Tuesday, April 26, 2016

नमक खाने से पहले -

दुनिया की सबसे पहली प्रयोगशालाएं रसोईघर मानी गई हैं जहाँ मानव की अमरता के लिए नए नए प्रयोग हुए और नए नए सिद्धांत बने। इन्ही प्रयोगों में एक खोज नमक की भी हुई। शरीर को अपना द्रव संतुलन बनाए रखने के लिए नमक जरूरी था इसलिए रोज़मर्रा के भोजन में नमक का समावेश किया गया। नमक का सीधा असर तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम), किडनी और हार्ट व् अन्य सभी कोशिकाओं पर होता है। शरीर में इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बनाए रखने के लिए धन और ऋण आयन का संतुलन जरूरी है । बताते चलें कि शरीर का लगभग 60 % भाग पानी है जो कोशिका ,खून और कोशिका के बाहर मौजूद रहता है कोशिका के अंदर पोटैशियम और फॉस्फेट ज्यादा होता है और कोशिका के बाहर सोडियम और क्लोराइड ज्यादा होता है इन दोनों का संतुलन यानि कोशिका के अंदर और बाहर एक निर्धारित अनुपात में बना रहता है। आपने यह तो जरूर सुना होगा कि ज्यादा नमक खाने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है क्योंकि नमक जो केवल सोडियम और क्लोराइड से बना है वह उत्तकों के अंदर से पानी खींच लेता है और किडनी में बनने वाली पेशाब से पानी वापस खून में मिला देता है जिससे खून में पानी बढ़ जाने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। प्रश्न ये है कि नमक तो हम सदियों से खाते आ रहे हैं ये नमक से समस्या पहले इतनी ज्यादा नहीं थी तो अचानक कैसे बढ़ गई ? इसका उत्तर जानने के लिए थोड़ा इतिहास में चलते हैं संसार में एक समय ऐसा भी था जब नमक सोने से भी ज्यादा मंहगा था लोग चट्टान के नमक जैसे सेंधा या काला नमक प्रयोग करते थे। धीरे धीरे समुद्र से नमक बनाने की खोज हुई और नमक की उपलब्धता बढ़ गई बात यहाँ तक तो ठीक थी लेकिन धीरे धीरे नमक को रिफाइन किया जाने लगा रिफाइन करने के दौरान समुद्री नमक में पाये जाने वाले लगभग 92 मिनरल को हटा कर 4 तक सीमित कर दिया गया जिसमे 98% सोडियम और क्लोराइड था इस नमक को सीलन से बचाने के लिए एल्युमीनियम सिलिकेट जैसे तत्व मिलाये गए जिनसे अल्जीमर रोग होता है। आयोडीन का डर दिखा कर व्यापारिक कंपनियों ने भारत में इसे खूब बेचा और रसोई में इस नमक का कब्ज़ा हो गया जबकि आयोडीन कई स्रोतों से मिल रहा था । रिफाइन करने के दौरान जो मिनरल निकाले गए उन्हें इन कंपनियों ने मिनरल कैप्सूल बना कर बेचना शुरू कर दिया अब जब भी मिनरल डेफिशियेंसी होती है तो डॉक्टर की सलाह पर आपको वो मल्टी विटामिन कैप्सूल नाम से खाना पड़ता है जो मुफ्त में समुद्री नमक आपको देता था यानि नमक भी बेच दिया और उसका मिनरल भी . देखा कमाल "आम के आम गुठलियों के दाम" । अब आप काफी कुछ समझ गए होंगे कि गलती कहाँ हुई और रोग कैसे बढे। जो नमक समुद्र से मिलता था (क्रिस्र्टल वाला/डली वाला )उसमे 86-92 तत्व पाये जाते थे जिसमे पोटैशियम सल्फर सोडियम आदि सब मिनरल था और एक दुसरे को संतुलित भी करता था इसलिए बीमारियां कम थी खास तौर पे ह्रदय संबंधी बीमारियां। जबसे रिफाइंड नमक ने रसोई में कब्ज़ा जमाया है गड़बड़ी वहीं से शुरू हो गई। प्रयोगों से ये साबित हुआ है कि रिफाइंड नमक शरीर के सामान्य pH 7.2 को घटा देता है और शरीर का pH अम्लीय बना देता है जो शरीर के लिए ज्यादा हानिकारक होता है।जबकि मूल समुद्री नमक या सेंधा /काला नमक से ऐसा नहीं होता वरन pH संतुलित रहता है। अब तो पूरा मसला समझ मे आ गया होगा इन नमक कंपनियों के खेल को आप समझ गए होंगे। तो एक बार फिर से रसोई में जाइये और सोचिये कौन सा नमक आप प्रयोग करेंगे ? हाँ नमक की ज्यादा मात्रा से जरूर बचें चाहे वो जो भी नमक हो।-Dr.Lalit Narayan Mishra
(सहयोग डॉ RK पाण्डेय 9760534523 डॉ अमित शुक्ल 9412957166 ) 

Wednesday, April 6, 2016

तेल देखो तेल की धार देखो -

तेल देखो तेल की धार देखो -
             हम कभी कभी कुछ चीजों पर आँख मूँद के विश्वास कर लेते हैं क्योंकि हमारे पास उसको जांचने का कोई माध्यम नहीं होता। एक दौर था जब पश्चिम के वैज्ञानिकों ने कहा कि माँ का पहला दूध बच्चे के लिए नुकसानदेह है अब कहा  जा रहा है कि माँ का पहला दूध अमृत है। एक मशहूर टूथपेस्ट का विज्ञापन याद होगा जो टूथपेस्ट में नमक को हानिकारक कहता था आज वही टूथपेस्ट पूछता है कि क्या तुम्हारे  टूथपेस्ट में नमक नहीं है ? कुछ समझ में आया ? हाँ भारतीय विज्ञानं विधा और शोध जो हज़ारों साल पुराने  हैं उन्हें व्यापारिक कंपनियों ने मिटाने की भरपूर कोशिश की। दादी माँ के नुस्खों की हँसी उड़ाई गयी  जब तक हम इन व्यापारी कंपनियों के मकसद को समझ पाते तब तक 1-2 पीढ़ी उसका दुष्परिणाम झेल चुकी होती है और हर दशक -हर पीढ़ी एक नयी बीमारी से जूझती नज़र आती है फिर उस बीमारी  की दवा वही लोग बनाते हैं जो उस बीमारी के जनक थे  यानि आपका पैसा उन्ही की जेब में पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहता है।
            चलिए एक उदाहरण लेते  हैं तेल या घी हमारे शरीर की मौलिक  जरूरत है शरीर का लगभग  15-16 हिस्सा वसा है 60 % ब्रेन यानि दिमाग वसा पर आधारित है.वसा में घुलनशील  विटामिन विटामिन A D E K  बिना वसा के  अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता । यही वजह है कि रोजमर्रा के भोजन में तेल और घी का समावेश हमारे पूर्वजों ने किया था।  जिस तरह के मौसम में लोग रह रहे थे उस तरह के तैलीय पौधे उस जगह प्रकृति ने अपने आप उगाए जैसे सरसों -राई  , मूंगफली ,तिल ,नारियल ,अलसी इत्यादि जिसका प्रयोग सदियों से हम करते आ रहे थे. अचानक पश्चिम के साइंसदानों ने ये शोध पेश किया गया कि ब्लड प्रेशर का कारण यही तेल और घी हैं जिनमे कोलेस्ट्रॉल होता है और जो धमनियों में जम कर ह्रदय गति को बढ़ा देता है. देखते देखते बाजार में कोलेस्ट्रॉल फ्री , रिफाइंड तेल , सिंथेटिक घी की भरमार हो गयी और सदियों से प्रयोग होने वाले प्राकृतिक तेल उनके सामने बौने हो गए। जबकि सच्चाई ये थी कि कोलेस्ट्रॉल पौधे में पैदा ही नहीं होता वो तो लिवर से मांसपेशी में और वहां से लिवर में rotate होता है । कोलेस्ट्रॉल को दुश्मन मान लिया गया जबकि कोलेस्ट्रॉल कई हॉर्मोन (स्टेरॉयड व् जनन प्रक्रिया से जुड़े हॉर्मोन )बनाने के लिए जिम्मेदार था जिसमें डिप्रेशन से बचने का हार्मोन भी शामिल था।  जितना शरीर में वसा की मात्रा घटी दिमाग ने अपनी क्षमता खोई फलस्वरूप तनाव चिंता अनिद्रा रोग बढ़ते गए और नई पीढ़ी को बहुत तेजी से डिप्रेशन ने अपनी गिरफ्त में लिया।  डिप्रेशन और कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा कम्पनियाँ रातो रात मालामाल हो गयीं। कारण साफ़ था कोलेस्ट्रॉल के नाम पे  कोलेस्ट्रॉल फ्री तेल बेचे गए पारम्परिक तेल हटाए गए , घी खाने से मना किया गया परिणाम -न तो ब्लड प्रेशर से मुक्ति मिली न ही तनाव से उल्टा हॉर्मोन व् विटामिन की कमी से होने वाले रोग भी बढ़ गए । एसेंशियल फैटी एसिड शरीर को बाहर से देना अनिवार्य होता है चाहे वो ओमेगा 3 हो या ओमेगा 6 . जितना unsaturated फैटी एसिड जरूरी है उतना ही सैचुरेटेड दोनों का संतुलन भी और हाँ रिसर्च तो यहाँ तक कह रही है कि कोलेस्ट्रॉल ह्रदय रोग का कारण नहीं है (रिफरेन्स -mercola .com ). यानि घूम फिर के दादी नानी के भारतीय फार्मूले सही सिद्ध हुए और भारतीय रसोई का विज्ञानं महासत्य साबित हुआ।अब तो समझ में आ गया होगा कि बाप दादा घी खाने और बच्चों की तेल  मालिश के लिए क्यों कहते थे।  इन सबके बावजूद हमें यह समझना होगा कि जितना शरीर की मांग है उतना ही घी या तेल खाया जाय और जितना हम खा रहे हैं उसको पचाने के लिए उसी मात्रा में शारीरिक  श्रम अनिवार्य है। एक बात और तेल या घी को बार बार उबालने से उसके गुण  नष्ट हो जाते हैं और हानिकारक प्रभाव बढ़ जाते हैं। अगली बार एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे।  आपका -डॉ ललित  (विशेष सहयोग डॉ अमित शुक्ल 9412957166  एवं डॉ RK पांडेय 9760534532  ).