Saturday, May 23, 2020

कोरोनिए-

लघु कथा

 *कोरोनिए*-

(साभार जेएमडी, सभी
 पात्र व घटना काल्पनिक)

 आज फिर जगई अचंभे में था बब्बन अपनी कार पे चिपकहवा पास लगा कर थोड़ी देर पहले शहर की तरफ जाते दिखा था जबकि घरैतिन के इलाज के लिए पिछले दस दिन से जगई को पास नहीं मिल पा रहा था।  वैसे शहर में लॉक डाउन का चरण ही बदला था बब्बन का चाल चलन वही था जो ताला बन्दी के पहले था । बब्बन को जब से पिछले साल दारू का ठेका मिला था तब से उनमें संस्कारिक परिवर्तन का उबाल देखने को मिल रहा था । माथे पर लंबा लाल तिलक और गले में केसरिया गमछा , मुंह में पान की गिलौरी , झुक कर बिना बोले सब को प्रणाम  । बब्बन अब गली के गुंडे से बब्बन भैया हो गए थे । जब से संस्कारों का उदय हुआ था तब से उनके आगे पीछे गली मोहल्ला संस्करण चिंटू पिंटू के नाम बदल कर चिंटू भैया और पिंटू भैया हो गए थे
  बब्बन भैया लॉक डाउन के पहले सोमरस की होम डिलीवरी में पूरे इलाके को मात कर चुके थे लेकिन लॉक डाउन के चलते सरकार ने दुकान पर मातम ला दिया था 4-4 दुकान के सेल्समैन और 10-15 होम डिलीवरी के लाखैरे सब बब्बन भैया के संस्कारों पर पल रहे थे । दुकान के पीछे चलने वाली चखना रेस्टोरेंट भी लालटेन में घासलेट की आखिरी बूंद को हजम कर भभक भभक कर अन्तिम सांसे गिन रहा था ।
  जगई का कलुआ वैसे तो एक कुत्ता प्रजाति का मरियल सा पिल्ला था लेकिन जब से चखना रेस्टोरेंट जाने लगा था तब से जगई की तरफ टांग उठाने में उसे संकोच नहीं होता था । आज जैसे बब्बन भैया अपनी गाड़ी से निकले तो कलुआ ने कंधे तक शस्त्र उठा कर सलामी दी । इस सलामी ने जगई को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर बात क्या है ? इस पास की बब्बन भैया को जरूरत क्या पड़ गई ? कलुआ की सलामी से इस बात के संकेत मिल गए थे कि बब्बन भैया किसी बड़ी समाज सेवा को अंजाम दे रहे थे। बब्बन भैया की गाड़ी कुछ दूर जाकर उस चौराहे पर रुक गई जहां वर्दी वाले कोरोना वारियर जमे हुए थे । थे तो वो दूसरे थाने के लेकिन बब्बन भैया लॉक डाउन के पहले दिन से ही सुबह शाम उनका ध्यान रख रहे थे । गाड़ी में ब्रेक लगते ही बब्बन भैया के चिंटू और पिंटू मुंह पर गमछा लपेटे पानी की बोतल और पूड़ी सब्जी का पैकेट लेकर साहब की सेवा में पहुंच गए। गाड़ी में बैठे बैठे ही शीशा खोलकर पान थूक कर  बब्बन भैया चिल्लाए "साहब आज दो ढाई हजार गरीबों को भोजन देना था इसलिए भंडारा तैयार करने में देर हो गई " । 'कौनौ बात नहीं दरोगा जी खेखार कर बोले । इंहा सबेरे से सूखे जा रहे थे तुम आए तो जान में जान आई । बहुते नेक काम कर रहे हो बब्बन  । तुम इस इलाके के लोगों के लिए मसीहा हो मसीहा '।
  बब्बन दोनों हाथ जोड़ कर दरोगा जी के आशीर्वाद से कृत कृत्य हो रहे थे उधर चिंटू और पिंटू ने जब तक दरोगा जी और उनकी टीम को गले तक पूड़ी नहीं खिला दी तब तक आगे नहीं बढ़े । बब्बन अब दोनों चेलों को गाड़ी में ठूंस कर आगे गरीब बस्ती में पहुंच गए वहां पहले से ही खाने वालों की लंबी कतार लग गई थी सोशल डिस्टेंस के मंत्र के साथ चिंटू पिंटू बोनट पर रख कर एक एक कर गरीबों को खाना बांट रहे थे । पीछे से धीरे से बगल  की दुकान का शटर उठा कर मगलू ने चार - पांच  बड़े गत्ते  जिस पर निःशुल्क भोजन सेवा लिखा था बड़ी नजाकत से गाड़ी से खींच कर शटर के अंदर सरका दिए । खाना बांट कर बब्बन भैया ने बड़े प्यार से मगलू को समझा दिया कि जो संभ्रांत लोग शरम के मारे खाना लेने नहीं आ पाए उन्हें अपने सेवादारों से घर तक भिजवा देना । मगलू होम डिलीवरी का पुराना उस्ताद था उसने कनखियों से बब्बन को आंख मारकर सब समझने का संकेत दे दिया तो बब्बन तसल्ली से मुस्कराए ।
  गाड़ी को लौटने में तीन घंटा लगा लेकिन तब तक कलुआ एकटक उस राह को ही तके जा रहा था जैसे ही गाड़ी जगई के चौराहे पर आईं कलुआ ने बाजू शस्त्र किया और साष्टांग हो गया । बब्बन भैया ने धीरे से बचा हुआ चखना कलुआ को सरकाया तो जगई ने लंबी सांस ली और बुद बुदाया हे भगवान कोरोनियो के हाथ कितने लंबे हैं ? ठेका बन्द है लेकिन दुकान घाटे में नहीं है। 

Monday, May 4, 2020

इमेज-

इमेज - 

(साभार: JM दुनिया से)

  इंचार्ज साहब की जय हो पुलिस प्रशाशन जिन्दाबाद के नारे गूंज रहे थे महकमे के लोगों पर हर गली में फूलों की बरसात हो रही थी । सब गदगद थे इंचार्ज साहब से । टूटी चारपाई पर पड़े जगई ने ध्यान से देखा तो वर्दी में इलाके के नए थानेदार साहब नजर आए मुंह पर मास्क लगाए थे उनके आगे पीछे लगभग बीस पुलिस वाले हाथों में खाने का पैकेट लिए चल रहे थे । जो भी गली में गरीब जैसा दिख जा रहा था उसे पकड़ पकड़ कर खाना पकड़ा कर बढ़िया सी फोटो ग्राफी व वीडियो ग्राफी हो रही थी ।जगई पुलिस का यह नया चेहरा देख कर दंग था होली के समय जब वो फैक्ट्री से काम कर के लौट रहा था तो एक कार ने उसे टक्कर मार दी थी जब वो एफ आई आर कराने थाने पहुंचा था तो इन्हीं थानेदार साहब ने दिन भर बैठा के रखा था भूखे प्यासे बैठे बैठे जब न रहा गया तो इनसे कई बार हाथ पैर जोड़े थे कि साहब एप्लिकेशन तो लेे लो लेकिन साहब न पसीजे । जब रात के 10 बज गए तो बोले कि वो नगर सेठ के बेटे की गाड़ी थी उसके खिलाफ मामला दर्ज नहीं कर सकते और नुकसान ही कितना हुआ थोड़ा तुम टूटे हो और  सायकिल की रिम ही तो टूटी है रात 12 बजे गाली देकर धक्के मारकर थाने से भगा दिया था इन्होंने । हां यही थे आज भले ही मास्क लगाए हों लेकिन थे यही साहब ।पोस्टिंग के कुछ ही दिनों में साहब की गाथा पूरे इलाके में गूंजने लगी थी जिस गांव जाते थे वहां की मुर्गियों की संख्या अगले दिन घट जाती थी । नेताओ और कप्तान साहब के बड़े चहेते थे इंचार्ज साहब । खनन की और जंगलात से आने वाली गाड़ियों पर साहब की ऐंठती मूंछों का रहमोकरम था । मलाई मूंछ में थी या मूंछ मलाई में ये कहना कठिन था । किसी की क्या मजाल जो साहब की शान में गुस्ताखी कर दे । पत्रकार भी आगे पीछे खुशामद में लगे रहते थे आज वही पत्रकार इंचार्ज साहब की धांसू फोटो छापने में लगे थे । अरे साहब पुलिस ही काम आती है वो न हो तो जनता भूखों मर जाय । इंचार्ज साहब और उनकी पुलिस भगवान बन कर मोहल्ले मोहल्ले घूम रहे थे घूमना भी उन्हीं को था क्योंकि रोका भी उन्हीं ने था और इससे बढ़िया मौका क्या होता अपनी और पुलिस महकमे की इमेज बनाने का । फेसबुक पर लाइव वीडियो और साहब की जयजयकार कप्तान साहब और डीजीपी साहब तक पहुंच गई थी ।साहब की दरिया दिली देखकर  लाकडाउन में ढील के समय जगई साहब के पास फिर वही एप्लीकेशन लेकर थाने पहुंच गया  । फिर आ गया तू अबे तुझे पता नहीं जो खाना मैंने तुझे लाक डाउन में खिलाया था वो थाने को वहीं से बन कर आता था जिसके खिलाफ तू एफ आई आर लेकर आया है । "साहब लेकिन अपराध तो अपराध है" जगई बोला, मेरे अस्पताल का खर्चा सात हजार रूपए आया आज भी उठ नहीं पा रहा काम पर भी नहीं जा पा रहा हूं । 
  चल चल तेरी एफ आई आर के चक्कर में इलाके का सेठ खाना देना बन्द कर देगा । फिर मेरी इमेज कैसे बनेगी इसी साल प्रमोशन भी लेना है । अपना लाक डाउन भी तो ख़तम करना है डीजीपी साहब ने सभी थाने को पुलिस की इमेज बनाने को कह रखा है । चलो निकलो यहां से मुझे मलिन बस्ती में खाना बांटने जाना है ये कहते हुए इंचार्ज साहब गाड़ी में अपने मातहतों के साथ खाना बांटने निकल गए उधर जगई अपनी टूटी कमर और टूटी सायकिल के साथ वापस घर लौट पड़ा वो बड़ी देर से ये समझने की कोशिश कर रहा था कि ये इमेज आखिर क्या बला होती है जिसके लिए बड़े साहब से लेकर इंचार्ज साहब तक  इतने परेशान हैं।