Wednesday, October 5, 2011

नेम सिंह रमन उर्फ़ रमन दा -


नेम सिंह रमन उर्फ़ रमन दा -
समय से आगे चलने वालों को कभी-कभी पागल समझ लिया जाता है । दुनियादारी के अनुकूल न होने की कभी-कभी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है । मनोवैज्ञानिक रामायण के रचयिता रमन दा (5/1/1932) के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब उनके क्रांतिकारी विचारों और कार्यों से परेशान उनके कांस्टेबल पिताजी ने उन्हें ताजमहल दिखाने के बहाने आगरा के पागलखाने में भरती करा दिया

जहाँ उन्होंने कागज कलम के अभाव में अपने कुरते की सफ़ेद बटन तोड़ कर फर्श पर ये कविता लिखी -

पागल समझा देश दिवाना,
दुग्ध पत्र लखि कलार के ढिंग मदिरा सब ने जाना
लोभी लोग मिली नहि माया छोड़ दिया अपनाना
साले ससुर पिता सब बोले भेजो पागलखाना
मां ने कहा मृत्यु दे भगवन लुट गया लाल खजाना
बेच रहा गुंजों में मुक्ता भील नहीं पहचाना
झूठा कह कर देश दीवाना पागल सबने माना
रमन हुआ तब झूठे जग में झूठा पागलखाना

पागलखाने के डाक्टरों ने जब यह सुना तो अवाक् रह गए रमन जी से पूछा की तुम पागल तो नहीं लगते आखिर बात क्या है रमन दा ने जवाब दिया की डाक्टर साहब दुनिया से एक इंच ऊपर उठ जाओ या एक इंच नीचे हो जाओ तो पागल ही कहे जाओगे ,दुनिया के साथ न चलना पागलपन है उस दिन के बाद रमन दा को पुअर क्लास से बदलकर सेकंड क्लास खाना मिलने लगा ।
दुनिया के साथ न चलने की जिद नौकरी में भी रमन दा के साथ रही इमानदारी कोई इनसे सीखे । एक महिला नक़ल की फीस के २ रुपये की बजाय 5 देकर चली गयी छः महीने तक उसे ढूंढते रहे और बाकी के तीन रुपये लौटा के ही चैन लिया ।
लेखपाल की नौकरी में गणित की ढेरों गुथ्थियाँ सुलझाईं, नए सूत्र बनाये जो अभी तक अप्रकाशित हैं । रमन दा की कालजयी कृति "मनोवैज्ञानिक रामायण" है .जिन्दगी के 79 बसंत देख चुके रमन दा आज भी साहित्य जगत में सक्रिय हैं उन्हें लोग इन्द्रधनुषी कवि के नाम से जानते हैं क्योंकि व्यंग्य से लेकर गंभीर आध्यात्म तक उन्होंने बहुत कुछ लिखा है ।
कुछ झलक-

दर्शन :-जिसकी फसल उगाना चाहो बीज वही बोना पड़ता है
अपना जिसे बनाना चाहो उसका खुद होना पड़ता है .

सबसे पहले अपने घर में देखिये बाद में पूरे शहर में देखिये
मां के बेटे साथ रहते हों जहाँ आप जा के दुनिया भर में देखिये ।
हास्य :-
सबसे अच्छा माँ का दूध
मीठा नहीं मिलाना पड़ता
गरम नहीं करवाना पड़ता
बिकने वाला माल नहीं
बिल्ली पिए मजाल नहीं ।

एक डाक्टर साहब थे फ़ौज में छुट्टी बिताई मौज में
जब घर से वापस जाने लगे पत्नी से यूँ फरमाने लगे
हम तुम रोजाना पत्र डालते रहें इस तरह परस्पर प्रेम पालते रहें
एक दिन पत्नी का पत्र नहीं आया डाक्टर बहुत घबराया
पड़ोसियों ने बताया आपकी गृहस्थी की बर्बादी हो गयी
डाक्टरनी और डाकिया की शादी हो गयी ।

रमन दा का लिखा बारहमासा उस दौर में ग्रामोफोन में बजता था जिसे ट्रेन में गा कर बहुत से खानाबदोश व गरीब अपनी जीविका चलाते थे । ये रेकॉर्डिंग हिंदुस्तान रेकर्स बनारस ने बनाई थी । रमन दा (इटावा ) का मोबाइल नंबर है 09219031545