Wednesday, May 4, 2022

 भगवान कौन :-


ये सबको पता है कि  दिग्गज क्रिकेटर चेतन चौहान जी कोरोना से लड़ाई हार गए लेकिन क्या हमें    पता है कुछ लड़ाई समाज भी हार रहा है खासकर भारतीय समाज ।

  

   अजीत सिंह जी जो उत्तर प्रदेश सरकार में एक उच्च स्तर के अधिकारी हैं उन्होंने अपनी फेसबुक वाल में चेतन चौहान के साथ की गई अभद्रता पर व्यथित होकर  कुछ लिखा तो एक डॉक्टर साहब ने लिखा डॉक्टर के लिए "मरीज मरीज होता है" यहां तक तो बात ठीक थी लेकिन कई अन्य लोगों ने इस बात को लिखने में हिम्मत दिखाई कि उनके साथ डॉक्टर का व्यवहार बहुत गंदा था ।

 

 ये बात सामान्य नहीं है लेकिन इसे समझना इतना आसान भी नहीं है ये जो कुछ मै लिखने जा रहा हूं वो भी हिम्मत करके क्योंकि मुझे भी डॉक्टर खासकर डॉक्टर दोस्तों से दुश्मनी मोल नहीं लेनी है । इस पूरी डॉक्टर की फौज में कई तरह के डॉक्टर होते हैं एलोपैथी वाले अलग ,आयुर्वेद वाले अलग , होम्यो वाले अलग वगैरह वगैरह ।

  

 प्रायः जिन डॉक्टरों पर रूखे और गंदे व्यवहार का आरोप सामने आया उनकी पढ़ाई एलोपैथी वाली थी यानी एमबीबीएस । पीजीआई में भी चेतन जी के साथ वहीं कनेक्शन मिला । ऐसा क्यों होता है उसको जानने के लिए कई डॉक्टर्स से जब मैंने यह जानना चाहा कि क्या आपको ये भी पढ़ाया जाता है कि मरीज से किस तरह का व्यवहार किया जाय तो एमबीबीएस वालों का जवाब था  " नहीं" "हम तो ट्रेनिंग में ही सीखते हैं क्या करना है जैसा सीनियर करते हैं वैसा हम भी करते हैं ।" 

   यही बात आयुर्वेद के डॉक्टर से जब पूछी गई तो उन्होंने बताया कि हमारे पहले पाठ्य क्रम में ही सुश्रुत का वह श्लोक पढ़ाया जाता है जिसमें चिकित्सक को पहली शर्त ही यही दी जाती है कि वह रोगी से पुत्र वत व्यवहार करे , अर्थात जिस तरह छोटे शिशु को पिता पालता है ठीक उसी तरह चिकित्सक को रोगी से व्यवहार करना है ये स्नेह भी तो उपचार करता है न। होम्योपैथिक चिकित्सक आधे घंटे मरीज से बात करने में लगाता है जिससे मरीज का भरोसा बढ़ जाता है । एलोपैथी में यही कमी रह जाती है जैसे बायोलॉजी के स्टूडेंट को डिसेक्शन करते करते मेंढक में जीव नजर आना बन्द हो जाता है वैसे ही इन डॉक्टर को आदमी में आदमी नजर आना बन्द हो जाता है। बस अंतर यहीं से आरम्भ हो जाता है । सारा कोर्स लगभग वही लेकिन सोच  का अंतर बड़ा अंतर पैदा कर देता है । 


    ये जो दोनों कोर्स में सोच और पढ़ाई का अंतर है इसे ही परवरिश या संस्कार कहते हैं अगर चेतन चौहान जी के साथ वो  वाकया हुआ तो उसमें डॉक्टर से ज्यादा उस माहौल की गलती है जहां उन्हें यह घोट के पिलाया और सिखाया जाता है कि तुम भगवान हो और मरीज को जिस तरह चाहो व्यवहार करो ।आखिर जो पैसा लेकर अपनी सेवा दे रहा वो भगवान कैसे हुआ । भगवान तो मरीज हुआ जिसके आने से उसे रोजी रोटी मिली । जिसके आने से उसके फाइव स्टार अस्पताल चल रहे ।


  मेडिकल प्रोफ़ेशनल खासकर एमबीबीएस जिस तरह व्यवसाय पर उतारू हो गए हैं उस दौर में वो भगवान के दर्जे से बनिया के दर्जे पर आ गए हैं फुल बिजनेस , रूड बिहैव ,ये तो बानगी हैं अगर इनकी परवरिश ऐसे ही रही तो आगे बहुत कुछ देखने को मिलेगा। विदेश के लोग तो इसके आदी हैं पर  भारतीय समाज अभी नहीं हुआ ।

 जिस तरह कॉन्वेंट वालों से मां बाप की सेवा नहीं होती उसी तरह एलो. वालों से मरीज की इज्जत नहीं होती । क्योंकि भगवान को क्या पड़ी किसी को सम्मान देने की ।

-( साभार जेएमडी)