्टर बनने और इलेक्ट हो जाने की उसे फुर्सत भी नहीं है .-सत्यमेव जयते 

Sunday, October 7, 2012

SMS of the week-



कुछ इस  तरह से मैंने अपनी जिन्दगी  को आसान कर लिया -
कुछ से माफ़ी माँग ली और
 कुछ को माफ़ कर दिया .-From -(नवनीत पाण्डे ADM )

Friday, October 5, 2012

Answer of time-

Do not bother if you are answer -less because sometimes only time answers not you.-satyamev jayate 

Wednesday, October 3, 2012

हार -जीत के मायने ?-

ये तो  सच  है कि हार अक्सर कष्टप्रद होती है किन्तु ये जरूरी नहीं कि हर जीत खुशियों से ही  भरी हो . -सत्यमेव जयते 

Friday, August 31, 2012

A SMS-

Boss is always right but always subordinates are also not wrong .-satyamev jayate

sms ऑफ़ द वीक -

रंजिश ही सही दिल को दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

जैसे तुझे आते हैं ' न आने' के बहाने
वैसे ही किसी रोज़ 'न जाने' के लिए आ- (फरहाज़ अहमद फरहाज़ ) 

जैसा मनीष तिवारी ने sms से भेजा .

Tuesday, August 21, 2012

मंहगाई का अर्थशास्त्र-

मंहगाई से आम आदमी त्रस्त है हुक्मरानों  को लगता है कि जो उपभोक्ता भुगतान कर रहा है वह किसानों को मिल रहा है इसलिए किसान को फायदा हो रहा होगा . किन्तु हालात उल्टे  हैं किसान आत्महत्या कर रहे हैं खेती घाटे का सौदा बनती  जा रही है .दरअसल मंहगाई का फायदा दलाल ,ट्रांसपोर्टर एवं बड़े आढ़तिए उठा रहे हैं जो किसान से कम दर पर माल खरीद कर,स्टोरेज कर  ऊँचे दामों पर बेचते हैं ,आंकड़ों की बात करें तो किसान 10-15 रूपये  र्किलो चावल बेचता है और हम 30-35 रूपये में खरीदते  हैं बीच का पैसा किसके पास गया ? इसी तरह टमाटर 3-5 रूपये किलो में किसान के पास से चलता है और 35 रूपये किलो में बिकता है बीच का पैसा कहाँ गया? .शंका हो तो सरकारी मंडी  के रेट देखिये और जिस रेट पर आप सब्जी,आटा ,दाल चावल खरीद रहे हो उस से तुलना करिए .ये है मंहगाई का अर्थशास्त्र .समझ में आया हो तो समझ लेना और हुक्मरानों को भी समझा देना . मजेदार तथ्य यह है कि इस से निपटने का कोई ख़ास कानून भी मौजूद  नहीं है .-सत्यमेव जयते 

Thursday, August 16, 2012

जरूरी तो नहीं -

गिला शिकवा  भी न हो  यार  जरूरी तो नहीं
कभी तुझसे न हो तकरार जरूरी तो नहीं

बेचैन लम्हा, उदास वक़्त व् चेहरे की शिकन
जिन्दगी भर यही त्यौहार  जरूरी तो नहीं

मायने की तलाश और तलाश के मानी
कदम-दर-कदम  इंतजार  जरूरी तो नहीं

तुम्ही थोडा चले आते जरा सी ही तो जहमत थी
 हमी  हरदम रहें लाचार जरूरी तो नहीं

तेरी चौखट पे माथा, मन्नतें ,धागे औ जियारत 
बुढ़ापे में ही हो एतबार  जरूरी तो नहीं

बहुत बहका रहा बातों  में तेरी सब्र करो -सब्र करो
बहला फुसला लोगे हर बार जरूरी तो नहीं

नुख्श हर बार मेरा ये है तसल्ली का सबब
हर बार मैं  ही गुनहगार जरूरी तो नहीं - "ललित"

मुकम्मल जहाँ की तलाश-


अधूरेपन का मसला जिन्दगी भर हल नहीं होता
कहीं आँखें नहीं होतीं कहीं काजल नहीं होता

कहानी कोई भी अपनी भला पूरी करे कैसे
किसी का आज खोया है किसी का कल नहीं होता

अज़ब सी बात है अस्सी बरस की जिन्दगी में भी
 जिसे जिस पल की चाहत है वही एक पल नहीं होता

सभी से तुम लगा लेते हो उम्मीदे वफ़ा लेकिन
लिए पैगाम सावन का हर -एक बादल  नहीं होता -

-(जैसा अरविन्द पाण्डेय उप -जिलाधिकारी हरिद्वार ने sms से  भेजा )

Thursday, August 9, 2012

मेरे सीनियर दीनानाथ द्विवेदी "रंग "(ETO) की एक रचना -

हमें लिख कर किसी लम्हा  कहीं महफूज कर लेना
तुम्हारी याद से देखो निकलते जा रहे हैं हम . -

(अगर पसंद आये तो उन्हें फ़ोन जरूर करें 09935094830)

Tuesday, August 7, 2012

SMS of the week-


Half of sorrows we earn by expecting good things from wrong people and
the other half we earn by searching wrong things in good people. -Satyamev jayate

Friday, July 27, 2012

मंदिर के पाप-


गली मोहल्ले के पाप तो सबको नज़र आ जाते हैं लेकिन मंदिर के पाप आसानी से नज़र नहीं आते .या तो उन्हें छुपा दिया जाता है या नज़रंदाज़ कर दिया जाता है सबकी हिम्मत भी नहीं कि उस पाप को उजागर कर सके . इसके पीछे हमारी वह मान्यता भी है की मंदिर पुण्य -धाम हैं  और पुजारी एक पवित्र व्यक्ति .सेना ,संसद ,न्यायालय ऐसे ही मंदिर थे जिन पर कोई उंगली नहीं उठता था .आज जब ये  मंदिर भी गली मोहल्ले के पाप कमाने  लगे हैं तो समाज भला कब  तक सहन करता .इन जगहों के पाप क्या इसलिए माफ़ किये जा सकते हैं की ये पाप तो मंदिर में हुए हैं ? पाप तो आखिर पाप है वो चाहे गली मोहल्ले में हो या  मंदिर-मस्जिद में .पुजारी और मौलवी का पाप पूरे राज्य को ,पूरे समाज को संकट में डालता है इनके पाप गली मोहल्ले के पाप से ज्यादा खतरनाक हैं .दीवारें पाप नहीं करतीं लेकिन पापी पुजारियों को वे बदल भी नहीं सकतीं उन्हें बदलने के लिए समाज को आगे आना पड़ता है , हिम्मत करनी पड़ती है।-सत्यमेव जयते

Saturday, June 16, 2012

लाख टके का सवाल -

एक लाख की नैनो कार तो आ गयी एक लाख वाला ट्रक्टर कब आएगा ? पॉवर टिलर नहीं एक लाख के ट्रक्टर का सवाल है ! क्या किसान टाटा की नज़र में ज्यादा अमीर है ?-सत्यमेव जयते 

Tuesday, June 12, 2012

सरकारी ऑफिस-

एक फटी सी फोटो -बापू की,
 और सरकारी ऑफिस
जहाँ लिखा था
रिश्वत लेना और देना जुर्म है !-ललित

Saturday, June 9, 2012

सब कुछ जान जाते हैं .-

हम किस से क्या छुपायें लोग सब कुछ जान जाते हैं .
ये परदे खिड़कियों की बात अक्सर मान जाते हैं

हवाएं, रौशनी, खुशियाँ, जरूरत ,हर परेशानी
कमीने आईने दीवार के पहचान जाते हैं

मैं अपने आप से यूँ ही कभी नाराज़ होता हूँ
सयाने दोस्त चेहरे की हकीकत जान  जाते हैं

बड़ी हैं मुश्किलें क्या-क्या छुपाओगे घरौंदे में
इन्ही दालान चौखट से सभी मेहमान जाते हैं .-ललित 

Corruptions in private sectors-

-(few examples) (exceptions are everywhere but all are not in exceptions) series one- Education field- 1-Tuition practices -those who will not join tuition class will suffer ,writing answers during checking of answer sheets (attached with money),capitation fee,Loot fee for numbers in practical (In B.Ed etc.)So many types of fees -like dress fee ,book fee ,Cultural programme fee,annual fee etc...etc 2-Medical Field- (exceptions are everywhere but all are not in exceptions) Medicines guided by MR- MR provides A/C ,Cars etc to Doctors So many tests in medical lab-They (Doctors)get Commissions from these labs. for simple disease like fever,cold etc.You will be admitted in ICU and once admitted you will not be easily discharged from there until you have money in your pocket. (exceptions are everywhere but all are not in exceptions) Rest will be later....

Friday, June 8, 2012

भ्रष्टाचार के प्राइवेट नमूने -
(सीरीज-2)
NGO-(अपवाद हर जगह हैं लेकिन सभी अपवाद नहीं हैं )
गैर सरकारी संगठन जो देश की निष्काम सेवा का दंभ भरते हैं उनमें से कुछ ही धरातल  पर नज़र आते हैं  बाकी कागजों पर चलते हैं और देश-विदेश से प्राप्त अनुदान हज़म करते रहते हैं . लखनऊ -दिल्ली -मुंबई  जैसे किसी एक महानगर की अगर बात की जाय तो हजारों NGO रजिस्टर्ड हैं जिनके बायलाज में सेवा का दावा तो सम्पूर्ण भारत के लिए है लेकिन इनकी सीमा इनके फर्जी कार्यालयों तक ही सीमित है .बहुत से NGO में काम करने वाले नौजवान मनरेगा से भी कम मजदूरी/वेतन  पाते हैं जबकि मालिक अपने  कुत्तों के साथ देश-विदेश की हवाई यात्राएं करते रहते हैं  .जितने NGO / ट्रस्ट हिंदुस्तान में हैं अगर एक-एक गाँव गोद लेते तो इस देश की तस्वीर ही कुछ और होती .(अपवाद हर जगह हैं लेकिन सभी अपवाद नहीं हैं )

Sunday, May 20, 2012

जीना यहाँ -मरना यहाँ ,इसके सिवा जाना कहाँ ?-

     मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है . समाज को सामाजिक संबंधों  का जाल कहा गया है .इन्ही सामाजिक संबंधों की वजह से प्यार है -तकरार है ,नफरत है -शोहरत है , भीड़ है -तन्हाई है ,खुशी है -गम है , सत्कार है -तिरस्कार है ,धर्म है -अधर्म है , मकान  है -दुकान है ,सफलता है -विफलता है वगैरह -वगैरह.....दुनिया के हर कोने में इसकी मौजूदगी है . समाज चैन देता है तो समाज बेचैन भी करता है ,समाज लुभाता भी है समाज डराता भी है . कुल मिलाकर  समाज की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती यह  है कि "समाज जीने भी नहीं देता और समाज के बिना जिया भी नहीं जाता "  .-सत्यमेव जयते

Friday, May 11, 2012

जमूरे-

बहता जिधर प्रवाह जमूरे /
पकड़ उधर की राह जमूरे /
क्रन्दन आंसू सुबकन नकली ,
क्या एक्टिंग है ,वाह जमूरे /
सुबह गालियाँ ,शाम प्रशंसा ,
गिरगिट रहा सराह जमूरे /
बाहर बाहर शीतलता है ,
अन्दर अन्दर दाह जमूरे /
बीबी बच्चे कलह मचाते
और रचा ले ब्याह जमूरे /
इक दुखिया ने देह बेच दी ,
सीता उठी कराह जमूरे

Friday, May 4, 2012

unchai -

जो बहुत ऊंचाई पर होते हैं प्रायः वो उतना ही  ऊँचा सुनते हैं -. सत्यमेव जयते 

Thursday, April 26, 2012

 Sms of the week-
Half of sorrows we earn
by expecting good thing from wrong people
and the other half we earn
by searching wrong thing in good people- satyamev jayate

Friday, April 13, 2012

mobile banking -

In India where about 70% population is living in rural areas bank should mustthink

for mobile banking system .It is possible taking the concept of CBS system and ATM

system together where all transactions are satellite /internet based . This mobile

team mounted on a van may visit on different route in rural area .One area may be

repeated on weekly basis.In this way micro investment may take quantum jump in

India because of maximum participation of women and poor people who otherwise not

in regular touch of banks due to transport or other socio-economic reason.This will

reduce crowd in banks also. -Lalit . (Satyamev jayate )

Sunday, April 8, 2012

लाइफ लाइन नदियाँ-

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार करे हा-हा कार
निस्तब्ध सदा -निस्तब्ध सदा ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?

भूपेन हजारिका का यह गीत पहली बार जब मेरे जूनियर दयाशंकर मिश्र (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पंतनगर विश्वविद्यालय ) ने अपने रेकॉर्डर पर सुनाया तो मैं सिहर गया । इस बात को लगभग १० वर्ष हो चुके हैं गंगा एक्सन प्लान , गंगा रिवर बेसिन एथारिटी वगैरह सारी कसरतों के बावजूद लगातार गंगा और इस देश की बड़ी -बड़ी नदियाँ एक बड़े गंदे नाले में बदलती जा रही हैं । हमने भी नदियों की यही नियति मान ली है कभी-कभार कोई अनशन और हल्ला- गुल्ला होता है तो कुछ देर के लिए खुमारी टूटती है फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है । कोई कहता है जल विद्युत् परियोजनाएं बंद करो , कोई कहता है खनन बंद करो, कोई कहता है कारखाने बंद करो , कोई कहता है ये करो तो कोई कहता वो करो । । इन सारी बातों के बीच एक असली बहस जो नेपथ्य में चली जाती है वो हमारा घरेलू और औद्योगिक प्रदूषण का निहायत अवैज्ञानिक निस्तारण है । शहर से निकलने वाला सारा अपशिष्ट नालियों और सीवर के माध्यम से नदियों में डाला जा रहा है । रोज़ हमारे बदन पे लगने वाला साबुन -शैम्पू ,क्लीनर- कंडीशनर , कपडे धोने वाला डिटर्जेंट , बर्तन को चकाचक करने वाला बार , मोती जैसे दांत बनाने वाला टूथ -पेस्ट का रसायन और घरों का मल-मूत्र लगातार नदियों में डाला जा रहा है । हमें इस बात का अहसास ही नहीं होता क़ि नदियों को गंदे नाले बनाने वाले हम भी हैं क्योंकि हमने कभी सोचा ही नहीं क़ि हमारे घरों का मैल घर से आखिर जाता कहाँ है? बाथ-रूम और ट्वायलेट का पानी घर से बह गया -चिंता ख़त्म . हम यह मान ने को तैयार ही नहीं क़ि हम ही नदियों में थूक रहे हैं मैल बहा रहे हैं और फिर उसी पानी को छान कर बड़े आनंद से पी रहे हैं । मजेदार तथ्य यह है क़ि सोखता लेट्रिन हटाकर नगर निकाय और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा सीवर पाइप बिछाए जा रहे हैं जिससे क़ि बाकी बचे घरों के मल-मूत्र नदियों में डाले जा सकें ,तर्क यह क़ि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटहै न सफाई के लिए। जबकि असलियत यह है क़ि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ हमको -आपको दिलासा देने के लिए हैं गंदे पानी को शुद्ध कर देना इनके बूते से बाहर है और कई तो सालों से बंद पड़े हैं . हम सोख्ता लेट्रिन से थर्मल एंड बर्न डिस्पोजल पर न जाकर सीवर सिस्टम पर चले गए और जो कुछ भी गन्दा था ,कचरा था ,आँखों को ख़राब लगता था - नदी के हवाले कर दिया । कुछ नदियाँ सौभाग्यशाली हैं क़ि उनके किनारे कोई शहर नहीं हैं या एक-दो शहर ही हैं इनमे एक नदी चम्बल भी है जो इटावा तक अपना वजूद बनाये रखती है लेकिन जैसे यमुना में मिलती है वह भी दम तोड़ देती है उसकी ऑक्सीजन तुरंत घट जाती है । बिजली पूरे देश को चाहिए - -१० किलोमीटर सुरंग मेंनदी के बहने से उसका पानी नहीं घट जाता,खनन पूर्णतया बंद होगा तो गाद जमने से बाढ़ आ जायेगी । इन दोनों से नदियां उतनी नहीं मर रही हैं जितना कारखानों और घर के अपशिष्ट से । विकास चाहिए तो कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन क्रीम वाली रासायनिक जीवन शैली और गलत नीतियों की कीमत चुकाने आसमान से कोई नहीं आएगा । इसलिए शुरुआत घर से हो तो बेहतर -कल नहाने के बाद अपने घर की नाली से बहने वाले रसायनों और नदी में गिरने वाले नालों पर नज़र जरूर डालियेगा ,हो सकता है अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगे । प्रोफ़ेसर अग्रवाल और आचार्य नीरज मिश्र "क्रांतिकारी "का अनशन और पदयात्रा तब तक गंगा व् अन्य नदियों को मरने से नहीं बचा सकती जब तक हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से बचता रहेगा । बालकवि बैरागी की इन पंक्तियों से हम कुछ सीख सकें तो बेहतर-
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो,
संग्राम यह घनघोर है कुछ मैं लडूं कुछ तुम लड़ो ॥ -ललित

Monday, April 2, 2012

मंत्र-

आज का sms-

एकमात्र सुविधाएँ ही यदि योग्यता का पर्याय होतीं तो-
लाइब्रेरियन दुनिया के सबसे बड़े विद्वान होते . -सत्यमेव जयते

Saturday, March 31, 2012

अदम गोंडवी जी को समर्पित-



इधर
जीने की कशमोकश उधर गुलशन गुलाबी है

हकीकत है क़ि हिन्दोस्तान में अब भी नवाबी है

तड़पती है यहाँ जनता न रोटी है न पानी है

उधर काजू भरी महफ़िल शराबी है कबाबी है .-ललित

Friday, March 30, 2012

क्या समझे -

एक प्यारा sms -

इस बात को समझने में सारी उम्र गुजर जाती है
क़ि
हर बात को समझना जरूरी नहीं होता

कहाँ आप - कहाँ हम -

कहाँ आप - कहाँ हम ; कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

आप तो हुजूर हैं सरकार हैं।
बाग़ की रौनक हैं सदा बहार हैं।

सुनते हैं- दिल्ली में गद्दी गई है जम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम?

जनहित में कराते सदा यज्ञ -जाप,
सैकड़ों के मसीहा लाखों के माई बाप।

आप किसी अवतार से बिलकुल नहीं हैं कम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

आपको कष्ट दूँ यह मुझे भाया नहीं,
यही सोच आपके दरवार में आया नहीं।

आपके तो चाकर भी पीते हैं विदेशी रम ।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

शीशे के गलियारे में आप हैं पत्थर,
आप की दुक्की इक्के को करे सर।

आपसे टकराने की किसमें है दम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

- स्व.कवि अशोक अम्बर इटावा

Thursday, March 29, 2012

आ अब लौट भी चलें-


ढलने लगी है शाम , आ अब लौट भी चलें ;
घर भी है इक मुकाम, आ अब लौट भी चलें ॥

हम ही थे सिकंदर, कलंदर भी हमी थे ;
अब खुद में हैं गुमनाम, आ अब लौट भी चलें॥

जम्हूरियत का जश्न है, खैरात बंटेगी ;
गफलत में है अवाम, आ अब लौट भी चलें॥



पलकों में छुपा लूँ , या आँखों में बसा लूँ ;
दिल को भी दें आराम, आ अब लौट भी चलें॥

खामोश है कुल शहर, कहीं हादसा हुआ ;
बस्ती में है कोहराम , आ अब लौट भी चलें ॥

मिलते थे खुद से रोज़, खुदा से कभी -कभी ;
अब खुद में हैं तमाम, आ अब लौट भी चलें ॥

सजदा भी कर लिया , इबादत भी हो गयी;
मुझ में था मेरा राम, आ अब लौट भी चलें ॥

पूनम की चांदनी मेरे घर आ के सो गयी ;
सबको मेरा सलाम, आ अब लौट भी चलें ॥ -ललित

Thursday, March 22, 2012

तो अच्छा था -

आपकी खिदमत में पेश है एक मुक्तक -

भला अहसास हो हम में चरागों को जलाने का
फ़साने इस हकीकत में बदल जाते तो अच्छा था
सियासी मजहबी बातें गिरातीं आशियानों को
किसी मजलूम की खातिर मकाँ बनते तो अच्छा था । -ललित

Sunday, March 18, 2012

हरीश दरवेश जी की रचना-

मुहब्बत की शराफ़त की ख़ुशी की बात करता है ।
ये पगला राम जाने किस सदी की बात करता है ।

भरम होता है जैसे रात मे सूरज निकल आया ।
महल वाला कभी जब झोपडी की बात करता है ।

अगर बढती नही लडती नही तो और क्या करती ।
समन्दर कब किसी ठहरी नदी की बात करता है ।

उसे भगवान ही शायद निकालेगा अँधेरोँ से ।
हमेशा जो परायी रोशनी की बात करता है ।

वो ख़ुद ही एक दिन मे घूँट जाता है कई नदियाँ ।
तू जिससे आस रख कर तिश्नगी की बात करता है ।

मुर्गा -

सरकारी महकमे में अफसर और बाबुओं को मुर्गे की तलाश बेसब्री से रहती है । जिस दिन मुर्गा नहीं मिलता वो दिन मनहूस माना जाता है । आप समझ गए होंगे क़ि किस मुर्गे की बात हो रही है ! ये वे आम लोग हैं जिनका काम दफ्तरों में तब तक लटकाया जाता है जब तक वो आकर कुछ खर्चा पानी न दे दें । मुर्गों की यह बानगी आपको ऐ जी ऑफिस और शिक्षा निदेशालय तथा राजधानी स्थित सचिवालय और निदेशालयों में आसानी से देखने को मिल सकती है । यहाँ बहुत कम स्टाफ घर से खाना खा कर आता है क्योंकि मुर्गा है न खिलाने के लिए । जो भी मुर्गा आता है उसको बाबू पास के होटल या ढाबे पर यह कह कर ले जाता है क़ि -चलो चाय पी कर आते हैं। इस बाबू के साथ उसके आठ - दस मित्र भी होते हैं जो होटल पर जमकर माल उड़ाते हैं और सैकड़ों रुपये के बिल का भुगतान वो मुर्गा करता है जो साथ में चाय पीने गया होता है । इसके अलावा वो मुर्गा अपने इस तारनहार बाबू को कुछ नजराना देता है तब जाकर उसका काम होता है और चलते - चलते इस मुर्गे पर बाबू अपना अहसान लादते हुए बोलता है "तुम्हारा काम बिलकुल भी होने वाला नहीं था अगर मै प्रयास न करता, मै ही जानता हूँ क़ि मैंने किस तरह फाइल पास करवाई है "। मुर्गा अपनी किस्मत को सराहता और बाबू की सज्जनता का गुणगान करता हुआ घर चला आता है और अगले मुर्गे को हलाल होने के लिए उस सज्जन बाबू का पता बता देता है .-सत्यमेव जयते

Friday, March 16, 2012

"No dream too big " -


"No dream too big "यह पञ्च लाइन जे पी ग्रुप की है इस वाक्य की वास्तविकता मैंने तब महसूस की जब मैंने इस कम्पनी के vishnugad hydro प्रोजेक्ट का २००९ में भ्रमण किया । मै यह देख कर आश्चर्यचकित रह गया कि बाहर से ऊबड़ खाबड़ दिखने वाले पहाड़ के अन्दर एक विशालकाय विद्युत् फैक्ट्री चल रही है (जैसा फिल्मों में दिखाते हैं ) , उसका सञ्चालन उसी पहाड़ के अन्दर स्थित ६ मंजिला कण्ट्रोल रूम से होता है । जे पी गौड़ इस ग्रुप के संस्थापक हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग की एक छोटी सी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर कुछ नया करने की सोची . वे चाहते तो वो भी अपने बाकी साथियों की तरह बुढ़ापे में भीखनुमा पेंशन का इंतजार करते । उन्होंने देश को कई प्रोजेक्ट दिए, लाखों को रोज़गार दिया । . मैं उन्हें नहीं जानता ,न ही उनसे मिला हूँ । राजनीतिक पहुँच के चलते वो कतिपय विवादों में जरूर रहे किन्तु उनकी पञ्च लाइन "No dream too big" लोगों की चेतना को झकझोरती है देश के लिए बड़े सपने देखने को मजबूर करती है।-ललित

Wednesday, March 14, 2012

बंधन और जीवन मुक्ति -


जीवन मुक्त होने के लिए ही बना है बंधन तो हम स्वयं बनाते हैं । बंधन अच्छा हो तो आनंद लेते हैं और पीड़ा दायक हो तो परेशान होते हैं और भाग्य को दोष देते हैं ।मुक्ति में भाग्य और कर्म का अद्भुत संयोग है . भाग्य और कर्म का अंतर कुछ इस तरह है जैसे किसी बंद अंधेरे कमरे में ,जिसमे एक ही दरवाजा हो, किसी को छोड़ दिया जाय और कहा जाय क़ि प्रयास करके बाहर निकलो । दरवाजा पास में होने के बावजूद किसी को पूरे कमरे का चक्कर लगाना पड़ सकता है तो किसी का पहला कदम ही दरवाजे की तलाश पूरी कर सकता है अर्थात किसी को ज्यादा समय लगेगा तो किसी को कम -यह भाग्य है . लेकिन इतना निश्चित है क़ि जो चलेगा उसको ही दरवाजा मिलेगा -यह कर्म है । बंधन और जीवन मुक्ति के बीच की दूरी इससे ज्यादा नहीं हो सकती । -सत्यमेव जयते

Monday, March 12, 2012

दोस्ती से बड़ी दुश्मनी -

दुश्मन बनाने में दोस्ती करने की अपेक्षा ज्यादा सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि यदि बड़े से दुश्मनी की तो उसके स्तर तक उठना पड़ेगा और छोटे से की तो उसके स्तर तक गिरना पड़ेगा । - सत्यमेव जयते

Friday, March 9, 2012

चार लोग -

एक प्यारा sms -
मै उन चार लोगों को मुद्दत से ढूंढ रहा हूँ
जिनको मेरी निजी जिन्दगी में इतना ज्यादा इंटेरेस्ट है क़ि
घर वाले हमेशा बोलते हैं क़ि "चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?"

Thursday, March 1, 2012

पंख से कुछ नही होता हौंसलों से उडान होती है-

मात्र 20 मि‍नट की यह विडियो क्लिप सुजान सिंह नामक उस वि‍कंलाग व्‍यक्‍ि‍त की है जि‍सने यह साबि‍त कर दि‍खाया है कि‍ पंख से कुछ नही होता हौंसलों से उडान हुआ करती है। (जरूर देखें कि‍सी की जि‍न्‍दगी बदल सकते है आप)
1; यह वीडि‍यो उन दोस्‍तो के लि‍ये जि‍न में समाज के लि‍ये कुछ कर गुजरने का जज्‍बा है।
2। यह वीडि‍यो उन दोस्‍तो के लि‍ये भी जो दि‍न भर फेसबुकि‍या बेचैनी के शि‍कार रहते है।
3; और उन लोगो के लि‍ये भी (खेद सहि‍त) जो यह मानते है कि‍ देश में कुछ नही हो रहा ओर कुछ हो भी नही सकता।
साभार -
आकाशदीप फि‍ल्‍म्‍स एवं राष्‍टीय साक्षरता मि‍शन

Monday, February 27, 2012

जिन्दगी जिंदाबाद -


जिन्दगी भर हम प्रायः कोई न कोई बोझ ढोते रहते हैं । कुछ बोझ शारीरिक होते हैं तो कुछ मानसिक । शारीरिक बोझ उतने खतरनाक नहीं होते जितने क़ि दिमागी । दिमाग अक्सर किसी न किसी बोझ को ढोता रहता है कभी कैरियर का बोझ तो कभी बैरियर का बोझ , कभी देश का बोझ कभी शेष का बोझ , कभी अपना बोझ तो कभी पराया, बोझ ही बोझ . ये बोझ जिन्न की तरह चढ़ते हैं तो उतरने का नाम ही नहीं लेते । अधिकांश समय इन की चिंता में व्ययतीत होता है .कभी -कभी तो हम इसके आदी हो जाते हैं . बोझ नहीं तो कुछ खाली-खाली सा लगता है .यह जानते हुए क़ि सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होने वाला लेकिन संतोष इस बात का रहता है क़ि हम किसी बात को गंभीरता से ले रहे हैं दिमागी बोझ मजा देता रहता है .इस सुखद अहसास के भ्रम बोझ से हमेशा से जुड़े रहे हैं । बोझ का अहसास सुखद भी है और दुखद भी । बोझ सचेत करता रहे तो कारगर और अचेत करता रहे तो सितमगर होता है लेकिन एक राज की बात यह है क़ि -
"बोझ कितना भी आकर्षक और खूबसूरत क्यों हो यदि असहनीय हो जाय तो उसे फेंक देना चाहिए ।"- सत्यमेव जयते

Saturday, February 4, 2012

क्रांति भट्ट -एक द्रष्टा

जर्नलिज्म एक पेशा ही नहीं वरन धर्म भी है . कुछ तो इसे मोहरे के रूप में प्रयोग करते हैं तो कुछ लोग इसे नयी ऊचाइयां देते हैं क्रांति भट्ट एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने पत्रकारिता के नए मानक तय किये . वे जब लिखते हैं तो मुद्दे में जान डाल देते हैं ,प्रायः उनकी लिखी स्टोरी बीच के पन्नों से उछल कर फ्रंट पेज पर लग जाती है । अभी हाल ही में नेपाली बच्चे के ऊपर लिखी रिपोर्ट ने लोगों को झकझोर दिया । इस बच्चे की चाय बांटते हुए फोटो को खींचने वाला उनका प्यारा छोटू उर्फ़ नवीन परमार है .बताते चलें क़ि तिलक नाम के इस नेपाली बच्चे को हार्निया की बीमारी के कारण उसका बाप तिलक का इलाज कराने भारत लाया था . डाक्टरों ने बताया क़ि इलाज में हजारों रूपये लगेंगे .तिलक के मजदूर बाप के पास इतने पैसे नहीं थे । निराशा में बाप बेटे एक दूसरे का हाथ बंटाने लगे । रोटी का सवाल सुलझ नहीं पा रहा था इलाज कहाँ से कराते। अचानक क्रांति भट्ट की रिपोर्ट इस निराश जिन्दगी में एक रोशनी लाती है
इस रिपोर्ट के बाद हजारों हाथ उस मासूम की मदद को उठ गए यह वही समाज है जिसके बारे में हम मानते हैं क़ि यह कभी नहीं बदलेगा इस समाज को क्रांति भट्ट जैसे पत्रकार एक नयी दिशा देते हैं क्रांति भट्ट भी चाहते तो अन्य मीडिया वालों की तरह ब्रेकिंग न्यूज़ प्रसारित कर सकते थे क़ि "देखिये बीमार बच्चे का शोषण हो रहा है शासन प्रशासन मौन है समाज संवेदन हीन होता जा रहा है ..आदि -आदि "। क्रांति भट्ट ने वह सब कुछ कहा जो कहना चाहिए , लेकिन एक जुदा अंदाज़ से -नतीजा- उस बच्चे की मदद करने को बहुत से लोग सामने आ गए । लखनऊ विश्ववद्यालय से डिग्री प्राप्त भट्ट जी बहुत ही भावुक बुद्धिजीवी हैं जिनकी सतर्क निगाह समाज की दिशा और दशा पर होती है । ये समाज को आईना नहीं दिखाते आरोप नहीं लगाते ,वरन दिशा देते हैं, मार्गदर्शन करते हैं । अपनी ही मस्ती में जीने वाले क्रांति भट्ट का फक्कडपन देख कर आश्चर्य होता है .जेब में पैसे हों या न हों लोगों की मदद को तत्पर रहते हैं । इस बात की चिंता नहीं क़ि घर कैसे चलेगा ।
"क्रांति भट्ट" भले ही गोपेश्वर जैसी छोटी जगह पर काम करते हों लेकिन मीडिया जगत की तमाम नमी -गिरामी हस्तियाँ भी उन्हें "सर" कहती हैं । उनका दिमाग हमेशा किसी न किसी मुद्दे को लेकर उधेड़ बुन में रहता है । लोग उन्हें सनकी भी कहते है और अपनी इसी सनक और फक्कड़ मिजाजी की वजह से क्रांति भट्ट पत्रकारिता जगत की क्रांति के सूत्रधार बन जाते हैं । क्रांति भट्ट से यदि आप बात करना चाहते हों तो डायल करें - ९४११७३७६५८ । -ललित

Friday, February 3, 2012

विपश्यना

विपश्यना भारत की प्राचीन ध्यान पद्द्यति है जो हमारे ऋषियों द्वारा खोजी गयी थी । धीरे-धीरे यह ध्यान विद्या भारत से विलुप्त हो गयी । तिब्बत एवं बर्मा के साधकों ने जो इसे भारत से सीख कर अपने देश ले गए थे गुरु शिष्य परंपरा के द्वारा इसे जीवित रखा । ये विद्या फिर से भारत लौटी । इस ध्यान विद्या को फैलाने में सत्यनारायण गोयनका ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । मैंने इसके १० दिवसीय शिविर में प्रतिभाग किया है मेरा अनुभव बहुत ही सुखद रहा है .स्वयं को जान ने का यह एक बेहतरीन माध्यम है जो मनुष्य की अपार संभावनाओं के द्वार खोलता है । अनुभव अवर्णनीय है ज्यादा क्या कहूँ कुछ चीजें अनुभव से ही समझी जा सकती हैं । विस्तृत विवरण के लिए क्लिक करें-
http://www.vridhamma.org/

Saturday, January 28, 2012

वसंत

वसंत पंचमी की शुभकामनाएं -

आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार-बार
प्राची पशचिम भू नभ अपार
सब पूंछ रहे हैं दिग -दिगंत
वीरों का कैसा हो बसंत
वीरों का कैसा हो बसंत?- "सुभद्रा कुमारी चौहान"

Friday, January 27, 2012

आवाहन

घिरने लगीं घटायें छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुंवा सा
कोई मुझे बता दे क्या आज हो रहा है, मुख को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है
निस्तेज है हिमालय गंगा डरी हुई है, निस्तब्धता निशा की दिल में भरी हुई है
उन्माद बेकली का उत्थान मांगता हूँ,विस्फोट मांगता हूँ तूफ़ान मांगता हूँ -रामधारी सिंह "दिनकर जी"

Sunday, January 15, 2012

नेति-नेति

मै क्या हूँ -मै क्या करूँ?
मै प्रोफ़ेसर नहीं क़ि गुटबाजी करूँ
मै ब्रोकर भी नहीं क़ि सट्टे बाज़ी करूँ
मै पत्रकार भी नहीं क़ि ब्रेकिंग न्यूज़ प्रसारित करूँ
मै इंजीनियर भी नहीं क़ि किसी बिल्डिंग के नीचे तुम्हे दफ़न कर दूँ
मै क्या हूँ -मै क्या करूँ?

मै डाक्टर नहीं क़ि तुम्हारी किडनी बेच डालूं
मै मास्टर नहीं क़ि टयूसन न करने वालों को फेल कर डालूं
मै एम बी ऐ भी नहीं क़ि टाई लगा कर साबुन बेच डालूं
और मै बिल्डर भी नहीं जो तुम्हारी खेती उजाड़ डालूं
मै क्या हूँ -मै क्या करूँ?

मै नेता नहीं जो तुमसे कमीशन वसूलूं
मै अभिनेता नहीं जो तुम्हारे जज्बातों से खेलूं
मै गुंडा भी नहीं जो तुमसे हफ्ता वसूलूं
मै व्यापारी भी नहीं जो तुम्हे मिलावटी ढंग से तौलूं
मै क्या हूँ -मै क्या करूँ?

मै वकील नहीं जो तुम्हे कचेहरी में यमलोक दिखा सकूँ
मै अधिकारी भी नहीं जो तुम्हारी चमड़ी नोच सकूँ
मै कर्मचारी भी नहीं जो घूस के लिए तुम्हारी फाइल दबा सकूँ
मै कथा वाचक भी नहीं जो चैनलों पर तुम्हे बरगला सकूँ
मै विद्वान् भी नहीं क़ि हर बात पर अकड़ सकूँ
मै क्या हूँ -मै क्या करूँ?

सुना है मुझे तुम आम आदमी कहते हो
जिसे न अपना फेस पता है न अपनी बुक
तुम्हारी फेसबुकिया बेचैनी को जानकर तसल्ली हुई
सोचता हूँ उसे सत्तू में डालकर चटनी के साथ खाऊंगा
सदियों की भूख मिटाऊंगा -
और धन्य हो जाऊंगा -"ललित "

Sunday, January 8, 2012

कैलाश गौतम की रचना -कचहरी -

भले डांट घर में तू बीबी की खाना
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी न जाना
कचहरी न जाना

कचहरी हमारी तुम्हारी नहीं है
कहीं से कोई रिश्तेदारी नहीं है
अहलमद से भी कोरी यारी नहीं है
तिवारी था पहले तिवारी नहीं है

कचहरी की महिमा निराली है बेटे
कचहरी वकीलों की थाली है बेटे
पुलिस के लिए छोटी साली है बेटे
यहाँ पैरवी अब दलाली है बेटे

कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही जिन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चुमतें है

कचहरी में सच की बड़ी दुर्दशा है
भला आदमी किस तरह से फंसा है
यहाँ झूठ की ही कमाई है बेटे
यहाँ झूठ का रेट हाई है बेटे

कचहरी का मारा कचहरी में भागे
कचहरी में सोये कचहरी में जागे
मर जी रहा है गवाही में ऐसे
है तांबे का हंडा सुराही में जैसे

लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है

कचहरी शरीफों की खातिर नहीं है
उसी की कसम लो जो हाज़िर नहीं है
है बासी मुहं घर से बुलाती कचहरी
बुलाकर के दिन भर रुलाती कचहरी

मुकदमें की फाइल दबाती कचहरी
हमेशा नया गुल खिलाती कचहरी
कचहरी का पानी जहर से भरा है
कचहरी के नल पर मुवक्किल मरा है

मुकदमा बहुत पैसा खाता है बेटे
मेरे जैसा कैसे निभाता है बेटे
दलालों नें घेरा सुझाया -बुझाया
वकीलों नें हाकिम से सटकर दिखाया

धनुष हो गया हूँ मैं टूटा नहीं हूँ
मैं मुट्ठी हूँ केवल अंगूंठा नहीं हूँ
नहीं कर सका मैं मुकदमें का सौदा
जहाँ था करौदा वहीं है करौदा

कचहरी का पानी कचहरी का दाना
तुम्हे लग न जाये तू बचना बचाना
भले और कोई मुसीबत बुलाना
कचहरी की नौबत कभी घर न लाना

कभी भूल कर भी न आँखें उठाना
न आँखें उठाना न गर्दन फसाना
जहाँ पांडवों को नरक है कचहरी
वहीं कौरवों को सरग है कचहरी ||
"कैलाश गौतम"