Monday, May 4, 2020

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(साभार: JM दुनिया से)

  इंचार्ज साहब की जय हो पुलिस प्रशाशन जिन्दाबाद के नारे गूंज रहे थे महकमे के लोगों पर हर गली में फूलों की बरसात हो रही थी । सब गदगद थे इंचार्ज साहब से । टूटी चारपाई पर पड़े जगई ने ध्यान से देखा तो वर्दी में इलाके के नए थानेदार साहब नजर आए मुंह पर मास्क लगाए थे उनके आगे पीछे लगभग बीस पुलिस वाले हाथों में खाने का पैकेट लिए चल रहे थे । जो भी गली में गरीब जैसा दिख जा रहा था उसे पकड़ पकड़ कर खाना पकड़ा कर बढ़िया सी फोटो ग्राफी व वीडियो ग्राफी हो रही थी ।जगई पुलिस का यह नया चेहरा देख कर दंग था होली के समय जब वो फैक्ट्री से काम कर के लौट रहा था तो एक कार ने उसे टक्कर मार दी थी जब वो एफ आई आर कराने थाने पहुंचा था तो इन्हीं थानेदार साहब ने दिन भर बैठा के रखा था भूखे प्यासे बैठे बैठे जब न रहा गया तो इनसे कई बार हाथ पैर जोड़े थे कि साहब एप्लिकेशन तो लेे लो लेकिन साहब न पसीजे । जब रात के 10 बज गए तो बोले कि वो नगर सेठ के बेटे की गाड़ी थी उसके खिलाफ मामला दर्ज नहीं कर सकते और नुकसान ही कितना हुआ थोड़ा तुम टूटे हो और  सायकिल की रिम ही तो टूटी है रात 12 बजे गाली देकर धक्के मारकर थाने से भगा दिया था इन्होंने । हां यही थे आज भले ही मास्क लगाए हों लेकिन थे यही साहब ।पोस्टिंग के कुछ ही दिनों में साहब की गाथा पूरे इलाके में गूंजने लगी थी जिस गांव जाते थे वहां की मुर्गियों की संख्या अगले दिन घट जाती थी । नेताओ और कप्तान साहब के बड़े चहेते थे इंचार्ज साहब । खनन की और जंगलात से आने वाली गाड़ियों पर साहब की ऐंठती मूंछों का रहमोकरम था । मलाई मूंछ में थी या मूंछ मलाई में ये कहना कठिन था । किसी की क्या मजाल जो साहब की शान में गुस्ताखी कर दे । पत्रकार भी आगे पीछे खुशामद में लगे रहते थे आज वही पत्रकार इंचार्ज साहब की धांसू फोटो छापने में लगे थे । अरे साहब पुलिस ही काम आती है वो न हो तो जनता भूखों मर जाय । इंचार्ज साहब और उनकी पुलिस भगवान बन कर मोहल्ले मोहल्ले घूम रहे थे घूमना भी उन्हीं को था क्योंकि रोका भी उन्हीं ने था और इससे बढ़िया मौका क्या होता अपनी और पुलिस महकमे की इमेज बनाने का । फेसबुक पर लाइव वीडियो और साहब की जयजयकार कप्तान साहब और डीजीपी साहब तक पहुंच गई थी ।साहब की दरिया दिली देखकर  लाकडाउन में ढील के समय जगई साहब के पास फिर वही एप्लीकेशन लेकर थाने पहुंच गया  । फिर आ गया तू अबे तुझे पता नहीं जो खाना मैंने तुझे लाक डाउन में खिलाया था वो थाने को वहीं से बन कर आता था जिसके खिलाफ तू एफ आई आर लेकर आया है । "साहब लेकिन अपराध तो अपराध है" जगई बोला, मेरे अस्पताल का खर्चा सात हजार रूपए आया आज भी उठ नहीं पा रहा काम पर भी नहीं जा पा रहा हूं । 
  चल चल तेरी एफ आई आर के चक्कर में इलाके का सेठ खाना देना बन्द कर देगा । फिर मेरी इमेज कैसे बनेगी इसी साल प्रमोशन भी लेना है । अपना लाक डाउन भी तो ख़तम करना है डीजीपी साहब ने सभी थाने को पुलिस की इमेज बनाने को कह रखा है । चलो निकलो यहां से मुझे मलिन बस्ती में खाना बांटने जाना है ये कहते हुए इंचार्ज साहब गाड़ी में अपने मातहतों के साथ खाना बांटने निकल गए उधर जगई अपनी टूटी कमर और टूटी सायकिल के साथ वापस घर लौट पड़ा वो बड़ी देर से ये समझने की कोशिश कर रहा था कि ये इमेज आखिर क्या बला होती है जिसके लिए बड़े साहब से लेकर इंचार्ज साहब तक  इतने परेशान हैं।

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