Wednesday, March 14, 2012

बंधन और जीवन मुक्ति -


जीवन मुक्त होने के लिए ही बना है बंधन तो हम स्वयं बनाते हैं । बंधन अच्छा हो तो आनंद लेते हैं और पीड़ा दायक हो तो परेशान होते हैं और भाग्य को दोष देते हैं ।मुक्ति में भाग्य और कर्म का अद्भुत संयोग है . भाग्य और कर्म का अंतर कुछ इस तरह है जैसे किसी बंद अंधेरे कमरे में ,जिसमे एक ही दरवाजा हो, किसी को छोड़ दिया जाय और कहा जाय क़ि प्रयास करके बाहर निकलो । दरवाजा पास में होने के बावजूद किसी को पूरे कमरे का चक्कर लगाना पड़ सकता है तो किसी का पहला कदम ही दरवाजे की तलाश पूरी कर सकता है अर्थात किसी को ज्यादा समय लगेगा तो किसी को कम -यह भाग्य है . लेकिन इतना निश्चित है क़ि जो चलेगा उसको ही दरवाजा मिलेगा -यह कर्म है । बंधन और जीवन मुक्ति के बीच की दूरी इससे ज्यादा नहीं हो सकती । -सत्यमेव जयते

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