Sunday, November 4, 2012

लौटने का इंतज़ार-

जो पन्ने नज़रों से गुज़रे थे कभी
दुबारा  पलटे  न जा सके
मै यह सोच कर उन्हें सहेजता रहा कि  कभी वक़्त मिलेगा
 उनसे रू -बरू होने का
खुद के खोने का .
इसी ख़याल में अक्सर खो जाता हूँ
कि कल जरूर बैठूँगा उनके पास
बिखरी इबादतों को समेट  कर उन्हें खुश कर लूँगा
जिन्दगी जी लूँगा .
मैं उन तक पहुँच तो जाता हूँ पर पकड़ नहीं पाता .
रोज़ देखता हूँ आलमारियों से कोई शिकायत करता है
 पूछता है मेरे लिए वक़्त कब आएगा?
मैं जिन्दगी की तेज़ रफ़्तार में फिर से कल मिलने की बात कह के निकल जाता हूँ .
वो किताब मेरे लौटने का इंतज़ार करती है
वो जिन्दगी मेरे लौटने का ऐतबार करती है .-ललित 

Friday, November 2, 2012

जिन्दगी की गाड़ी जब -जब आउट ऑफ़ कण्ट्रोल होने लगे तब-तब हल्की सी ब्रेक लगा देनी चाहिए.-सत्यमेव जयते