Sunday, March 18, 2012

हरीश दरवेश जी की रचना-

मुहब्बत की शराफ़त की ख़ुशी की बात करता है ।
ये पगला राम जाने किस सदी की बात करता है ।

भरम होता है जैसे रात मे सूरज निकल आया ।
महल वाला कभी जब झोपडी की बात करता है ।

अगर बढती नही लडती नही तो और क्या करती ।
समन्दर कब किसी ठहरी नदी की बात करता है ।

उसे भगवान ही शायद निकालेगा अँधेरोँ से ।
हमेशा जो परायी रोशनी की बात करता है ।

वो ख़ुद ही एक दिन मे घूँट जाता है कई नदियाँ ।
तू जिससे आस रख कर तिश्नगी की बात करता है ।

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