किसी भी धर्म के नाम पर पशु हत्या सभ्य समाज पर प्रश्न चिन्ह है चाहे बकरीद हो या देवी पूजा। किसी कानून के बजाय धार्मिक गुरुओं व् समाज सुधारकों को स्वयं पहल करनी होगी। बेजुबानों की कीमत पर हम त्यौहार क्यों मनाते हैं ? क्या उत्सव का यही एक तरीका बचा है.?
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