Thursday, March 29, 2012
आ अब लौट भी चलें-
ढलने लगी है शाम , आ अब लौट भी चलें ;
घर भी है इक मुकाम, आ अब लौट भी चलें ॥
हम ही थे सिकंदर, कलंदर भी हमी थे ;
अब खुद में हैं गुमनाम, आ अब लौट भी चलें॥
जम्हूरियत का जश्न है, खैरात बंटेगी ;
गफलत में है अवाम, आ अब लौट भी चलें॥
पलकों में छुपा लूँ , या आँखों में बसा लूँ ;
दिल को भी दें आराम, आ अब लौट भी चलें॥
खामोश है कुल शहर, कहीं हादसा हुआ ;
बस्ती में है कोहराम , आ अब लौट भी चलें ॥
मिलते थे खुद से रोज़, खुदा से कभी -कभी ;
अब खुद में हैं तमाम, आ अब लौट भी चलें ॥
सजदा भी कर लिया , इबादत भी हो गयी;
मुझ में था मेरा राम, आ अब लौट भी चलें ॥
पूनम की चांदनी मेरे घर आ के सो गयी ;
सबको मेरा सलाम, आ अब लौट भी चलें ॥ -ललित
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
क्या कहने सर मुझमे था मेरा राम वाह वाह
ReplyDeletehttp://mynationandme.blogspot.in/?m=1
ReplyDelete