Monday, May 10, 2021

 #जंगहैतोढंगसेलड़िए-


भरोसा भारतीय ज्ञान का 


 आज के समय में जब बहुत सी दवाएं काम नहीं आ रही हैं तो समय आ गया है कि मुड़कर भारतीय पारंपरिक ज्ञान की तरफ देखा जाए। इसे विज्ञान की भाषा में इंडियन ट्रेडिशनल नॉलेज यानी आई टी के कहा गया है।


  सीएसआईआर ने लगभग 4000 फॉर्मूलेशंस अपने डिजिटल लाइब्रेरी में भारतीय पारंपरिक ज्ञान से रजिस्ट्रेशन किए हैं लेकिन समस्या यह है इसे बोले कौन?


  बहुत से फार्मूले भारतीय संस्कृति में पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे हैं । लोग प्रयोग कर रहे हैं और ठीक भी हो रहे हैं ऐसा नहीं है कि अब तक रोग और  व्याधियां नहीं होती थीं । होती थी और इनको इलाज करने के पारंपरिक तरीके हुआ करते थे एलोपैथी के आने के पहले भी बहुत सी  इलाज की पद्धतियां थी जिससे सदियों से लोग ठीक होते आए हैं । योग और आयुर्वेद वात- पित्त -कफ को ही केंद्र मानकर इलाज करताहै । आयुर्वेद तो एक तिहाई रोगों का कारण कफ को ही मानता है और आयुर्वेद में कफ उपचार पर जम के शोध हुए हैं और न जाने कितनी औषधियां बनाई गई हैं । योग और आयुर्वेद को कफ निकालना भी आता है और जड़ से बीमारी खत्म करना भी आता है । ये भरोसा जरूरी है । लेकिन आपको भी भरोसा है क्या ?


  अगर हम सिर्फ आयुर्वेद की बात करें तो सबसे ज्यादा कार्य आयुर्वेद में हुआ है तो कफ और कब्ज पर हुआ है भारतीय योग की पद्धति में प्राणायाम पद्धति फेंफड़े  की क्षमता बढ़ाने पर आधारित है । कपालभाति, अनुलोम-विलोम यह सब फेफड़े की क्षमता बढ़ाने के पारंपरिक तरीके रहे हैं रोज आधे घंटे प्राणायाम फेफड़े की क्षमता को कई गुना बढ़ा देते हैं ।इसके अलावा भुजंगासन ताड़ासन आदि इस क्षमता को बढ़ाने के लिए जरूरी माने गए हैं ।


 आयुर्वेद में ही इस बात का प्रावधान है कि योगिक क्रिया जैसे शंख प्रक्षालन, कुंजल क्रिया जिसे वमन क्रिया भी कहते हैं इसके द्वारा कफ को घटाया जा सकता है । इन क्रियाओं से शरीर का अम्ल भी घटता है ।  यह बात विज्ञान भी मानता है कि सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया, फंगस, वायरस हर जगह मौजूद है इन जीवों की संख्या जब ज्यादा होती है तो बीमारी का कारण बनते हैं । होते यह हर जगह हैं  इनकी संख्या नियंत्रित करना जरूरी होता है जब ये ज्यादा होते हैं तो शरीर पर हावी हो जाते हैं । जिस तरह एक दो चींटी घायल सांप का कुछ नही बिगाड़ पातीं लेकिन सैकड़ों की संख्या में वो उसे मार डालती हैं इसी तरह माइक्रो आर्गेनिज्म की कम संख्या होने पर आपका शरीर स्वयं उससे लड़ लेता है । सदियों से कफ को नियंत्रित करने के लिए लोग पान लौंग और इलायची जैसी चीजें खाते रहें हैं। कफ से बचने के लिए प्रसिद्ध वैद्य डॉक्टर एम आर शर्मा  दावे के साथ पान का सादा पत्ता रोज खाने की सलाह दे रहे हैं । अब यह सोचिए कि जब एंटीबायोटिक नहीं थी तब कफ और जुखाम की समस्या से हमारे पूर्वज इन्हीं छोटे-छोटे उपाय से अपनी सुरक्षा करते थे। ये उपाय आज भी कारगर है अब समस्या यह है कि इन्हें प्रमाणित कौन करे ? बगैर प्रमाण के आप मानेंगे भी नहीं । आप मानते तब हैं जब हल्दी का पेटेंट कोई देश करा लेता है  । आप मानते तब हैं जब नीम का पेटेंट कोई करा लेता है। मेरे एक मित्र हैं डॉक्टर उदय पांडे जो हरिद्वार में रहते हैं मैंने उनसे पूछा कि क्या आप लोग पैंडेमिक के मरीज ठीक कर ले रहे हैं तो उनका जवाब था जी भैया हम लोग अब तक शत प्रतिशत मरीज ठीक कर चुके हैं। लेकिन एलोपैथी के सामने हमारी सुनता कौन है ? कहने का मतलब आयुर्वेद से मरीज ठीक तो हो ही रहे हैं लेकिन हमारा भरोसा कब कायम होगा ? पारंपरिक ज्ञान जिनको है भी वह भी बोलने से डरते हैं कि कहीं एलोपैथ वाले प्रमाण न मांग ले । ज्यादा बोलोगे तो नीम हकीम ठहरा दिए जाओगे । 


  आयुर्वेद में एक चिकित्सा पद्धति बहुत लोकप्रिय है जिसे क्षार चिकित्सा पद्धति कहते हैं यह क्षार चिकित्सा पद्धति इस सिद्धांत पर आधारित है कि शरीर में अम्ल बनता रहता है अम्ल के ज्यादा बनने से कई तरह के रोग होते हैं जैसे कब्ज , गैस, रक्तचाप, लिवर और किडनी के रोग ।  अतः शरीर को क्षारीय रखा जाए जिससे कई बीमारी अपने आप शरीर से दूर रहती हैं । शरीर को क्षारीय रखने के लिए फल इत्यादि खाने की सलाह दी जाती है देहरादून के प्राकृतिक चिकित्सक बीपी पांडेय कहते हैं कि जहां फल की उपलब्धता न हो वहां सहजन यानि मुनगा, नीम, पपीते, अमरूद , बेल आदि के पत्ते खाए जा सकते हैं । त्रिफला भी कारगर है । चूने के उपयोग की सलाह भी दी जाती है अक्सर लोग पान में चूना खाते हैं। फिटकरी का उपयोग घर घर इसीलिए होता था ।


 विज्ञान भी इस बात को प्रमाणित करता है कि तेल और घी में कोई भी सूक्ष्म जीव बहुत देर जिंदा नहीं रह सकता इसलिए गाय का घी सूंघने की सलाह आयुर्वेद सदियों से देता रहा है लेकिन अब इसको प्रमाणित कौन करे कि गाय का घी क्या फायदा करता है । यज्ञोपैथी यानि हवन से जीवाणु मरते हैं  ये बात सिद्ध हो चुकी है लेकिन अब इसको हिम्मत करके बोले कौन ? भाप थेरेपी प्राकृतिक चिकित्सा का ही हिस्सा है जिसे एलोपैथी वाले भी उतना ही स्वीकार करते हैं जितना इसे आयुर्वेद ने अपनाया है ।


  कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि भारतीय पारंपरिक ज्ञान तब भी उपयोगी था, आज भी उपयोगी है । कम से कम अगर आप स्वस्थ हैं तो स्वस्थ बने रहिए ये भी इस समय एक बहुत बड़ा योगदान होगा । स्वस्थ रहने का तरीका अपने पूर्वजों से सीख लीजिए आयुर्वेद और योग को जीवन पद्धति जितनी जल्दी बना लेंगे उतने ही फायदे में रहेंगे । क्योंकि फिलहाल तो एंटीबायोटिक के होश उड़े हुए हैं । वो ऑक्सीजन तलाश रही है । 


-ललित


(सत्यमेव जयते)