Thursday, April 26, 2012

 Sms of the week-
Half of sorrows we earn
by expecting good thing from wrong people
and the other half we earn
by searching wrong thing in good people- satyamev jayate

Friday, April 13, 2012

mobile banking -

In India where about 70% population is living in rural areas bank should mustthink

for mobile banking system .It is possible taking the concept of CBS system and ATM

system together where all transactions are satellite /internet based . This mobile

team mounted on a van may visit on different route in rural area .One area may be

repeated on weekly basis.In this way micro investment may take quantum jump in

India because of maximum participation of women and poor people who otherwise not

in regular touch of banks due to transport or other socio-economic reason.This will

reduce crowd in banks also. -Lalit . (Satyamev jayate )

Sunday, April 8, 2012

लाइफ लाइन नदियाँ-

विस्तार है अपार प्रजा दोनों पार करे हा-हा कार
निस्तब्ध सदा -निस्तब्ध सदा ओ गंगा बहती हो क्यूँ ?

भूपेन हजारिका का यह गीत पहली बार जब मेरे जूनियर दयाशंकर मिश्र (असिस्टेंट प्रोफ़ेसर पंतनगर विश्वविद्यालय ) ने अपने रेकॉर्डर पर सुनाया तो मैं सिहर गया । इस बात को लगभग १० वर्ष हो चुके हैं गंगा एक्सन प्लान , गंगा रिवर बेसिन एथारिटी वगैरह सारी कसरतों के बावजूद लगातार गंगा और इस देश की बड़ी -बड़ी नदियाँ एक बड़े गंदे नाले में बदलती जा रही हैं । हमने भी नदियों की यही नियति मान ली है कभी-कभार कोई अनशन और हल्ला- गुल्ला होता है तो कुछ देर के लिए खुमारी टूटती है फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है । कोई कहता है जल विद्युत् परियोजनाएं बंद करो , कोई कहता है खनन बंद करो, कोई कहता है कारखाने बंद करो , कोई कहता है ये करो तो कोई कहता वो करो । । इन सारी बातों के बीच एक असली बहस जो नेपथ्य में चली जाती है वो हमारा घरेलू और औद्योगिक प्रदूषण का निहायत अवैज्ञानिक निस्तारण है । शहर से निकलने वाला सारा अपशिष्ट नालियों और सीवर के माध्यम से नदियों में डाला जा रहा है । रोज़ हमारे बदन पे लगने वाला साबुन -शैम्पू ,क्लीनर- कंडीशनर , कपडे धोने वाला डिटर्जेंट , बर्तन को चकाचक करने वाला बार , मोती जैसे दांत बनाने वाला टूथ -पेस्ट का रसायन और घरों का मल-मूत्र लगातार नदियों में डाला जा रहा है । हमें इस बात का अहसास ही नहीं होता क़ि नदियों को गंदे नाले बनाने वाले हम भी हैं क्योंकि हमने कभी सोचा ही नहीं क़ि हमारे घरों का मैल घर से आखिर जाता कहाँ है? बाथ-रूम और ट्वायलेट का पानी घर से बह गया -चिंता ख़त्म . हम यह मान ने को तैयार ही नहीं क़ि हम ही नदियों में थूक रहे हैं मैल बहा रहे हैं और फिर उसी पानी को छान कर बड़े आनंद से पी रहे हैं । मजेदार तथ्य यह है क़ि सोखता लेट्रिन हटाकर नगर निकाय और गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा सीवर पाइप बिछाए जा रहे हैं जिससे क़ि बाकी बचे घरों के मल-मूत्र नदियों में डाले जा सकें ,तर्क यह क़ि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटहै न सफाई के लिए। जबकि असलियत यह है क़ि सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ हमको -आपको दिलासा देने के लिए हैं गंदे पानी को शुद्ध कर देना इनके बूते से बाहर है और कई तो सालों से बंद पड़े हैं . हम सोख्ता लेट्रिन से थर्मल एंड बर्न डिस्पोजल पर न जाकर सीवर सिस्टम पर चले गए और जो कुछ भी गन्दा था ,कचरा था ,आँखों को ख़राब लगता था - नदी के हवाले कर दिया । कुछ नदियाँ सौभाग्यशाली हैं क़ि उनके किनारे कोई शहर नहीं हैं या एक-दो शहर ही हैं इनमे एक नदी चम्बल भी है जो इटावा तक अपना वजूद बनाये रखती है लेकिन जैसे यमुना में मिलती है वह भी दम तोड़ देती है उसकी ऑक्सीजन तुरंत घट जाती है । बिजली पूरे देश को चाहिए - -१० किलोमीटर सुरंग मेंनदी के बहने से उसका पानी नहीं घट जाता,खनन पूर्णतया बंद होगा तो गाद जमने से बाढ़ आ जायेगी । इन दोनों से नदियां उतनी नहीं मर रही हैं जितना कारखानों और घर के अपशिष्ट से । विकास चाहिए तो कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन क्रीम वाली रासायनिक जीवन शैली और गलत नीतियों की कीमत चुकाने आसमान से कोई नहीं आएगा । इसलिए शुरुआत घर से हो तो बेहतर -कल नहाने के बाद अपने घर की नाली से बहने वाले रसायनों और नदी में गिरने वाले नालों पर नज़र जरूर डालियेगा ,हो सकता है अपनी जिम्मेदारी का अहसास होने लगे । प्रोफ़ेसर अग्रवाल और आचार्य नीरज मिश्र "क्रांतिकारी "का अनशन और पदयात्रा तब तक गंगा व् अन्य नदियों को मरने से नहीं बचा सकती जब तक हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से बचता रहेगा । बालकवि बैरागी की इन पंक्तियों से हम कुछ सीख सकें तो बेहतर-
आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो,
संग्राम यह घनघोर है कुछ मैं लडूं कुछ तुम लड़ो ॥ -ललित

Monday, April 2, 2012

मंत्र-

आज का sms-

एकमात्र सुविधाएँ ही यदि योग्यता का पर्याय होतीं तो-
लाइब्रेरियन दुनिया के सबसे बड़े विद्वान होते . -सत्यमेव जयते