Saturday, August 20, 2016

जाति ,वर्ण और जेनेटिक्स -

       अक्सर हम हिन्दू धर्म पर चर्चा करते हुए जाति के मुद्दे पर बगले झाँकने लगते हैं वर्ण को सही बताने लगते हैं और जाति को बाद में पैदा हुई विकृति बताने लग जाते है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमे आज तक यही पढ़ाया गया कि जातियाँ कुरीतियों की तरह है इन्हें मिटाया जाय । क्या हमने कभी ये सोचा कि इतने विरोध के बाद जातियाँ आज तक  ख़त्म नही हुईं वरन और मजबूत क्यों होती गयीं ? इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण है और वो कारण इसकी वैज्ञानिकता और समाजिक व् आर्थिक उपादेयता है जिसने जाति को हज़ारों बरस से कायम  रखा है । वर्ण परम्परा की अपेक्षा जातियाँ ज्यादा वैज्ञानिक हैं जाति जन्म आधारित होती हैं अर्थात जातियाँ जीन पर निर्भर तथ्य है जो ताउम्र नही बदल सकती जबकि वर्ण कर्म के आधार पर कभी भी बदले जा सकते हैं अर्थात वर्ण कर्म के आधार पर सामाजिक गतिशीलता की परम्परा है 
       विज्ञान की भाषा में जातियाँ एक आनुवंशिक तथ्य है हिन्दुस्तान में अधिकांश जातियाँ रोटी और बेटी के सम्बन्ध दूसरी जातियों में नही करती और इसीलिए हर जाति के जीन पूल यूनिक हैँ ।जेनेटिक स्टडी के लिए ये जातियाँ एक अनोखी प्रयोगशाला बन रही हैं।जहाँ बीमारियों से निपटने के जीन खोजे जा रहे है ,गुणों की उत्पत्ति ढूंढी जा रही है.गोत्र और जातियाँ दोनों का आधार जीन है किन्तु दोनों में अंतर है गोत्र किसी व्यक्ति की उत्पत्ति से जुड़ा है वहीँ जाति वर्तमान में हुए विकास की सूचक है यानि गोत्र सीधी खड़ी रेखा (vertical ) है वहीं   जाति क्षैतिज (Horizontal ) रेखा है। इतना ही नहीँ जितने रोजगार जातियों ने दिए उतने राजे महाराजे व् सरकारें भी न दे सकीं ।जितने मुकदमे मुफ़्त में जातीय पंचायतों ने निपटाए उतने करोडो अरबो खर्च कर न्यायपालिका हज़ारों साल में निपटायेगी । जातीय बन्धन इतना मजबूत है कि आज भी चुनाव के समय पार्टियां जातीय समीकरण देख टिकट देती हैं और सारे आधुनिक सिद्धान्तों को धता बता वोट भी ले लेतीं हैं । 
      एक बात लिखना महत्वपूर्ण है और  वह यह कि मानव बायोडायवर्सिटी को सबसे ज्यादा बचाया है जातियों ने , नही तो एक महामारी में सब साफ़ हो जाते । उस जमाने में जब इलाज़ के इतने तरीके नही थे इस बायोडायवर्सिटी से मानव बचता रहा और भविष्य में भी बचेगा कम से कम हिन्दुस्तान में मानव का अंश सदैव बचा रहेगा चाहे जितनी बड़ा घातक वायरस पैदा क्यों न हो जाय ।
 जाति के मुद्दे पर हम हमेशा बचाव की मुद्रा में रहते थे जबकि ये विज्ञान कही अधिक एडवांस है
         जातियों को कई विचारकों ने सिर्फ और सिर्फ शोषण के माध्यम के रूप में  देखा जबकि सत्यता यह है कि जातियाँ शोषण नही करती शोषण हमेशा शोषक करते हैं  छल और बल से यहाँ तक तथाकथित विकसित देशों में जहाँ जातियाँ नही हैं वहाँ भी किसी न किसी का शोषण होता रहता  है ।किस परम्परा में समय के साथ कमियां नही आतीं सो जातियाँ भी इससे अछूती नही रहीं ।लेकिन हर धर्म में इसकी मौजूदगी इसकी स्वीकृति की सूचक रही भले ही वो धर्म बाहर से आया हो । जाति एक शोध है व्यवस्था व् समाज को चलाने के लिये । जो वर्तमान व्यवस्था के पहले से ही लागू है और यह  इतनी मजबूत है कि अभी इसकी उपयोगिता हज़ारों  साल चलेगी  ।जातियों में आई कमियों को छोड़ दें तो मजबूत समाजार्थिक व्यवस्था का ऐसा फॉर्मूला दुनिया में कही नही मिलता । वर्ण व्यवस्था से भी ज्यादा विज्ञान और तथ्य छुपे है जाति में ।
           गोत्र जीन की सीधी रेखा है जो मानव का उद्भव बताती है वहीं  जाति जीन पूल यानि क्षैतिज रेखा ( horizontal) जो मानव विकास की व्याख्या करती है .(Both are  based on ancient genetics).तो एक बार फिर से सोचिए कि जातियाँ कुरीति हुई या एक सोचा समझा विज्ञान।
 मजेदार बात यह है कि लोग भारतीय ऋषियों के बजाय कुछ दिन पहले पैदा हुए मेंडल को genetics का जनक मानते हैं ।😄🙏