तेल देखो तेल की धार देखो -
हम कभी कभी कुछ चीजों पर आँख मूँद के विश्वास कर लेते हैं क्योंकि हमारे पास उसको जांचने का कोई माध्यम नहीं होता। एक दौर था जब पश्चिम के वैज्ञानिकों ने कहा कि माँ का पहला दूध बच्चे के लिए नुकसानदेह है अब कहा जा रहा है कि माँ का पहला दूध अमृत है। एक मशहूर टूथपेस्ट का विज्ञापन याद होगा जो टूथपेस्ट में नमक को हानिकारक कहता था आज वही टूथपेस्ट पूछता है कि क्या तुम्हारे टूथपेस्ट में नमक नहीं है ? कुछ समझ में आया ? हाँ भारतीय विज्ञानं विधा और शोध जो हज़ारों साल पुराने हैं उन्हें व्यापारिक कंपनियों ने मिटाने की भरपूर कोशिश की। दादी माँ के नुस्खों की हँसी उड़ाई गयी जब तक हम इन व्यापारी कंपनियों के मकसद को समझ पाते तब तक 1-2 पीढ़ी उसका दुष्परिणाम झेल चुकी होती है और हर दशक -हर पीढ़ी एक नयी बीमारी से जूझती नज़र आती है फिर उस बीमारी की दवा वही लोग बनाते हैं जो उस बीमारी के जनक थे यानि आपका पैसा उन्ही की जेब में पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहता है।
चलिए एक उदाहरण लेते हैं तेल या घी हमारे शरीर की मौलिक जरूरत है शरीर का लगभग 15-16 हिस्सा वसा है 60 % ब्रेन यानि दिमाग वसा पर आधारित है.वसा में घुलनशील विटामिन विटामिन A D E K बिना वसा के अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता । यही वजह है कि रोजमर्रा के भोजन में तेल और घी का समावेश हमारे पूर्वजों ने किया था। जिस तरह के मौसम में लोग रह रहे थे उस तरह के तैलीय पौधे उस जगह प्रकृति ने अपने आप उगाए जैसे सरसों -राई , मूंगफली ,तिल ,नारियल ,अलसी इत्यादि जिसका प्रयोग सदियों से हम करते आ रहे थे. अचानक पश्चिम के साइंसदानों ने ये शोध पेश किया गया कि ब्लड प्रेशर का कारण यही तेल और घी हैं जिनमे कोलेस्ट्रॉल होता है और जो धमनियों में जम कर ह्रदय गति को बढ़ा देता है. देखते देखते बाजार में कोलेस्ट्रॉल फ्री , रिफाइंड तेल , सिंथेटिक घी की भरमार हो गयी और सदियों से प्रयोग होने वाले प्राकृतिक तेल उनके सामने बौने हो गए। जबकि सच्चाई ये थी कि कोलेस्ट्रॉल पौधे में पैदा ही नहीं होता वो तो लिवर से मांसपेशी में और वहां से लिवर में rotate होता है । कोलेस्ट्रॉल को दुश्मन मान लिया गया जबकि कोलेस्ट्रॉल कई हॉर्मोन (स्टेरॉयड व् जनन प्रक्रिया से जुड़े हॉर्मोन )बनाने के लिए जिम्मेदार था जिसमें डिप्रेशन से बचने का हार्मोन भी शामिल था। जितना शरीर में वसा की मात्रा घटी दिमाग ने अपनी क्षमता खोई फलस्वरूप तनाव चिंता अनिद्रा रोग बढ़ते गए और नई पीढ़ी को बहुत तेजी से डिप्रेशन ने अपनी गिरफ्त में लिया। डिप्रेशन और कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा कम्पनियाँ रातो रात मालामाल हो गयीं। कारण साफ़ था कोलेस्ट्रॉल के नाम पे कोलेस्ट्रॉल फ्री तेल बेचे गए पारम्परिक तेल हटाए गए , घी खाने से मना किया गया परिणाम -न तो ब्लड प्रेशर से मुक्ति मिली न ही तनाव से उल्टा हॉर्मोन व् विटामिन की कमी से होने वाले रोग भी बढ़ गए । एसेंशियल फैटी एसिड शरीर को बाहर से देना अनिवार्य होता है चाहे वो ओमेगा 3 हो या ओमेगा 6 . जितना unsaturated फैटी एसिड जरूरी है उतना ही सैचुरेटेड दोनों का संतुलन भी और हाँ रिसर्च तो यहाँ तक कह रही है कि कोलेस्ट्रॉल ह्रदय रोग का कारण नहीं है (रिफरेन्स -mercola .com ). यानि घूम फिर के दादी नानी के भारतीय फार्मूले सही सिद्ध हुए और भारतीय रसोई का विज्ञानं महासत्य साबित हुआ।अब तो समझ में आ गया होगा कि बाप दादा घी खाने और बच्चों की तेल मालिश के लिए क्यों कहते थे। इन सबके बावजूद हमें यह समझना होगा कि जितना शरीर की मांग है उतना ही घी या तेल खाया जाय और जितना हम खा रहे हैं उसको पचाने के लिए उसी मात्रा में शारीरिक श्रम अनिवार्य है। एक बात और तेल या घी को बार बार उबालने से उसके गुण नष्ट हो जाते हैं और हानिकारक प्रभाव बढ़ जाते हैं। अगली बार एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे। आपका -डॉ ललित (विशेष सहयोग डॉ अमित शुक्ल 9412957166 एवं डॉ RK पांडेय 9760534532 ).
हम कभी कभी कुछ चीजों पर आँख मूँद के विश्वास कर लेते हैं क्योंकि हमारे पास उसको जांचने का कोई माध्यम नहीं होता। एक दौर था जब पश्चिम के वैज्ञानिकों ने कहा कि माँ का पहला दूध बच्चे के लिए नुकसानदेह है अब कहा जा रहा है कि माँ का पहला दूध अमृत है। एक मशहूर टूथपेस्ट का विज्ञापन याद होगा जो टूथपेस्ट में नमक को हानिकारक कहता था आज वही टूथपेस्ट पूछता है कि क्या तुम्हारे टूथपेस्ट में नमक नहीं है ? कुछ समझ में आया ? हाँ भारतीय विज्ञानं विधा और शोध जो हज़ारों साल पुराने हैं उन्हें व्यापारिक कंपनियों ने मिटाने की भरपूर कोशिश की। दादी माँ के नुस्खों की हँसी उड़ाई गयी जब तक हम इन व्यापारी कंपनियों के मकसद को समझ पाते तब तक 1-2 पीढ़ी उसका दुष्परिणाम झेल चुकी होती है और हर दशक -हर पीढ़ी एक नयी बीमारी से जूझती नज़र आती है फिर उस बीमारी की दवा वही लोग बनाते हैं जो उस बीमारी के जनक थे यानि आपका पैसा उन्ही की जेब में पीढ़ी दर पीढ़ी जाता रहता है।
चलिए एक उदाहरण लेते हैं तेल या घी हमारे शरीर की मौलिक जरूरत है शरीर का लगभग 15-16 हिस्सा वसा है 60 % ब्रेन यानि दिमाग वसा पर आधारित है.वसा में घुलनशील विटामिन विटामिन A D E K बिना वसा के अपना प्रभाव नहीं दिखा सकता । यही वजह है कि रोजमर्रा के भोजन में तेल और घी का समावेश हमारे पूर्वजों ने किया था। जिस तरह के मौसम में लोग रह रहे थे उस तरह के तैलीय पौधे उस जगह प्रकृति ने अपने आप उगाए जैसे सरसों -राई , मूंगफली ,तिल ,नारियल ,अलसी इत्यादि जिसका प्रयोग सदियों से हम करते आ रहे थे. अचानक पश्चिम के साइंसदानों ने ये शोध पेश किया गया कि ब्लड प्रेशर का कारण यही तेल और घी हैं जिनमे कोलेस्ट्रॉल होता है और जो धमनियों में जम कर ह्रदय गति को बढ़ा देता है. देखते देखते बाजार में कोलेस्ट्रॉल फ्री , रिफाइंड तेल , सिंथेटिक घी की भरमार हो गयी और सदियों से प्रयोग होने वाले प्राकृतिक तेल उनके सामने बौने हो गए। जबकि सच्चाई ये थी कि कोलेस्ट्रॉल पौधे में पैदा ही नहीं होता वो तो लिवर से मांसपेशी में और वहां से लिवर में rotate होता है । कोलेस्ट्रॉल को दुश्मन मान लिया गया जबकि कोलेस्ट्रॉल कई हॉर्मोन (स्टेरॉयड व् जनन प्रक्रिया से जुड़े हॉर्मोन )बनाने के लिए जिम्मेदार था जिसमें डिप्रेशन से बचने का हार्मोन भी शामिल था। जितना शरीर में वसा की मात्रा घटी दिमाग ने अपनी क्षमता खोई फलस्वरूप तनाव चिंता अनिद्रा रोग बढ़ते गए और नई पीढ़ी को बहुत तेजी से डिप्रेशन ने अपनी गिरफ्त में लिया। डिप्रेशन और कोलेस्ट्रॉल कम करने की दवा कम्पनियाँ रातो रात मालामाल हो गयीं। कारण साफ़ था कोलेस्ट्रॉल के नाम पे कोलेस्ट्रॉल फ्री तेल बेचे गए पारम्परिक तेल हटाए गए , घी खाने से मना किया गया परिणाम -न तो ब्लड प्रेशर से मुक्ति मिली न ही तनाव से उल्टा हॉर्मोन व् विटामिन की कमी से होने वाले रोग भी बढ़ गए । एसेंशियल फैटी एसिड शरीर को बाहर से देना अनिवार्य होता है चाहे वो ओमेगा 3 हो या ओमेगा 6 . जितना unsaturated फैटी एसिड जरूरी है उतना ही सैचुरेटेड दोनों का संतुलन भी और हाँ रिसर्च तो यहाँ तक कह रही है कि कोलेस्ट्रॉल ह्रदय रोग का कारण नहीं है (रिफरेन्स -mercola .com ). यानि घूम फिर के दादी नानी के भारतीय फार्मूले सही सिद्ध हुए और भारतीय रसोई का विज्ञानं महासत्य साबित हुआ।अब तो समझ में आ गया होगा कि बाप दादा घी खाने और बच्चों की तेल मालिश के लिए क्यों कहते थे। इन सबके बावजूद हमें यह समझना होगा कि जितना शरीर की मांग है उतना ही घी या तेल खाया जाय और जितना हम खा रहे हैं उसको पचाने के लिए उसी मात्रा में शारीरिक श्रम अनिवार्य है। एक बात और तेल या घी को बार बार उबालने से उसके गुण नष्ट हो जाते हैं और हानिकारक प्रभाव बढ़ जाते हैं। अगली बार एक और महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे। आपका -डॉ ललित (विशेष सहयोग डॉ अमित शुक्ल 9412957166 एवं डॉ RK पांडेय 9760534532 ).
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