Monday, February 27, 2012

जिन्दगी जिंदाबाद -


जिन्दगी भर हम प्रायः कोई न कोई बोझ ढोते रहते हैं । कुछ बोझ शारीरिक होते हैं तो कुछ मानसिक । शारीरिक बोझ उतने खतरनाक नहीं होते जितने क़ि दिमागी । दिमाग अक्सर किसी न किसी बोझ को ढोता रहता है कभी कैरियर का बोझ तो कभी बैरियर का बोझ , कभी देश का बोझ कभी शेष का बोझ , कभी अपना बोझ तो कभी पराया, बोझ ही बोझ . ये बोझ जिन्न की तरह चढ़ते हैं तो उतरने का नाम ही नहीं लेते । अधिकांश समय इन की चिंता में व्ययतीत होता है .कभी -कभी तो हम इसके आदी हो जाते हैं . बोझ नहीं तो कुछ खाली-खाली सा लगता है .यह जानते हुए क़ि सिर्फ सोचने से कुछ नहीं होने वाला लेकिन संतोष इस बात का रहता है क़ि हम किसी बात को गंभीरता से ले रहे हैं दिमागी बोझ मजा देता रहता है .इस सुखद अहसास के भ्रम बोझ से हमेशा से जुड़े रहे हैं । बोझ का अहसास सुखद भी है और दुखद भी । बोझ सचेत करता रहे तो कारगर और अचेत करता रहे तो सितमगर होता है लेकिन एक राज की बात यह है क़ि -
"बोझ कितना भी आकर्षक और खूबसूरत क्यों हो यदि असहनीय हो जाय तो उसे फेंक देना चाहिए ।"- सत्यमेव जयते

Saturday, February 4, 2012

क्रांति भट्ट -एक द्रष्टा

जर्नलिज्म एक पेशा ही नहीं वरन धर्म भी है . कुछ तो इसे मोहरे के रूप में प्रयोग करते हैं तो कुछ लोग इसे नयी ऊचाइयां देते हैं क्रांति भट्ट एक ऐसा ही नाम है जिन्होंने पत्रकारिता के नए मानक तय किये . वे जब लिखते हैं तो मुद्दे में जान डाल देते हैं ,प्रायः उनकी लिखी स्टोरी बीच के पन्नों से उछल कर फ्रंट पेज पर लग जाती है । अभी हाल ही में नेपाली बच्चे के ऊपर लिखी रिपोर्ट ने लोगों को झकझोर दिया । इस बच्चे की चाय बांटते हुए फोटो को खींचने वाला उनका प्यारा छोटू उर्फ़ नवीन परमार है .बताते चलें क़ि तिलक नाम के इस नेपाली बच्चे को हार्निया की बीमारी के कारण उसका बाप तिलक का इलाज कराने भारत लाया था . डाक्टरों ने बताया क़ि इलाज में हजारों रूपये लगेंगे .तिलक के मजदूर बाप के पास इतने पैसे नहीं थे । निराशा में बाप बेटे एक दूसरे का हाथ बंटाने लगे । रोटी का सवाल सुलझ नहीं पा रहा था इलाज कहाँ से कराते। अचानक क्रांति भट्ट की रिपोर्ट इस निराश जिन्दगी में एक रोशनी लाती है
इस रिपोर्ट के बाद हजारों हाथ उस मासूम की मदद को उठ गए यह वही समाज है जिसके बारे में हम मानते हैं क़ि यह कभी नहीं बदलेगा इस समाज को क्रांति भट्ट जैसे पत्रकार एक नयी दिशा देते हैं क्रांति भट्ट भी चाहते तो अन्य मीडिया वालों की तरह ब्रेकिंग न्यूज़ प्रसारित कर सकते थे क़ि "देखिये बीमार बच्चे का शोषण हो रहा है शासन प्रशासन मौन है समाज संवेदन हीन होता जा रहा है ..आदि -आदि "। क्रांति भट्ट ने वह सब कुछ कहा जो कहना चाहिए , लेकिन एक जुदा अंदाज़ से -नतीजा- उस बच्चे की मदद करने को बहुत से लोग सामने आ गए । लखनऊ विश्ववद्यालय से डिग्री प्राप्त भट्ट जी बहुत ही भावुक बुद्धिजीवी हैं जिनकी सतर्क निगाह समाज की दिशा और दशा पर होती है । ये समाज को आईना नहीं दिखाते आरोप नहीं लगाते ,वरन दिशा देते हैं, मार्गदर्शन करते हैं । अपनी ही मस्ती में जीने वाले क्रांति भट्ट का फक्कडपन देख कर आश्चर्य होता है .जेब में पैसे हों या न हों लोगों की मदद को तत्पर रहते हैं । इस बात की चिंता नहीं क़ि घर कैसे चलेगा ।
"क्रांति भट्ट" भले ही गोपेश्वर जैसी छोटी जगह पर काम करते हों लेकिन मीडिया जगत की तमाम नमी -गिरामी हस्तियाँ भी उन्हें "सर" कहती हैं । उनका दिमाग हमेशा किसी न किसी मुद्दे को लेकर उधेड़ बुन में रहता है । लोग उन्हें सनकी भी कहते है और अपनी इसी सनक और फक्कड़ मिजाजी की वजह से क्रांति भट्ट पत्रकारिता जगत की क्रांति के सूत्रधार बन जाते हैं । क्रांति भट्ट से यदि आप बात करना चाहते हों तो डायल करें - ९४११७३७६५८ । -ललित

Friday, February 3, 2012

विपश्यना

विपश्यना भारत की प्राचीन ध्यान पद्द्यति है जो हमारे ऋषियों द्वारा खोजी गयी थी । धीरे-धीरे यह ध्यान विद्या भारत से विलुप्त हो गयी । तिब्बत एवं बर्मा के साधकों ने जो इसे भारत से सीख कर अपने देश ले गए थे गुरु शिष्य परंपरा के द्वारा इसे जीवित रखा । ये विद्या फिर से भारत लौटी । इस ध्यान विद्या को फैलाने में सत्यनारायण गोयनका ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है । मैंने इसके १० दिवसीय शिविर में प्रतिभाग किया है मेरा अनुभव बहुत ही सुखद रहा है .स्वयं को जान ने का यह एक बेहतरीन माध्यम है जो मनुष्य की अपार संभावनाओं के द्वार खोलता है । अनुभव अवर्णनीय है ज्यादा क्या कहूँ कुछ चीजें अनुभव से ही समझी जा सकती हैं । विस्तृत विवरण के लिए क्लिक करें-
http://www.vridhamma.org/