Tuesday, August 21, 2012

मंहगाई का अर्थशास्त्र-

मंहगाई से आम आदमी त्रस्त है हुक्मरानों  को लगता है कि जो उपभोक्ता भुगतान कर रहा है वह किसानों को मिल रहा है इसलिए किसान को फायदा हो रहा होगा . किन्तु हालात उल्टे  हैं किसान आत्महत्या कर रहे हैं खेती घाटे का सौदा बनती  जा रही है .दरअसल मंहगाई का फायदा दलाल ,ट्रांसपोर्टर एवं बड़े आढ़तिए उठा रहे हैं जो किसान से कम दर पर माल खरीद कर,स्टोरेज कर  ऊँचे दामों पर बेचते हैं ,आंकड़ों की बात करें तो किसान 10-15 रूपये  र्किलो चावल बेचता है और हम 30-35 रूपये में खरीदते  हैं बीच का पैसा किसके पास गया ? इसी तरह टमाटर 3-5 रूपये किलो में किसान के पास से चलता है और 35 रूपये किलो में बिकता है बीच का पैसा कहाँ गया? .शंका हो तो सरकारी मंडी  के रेट देखिये और जिस रेट पर आप सब्जी,आटा ,दाल चावल खरीद रहे हो उस से तुलना करिए .ये है मंहगाई का अर्थशास्त्र .समझ में आया हो तो समझ लेना और हुक्मरानों को भी समझा देना . मजेदार तथ्य यह है कि इस से निपटने का कोई ख़ास कानून भी मौजूद  नहीं है .-सत्यमेव जयते 

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