Sunday, March 18, 2012

मुर्गा -

सरकारी महकमे में अफसर और बाबुओं को मुर्गे की तलाश बेसब्री से रहती है । जिस दिन मुर्गा नहीं मिलता वो दिन मनहूस माना जाता है । आप समझ गए होंगे क़ि किस मुर्गे की बात हो रही है ! ये वे आम लोग हैं जिनका काम दफ्तरों में तब तक लटकाया जाता है जब तक वो आकर कुछ खर्चा पानी न दे दें । मुर्गों की यह बानगी आपको ऐ जी ऑफिस और शिक्षा निदेशालय तथा राजधानी स्थित सचिवालय और निदेशालयों में आसानी से देखने को मिल सकती है । यहाँ बहुत कम स्टाफ घर से खाना खा कर आता है क्योंकि मुर्गा है न खिलाने के लिए । जो भी मुर्गा आता है उसको बाबू पास के होटल या ढाबे पर यह कह कर ले जाता है क़ि -चलो चाय पी कर आते हैं। इस बाबू के साथ उसके आठ - दस मित्र भी होते हैं जो होटल पर जमकर माल उड़ाते हैं और सैकड़ों रुपये के बिल का भुगतान वो मुर्गा करता है जो साथ में चाय पीने गया होता है । इसके अलावा वो मुर्गा अपने इस तारनहार बाबू को कुछ नजराना देता है तब जाकर उसका काम होता है और चलते - चलते इस मुर्गे पर बाबू अपना अहसान लादते हुए बोलता है "तुम्हारा काम बिलकुल भी होने वाला नहीं था अगर मै प्रयास न करता, मै ही जानता हूँ क़ि मैंने किस तरह फाइल पास करवाई है "। मुर्गा अपनी किस्मत को सराहता और बाबू की सज्जनता का गुणगान करता हुआ घर चला आता है और अगले मुर्गे को हलाल होने के लिए उस सज्जन बाबू का पता बता देता है .-सत्यमेव जयते

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