Saturday, March 31, 2012

अदम गोंडवी जी को समर्पित-



इधर
जीने की कशमोकश उधर गुलशन गुलाबी है

हकीकत है क़ि हिन्दोस्तान में अब भी नवाबी है

तड़पती है यहाँ जनता न रोटी है न पानी है

उधर काजू भरी महफ़िल शराबी है कबाबी है .-ललित

Friday, March 30, 2012

क्या समझे -

एक प्यारा sms -

इस बात को समझने में सारी उम्र गुजर जाती है
क़ि
हर बात को समझना जरूरी नहीं होता

कहाँ आप - कहाँ हम -

कहाँ आप - कहाँ हम ; कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

आप तो हुजूर हैं सरकार हैं।
बाग़ की रौनक हैं सदा बहार हैं।

सुनते हैं- दिल्ली में गद्दी गई है जम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम?

जनहित में कराते सदा यज्ञ -जाप,
सैकड़ों के मसीहा लाखों के माई बाप।

आप किसी अवतार से बिलकुल नहीं हैं कम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

आपको कष्ट दूँ यह मुझे भाया नहीं,
यही सोच आपके दरवार में आया नहीं।

आपके तो चाकर भी पीते हैं विदेशी रम ।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

शीशे के गलियारे में आप हैं पत्थर,
आप की दुक्की इक्के को करे सर।

आपसे टकराने की किसमें है दम।
कहाँ आप - कहाँ हम ? कहाँ ख़ुशी- कहाँ गम ?

- स्व.कवि अशोक अम्बर इटावा

Thursday, March 29, 2012

आ अब लौट भी चलें-


ढलने लगी है शाम , आ अब लौट भी चलें ;
घर भी है इक मुकाम, आ अब लौट भी चलें ॥

हम ही थे सिकंदर, कलंदर भी हमी थे ;
अब खुद में हैं गुमनाम, आ अब लौट भी चलें॥

जम्हूरियत का जश्न है, खैरात बंटेगी ;
गफलत में है अवाम, आ अब लौट भी चलें॥



पलकों में छुपा लूँ , या आँखों में बसा लूँ ;
दिल को भी दें आराम, आ अब लौट भी चलें॥

खामोश है कुल शहर, कहीं हादसा हुआ ;
बस्ती में है कोहराम , आ अब लौट भी चलें ॥

मिलते थे खुद से रोज़, खुदा से कभी -कभी ;
अब खुद में हैं तमाम, आ अब लौट भी चलें ॥

सजदा भी कर लिया , इबादत भी हो गयी;
मुझ में था मेरा राम, आ अब लौट भी चलें ॥

पूनम की चांदनी मेरे घर आ के सो गयी ;
सबको मेरा सलाम, आ अब लौट भी चलें ॥ -ललित

Thursday, March 22, 2012

तो अच्छा था -

आपकी खिदमत में पेश है एक मुक्तक -

भला अहसास हो हम में चरागों को जलाने का
फ़साने इस हकीकत में बदल जाते तो अच्छा था
सियासी मजहबी बातें गिरातीं आशियानों को
किसी मजलूम की खातिर मकाँ बनते तो अच्छा था । -ललित

Sunday, March 18, 2012

हरीश दरवेश जी की रचना-

मुहब्बत की शराफ़त की ख़ुशी की बात करता है ।
ये पगला राम जाने किस सदी की बात करता है ।

भरम होता है जैसे रात मे सूरज निकल आया ।
महल वाला कभी जब झोपडी की बात करता है ।

अगर बढती नही लडती नही तो और क्या करती ।
समन्दर कब किसी ठहरी नदी की बात करता है ।

उसे भगवान ही शायद निकालेगा अँधेरोँ से ।
हमेशा जो परायी रोशनी की बात करता है ।

वो ख़ुद ही एक दिन मे घूँट जाता है कई नदियाँ ।
तू जिससे आस रख कर तिश्नगी की बात करता है ।

मुर्गा -

सरकारी महकमे में अफसर और बाबुओं को मुर्गे की तलाश बेसब्री से रहती है । जिस दिन मुर्गा नहीं मिलता वो दिन मनहूस माना जाता है । आप समझ गए होंगे क़ि किस मुर्गे की बात हो रही है ! ये वे आम लोग हैं जिनका काम दफ्तरों में तब तक लटकाया जाता है जब तक वो आकर कुछ खर्चा पानी न दे दें । मुर्गों की यह बानगी आपको ऐ जी ऑफिस और शिक्षा निदेशालय तथा राजधानी स्थित सचिवालय और निदेशालयों में आसानी से देखने को मिल सकती है । यहाँ बहुत कम स्टाफ घर से खाना खा कर आता है क्योंकि मुर्गा है न खिलाने के लिए । जो भी मुर्गा आता है उसको बाबू पास के होटल या ढाबे पर यह कह कर ले जाता है क़ि -चलो चाय पी कर आते हैं। इस बाबू के साथ उसके आठ - दस मित्र भी होते हैं जो होटल पर जमकर माल उड़ाते हैं और सैकड़ों रुपये के बिल का भुगतान वो मुर्गा करता है जो साथ में चाय पीने गया होता है । इसके अलावा वो मुर्गा अपने इस तारनहार बाबू को कुछ नजराना देता है तब जाकर उसका काम होता है और चलते - चलते इस मुर्गे पर बाबू अपना अहसान लादते हुए बोलता है "तुम्हारा काम बिलकुल भी होने वाला नहीं था अगर मै प्रयास न करता, मै ही जानता हूँ क़ि मैंने किस तरह फाइल पास करवाई है "। मुर्गा अपनी किस्मत को सराहता और बाबू की सज्जनता का गुणगान करता हुआ घर चला आता है और अगले मुर्गे को हलाल होने के लिए उस सज्जन बाबू का पता बता देता है .-सत्यमेव जयते

Friday, March 16, 2012

"No dream too big " -


"No dream too big "यह पञ्च लाइन जे पी ग्रुप की है इस वाक्य की वास्तविकता मैंने तब महसूस की जब मैंने इस कम्पनी के vishnugad hydro प्रोजेक्ट का २००९ में भ्रमण किया । मै यह देख कर आश्चर्यचकित रह गया कि बाहर से ऊबड़ खाबड़ दिखने वाले पहाड़ के अन्दर एक विशालकाय विद्युत् फैक्ट्री चल रही है (जैसा फिल्मों में दिखाते हैं ) , उसका सञ्चालन उसी पहाड़ के अन्दर स्थित ६ मंजिला कण्ट्रोल रूम से होता है । जे पी गौड़ इस ग्रुप के संस्थापक हैं जिन्होंने उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग की एक छोटी सी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर कुछ नया करने की सोची . वे चाहते तो वो भी अपने बाकी साथियों की तरह बुढ़ापे में भीखनुमा पेंशन का इंतजार करते । उन्होंने देश को कई प्रोजेक्ट दिए, लाखों को रोज़गार दिया । . मैं उन्हें नहीं जानता ,न ही उनसे मिला हूँ । राजनीतिक पहुँच के चलते वो कतिपय विवादों में जरूर रहे किन्तु उनकी पञ्च लाइन "No dream too big" लोगों की चेतना को झकझोरती है देश के लिए बड़े सपने देखने को मजबूर करती है।-ललित

Wednesday, March 14, 2012

बंधन और जीवन मुक्ति -


जीवन मुक्त होने के लिए ही बना है बंधन तो हम स्वयं बनाते हैं । बंधन अच्छा हो तो आनंद लेते हैं और पीड़ा दायक हो तो परेशान होते हैं और भाग्य को दोष देते हैं ।मुक्ति में भाग्य और कर्म का अद्भुत संयोग है . भाग्य और कर्म का अंतर कुछ इस तरह है जैसे किसी बंद अंधेरे कमरे में ,जिसमे एक ही दरवाजा हो, किसी को छोड़ दिया जाय और कहा जाय क़ि प्रयास करके बाहर निकलो । दरवाजा पास में होने के बावजूद किसी को पूरे कमरे का चक्कर लगाना पड़ सकता है तो किसी का पहला कदम ही दरवाजे की तलाश पूरी कर सकता है अर्थात किसी को ज्यादा समय लगेगा तो किसी को कम -यह भाग्य है . लेकिन इतना निश्चित है क़ि जो चलेगा उसको ही दरवाजा मिलेगा -यह कर्म है । बंधन और जीवन मुक्ति के बीच की दूरी इससे ज्यादा नहीं हो सकती । -सत्यमेव जयते

Monday, March 12, 2012

दोस्ती से बड़ी दुश्मनी -

दुश्मन बनाने में दोस्ती करने की अपेक्षा ज्यादा सावधानी की जरूरत होती है क्योंकि यदि बड़े से दुश्मनी की तो उसके स्तर तक उठना पड़ेगा और छोटे से की तो उसके स्तर तक गिरना पड़ेगा । - सत्यमेव जयते

Friday, March 9, 2012

चार लोग -

एक प्यारा sms -
मै उन चार लोगों को मुद्दत से ढूंढ रहा हूँ
जिनको मेरी निजी जिन्दगी में इतना ज्यादा इंटेरेस्ट है क़ि
घर वाले हमेशा बोलते हैं क़ि "चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ?"

Thursday, March 1, 2012

पंख से कुछ नही होता हौंसलों से उडान होती है-

मात्र 20 मि‍नट की यह विडियो क्लिप सुजान सिंह नामक उस वि‍कंलाग व्‍यक्‍ि‍त की है जि‍सने यह साबि‍त कर दि‍खाया है कि‍ पंख से कुछ नही होता हौंसलों से उडान हुआ करती है। (जरूर देखें कि‍सी की जि‍न्‍दगी बदल सकते है आप)
1; यह वीडि‍यो उन दोस्‍तो के लि‍ये जि‍न में समाज के लि‍ये कुछ कर गुजरने का जज्‍बा है।
2। यह वीडि‍यो उन दोस्‍तो के लि‍ये भी जो दि‍न भर फेसबुकि‍या बेचैनी के शि‍कार रहते है।
3; और उन लोगो के लि‍ये भी (खेद सहि‍त) जो यह मानते है कि‍ देश में कुछ नही हो रहा ओर कुछ हो भी नही सकता।
साभार -
आकाशदीप फि‍ल्‍म्‍स एवं राष्‍टीय साक्षरता मि‍शन