Thursday, June 11, 2020

तुम्हें कुछ भी नहीं आता -

रहा तालीम का ता उम्र हावी सिलसिला हम पर
मगर फिर भी मिले ताने, तुम्हें कुछ भी नहीं आता

शिकायत इस तरह कुछ मेहरबां, होती रहीं अक्सर
लिखावट माशा अल्ला है, मगर पढ़ना नहीं आता

फकत चलने की चाहत में, फिसलती जिंदगी हर पल
गिरे कुछ इस कदर साहब, कि अब उठना नहीं आता

कभी देखा नहीं खुद को, रहे रूठे हमीं से हम
गजब चिल्ला रही दुनिया , मुझे सुनना नहीं आता

नजर छुपते छुपाते, रूह से दीदार कर बैठी
उसे पूजा नही आती,मुझे सजदा नही आता

हुए जब रू बरू दिल से, हक़ीक़त आ गई आगे
डरे सहमे कदम हरदम, तुम्हे जीना नहीं आता

तुम्हारे खत में थी जो इक पहेली, उसमें उलझा हूं
तुम्हें लिखना नहीं आता, हमें पढ़ना नहीं आता


खुलासा ये हुआ आख़ीर में, क्या खाक पढ़ लिक्खे
तुम्हें ये भी नहीं आता, तुम्हें वो भी नहीं आता। - ललित