Monday, December 28, 2015

मतदान की उम्र-

जब नयी पीढ़ी कम उम्र में ज्यादा समझदार हो रही है तो मतदान की उम्र भी घटा देनी चाहिए इसे कम से कम 16 साल पे ले आना उचित होगा। 

Thursday, October 8, 2015

#cyber agrishops-

हिंदुस्तान के गांव और किसान जिस दिन मजबूत हो जायेंगे देश अपने आप मजबूत हो जायेगा ।आज भी गांव में किसानों को अपने उत्पादों को स्थानीय व्यापारी को औने पौने दामों में बेचना पड़ता है वहीं शहर में रहने वालों को आढ़तिया या दुकानदार उसी सामान को कई गुना दामों में बेचता है इस किसान और उपभोक्ता के बीच में फायदा उठाने वाले दलालों की चांदी है वही चावल जो किसान 15-17 रुपये में बेचता है वो उपभोक्ता 35 -75 रूपये में खरीदता है सरसों का तेल किसान के घर से 35-40 रूपये में चलकर आपके यहाँ 100 रूपये में पहुँचता है वो भी मिलावट के साथ । यही हाल सब्जियों का है 3 रूपये किलो खीरा 30 में और 6 रूपये किलो भिन्डी 60 रूपये में बिक जाती है आज के ज़माने में जब बहुत कुछ ऑनलाइन है तो क्या किसान और उपभोक्ता सीधे एक दुसरे से नहीं जुड़ सकते? किसानों से यदि उपभोक्ता विशेषकर शहरी समाज सीधे जुड़ जाय तो दलाल अर्थव्यवस्था तो ख़त्म होगी ही किसान और गांव मजबूत होंगे साथ ही उपभोक्ता को भी बहुत राहत होगी। एक उपभोक्ता एक किसान को तो अपना ही सकता है ।शुरू करिये किसी नजदीक के गांव से ।

Tuesday, September 22, 2015

ये बंधन तो -



वैसे तो सरकारी महकमे को आम जनता दूर से ही राम राम करती है।  लेकिन कभी कभी जाने अनजाने सरकारी 
मुलाजिमों से जनता के ऐसे रिश्ते बन जाते हैं जिसको परिभाषा में नहीं बांधा  जा सकता।  ऐसा ही एक वाकया 
सिद्धार्थनगर उ०  प्र ० में पेश आया जहाँ सूखे से परेशान लोगों ने स्थानीय थानेदार को प्यार से नहला दिया 

मान्यता ये थी कि ऐसा करने से बारिश हो जाएगी।  ये परंपरा कब शुरू हुई होगी यह कहना मुश्किल है किन्तु 

प्रेम के इन रिश्तों में प्रोटोकॉल को भूल जाना ही बेहतर होता है।  ऐसी ही एक परंपरा उत्तराखंड के पिथौरागढ़

जनपद की धारचूला तहसील में विद्यमान है जहाँ शिवरात्रि के समय स्थानीय SDM  (उप जिला मजिस्ट्रेट )
 को भोटिया समुदाय की  रंग संस्था द्वारा दामाद जैसा सम्मान दिया जाता है और गुलाबी पगड़ी पहना कर अच्छे अच्छे व्यंजन खिला कर बहुत ही आदर और सम्मान दिया जाता है।  प्रेम के इन रिश्तों में डूब कर 
आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाले मप्र के डॉ बी डी शर्मा (आईएएस ) एक अनुकरणीय उदाहरण रहे हैं।  बारिश हो या न हो लेकिन जनता और सरकारी महकमें की दूरी जितनी घटती जाएगी उतना ही ये प्रेम का बंधन लोकतंत्र के लिएशुभ सन्देश बनेगा- बहाना कोई भी हो। 


Tuesday, July 14, 2015

PDS-

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS ) अर्थात राशन , मिट्टी का तेल बाँटने की योजना में आमूलचूल परिवर्तन किये बिना इसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को रोकना लगभग असंभव सा है।  इस प्रणाली में इतने छेद हो चुके हैं कि इसे छलनी कहा जा सकता है जहाँ एक लीकेज रोकेंगे ,तो दूसरा, दूसरा रोकेंगे तो तीसरा और चौथा चालू हो जाता है.शहर की अधिकतर मंडियों के आढ़त बाजार इन्हीं राशन से संचालित हैं जो कम  पैसे में ब्लैक से राशन खरीद कर (२ रुपये ३ रूपये )10 गुना अधिक दाम पर आम आदमी को बेच देते हैं।  अनाज को टांस्पोर्ट करने में भी बहुत ज्यादा खर्च आता है।  बेहतर तो यही होगा की इस पूरे सिस्टम को बैंक मोड में ले लिया जाय अर्थात राशन के बजाय पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते  में भेज दिया जाय.-(सत्यमेव जयते )