Friday, March 17, 2017

स्कूल और हम

         शिक्षा पर जैसे ही बात शुरू होती है हम अचानक से सजग हो जाते हैं क्योंकि हमे पता है कि देश के विकास व् सभ्यता की चाबी यही कहीं है शिक्षा में हम बदलना तो बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन फिर सोचते हैं कि सब कुछ सरकार करे हमारे अकेले से क्या होगा।  एक सच्चाई ये भी है कि जितने प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में हुए उतने शायद ही कहीं हुए हों हर एक को अपना प्रयोग अनूठा लगता है।हमारी उम्मीद से जो अलग प्रयोग होता है वो हमे पसंद नही आता इस बदलाव की तमन्ना में एक सत्य यह है कि सरकारी स्कूल बाजार की दौड़ में पिछड़ रहे हैं और आम जनमानस की आलोचना का शिकार हो रहे हैं।
          इससे पहले कि सरकारी और प्राइवेट स्कूल की बात की जाय उनकी संरचना को समझना जरुरी हो जाता है।   हिंदुस्तान में स्कूलों  के मुख्यतया तीन  रूप हैं पहला वो स्कूल जो पूरी तरह से सरकारी फंड पर आश्रित और सरकारी नियंत्रण में हैं ये  सरकारी स्कूल के नाम से जाने जाते हैं.  दूसरा वे स्कूल जो आंशिक रूप से सरकार पर आश्रित हैं जैसे वेतन और अनुदान आदि वे स्कूल सहायता प्राप्त स्कूल के नाम से जाने जाते हैं. तीसरी श्रेणी में वे स्कूल आते हैं जो सरकार से कोई भी आर्थिक सहायता नही लेते और प्राइवेट और कान्वेंट  नाम से जाने जाते हैं।  आज़ादी के बाद अस्सी के दशक तक जिन स्कूलों का दबदबा रहा वे पहली दो श्रेणी के स्कूल थे यानि सरकारी और अर्द्धसरकारी जिन्हें हम आगे सरकारी स्कूल के नाम से संबोधित करेंगे ।  धीरे -धीरे इन प्राइवेट और कान्वेंट स्कूलों का चलन बढ़ा और देखते देखते इन स्कूलों ने शिक्षा के नए नए आयाम स्थापित कर दिए जिसका परिणाम यह रहा कि जो व्यक्ति भी सक्षम था उसने अपने बच्चों की शिक्षा के लिए इन स्कूलों को प्राथमिकता दी।गरीब से गरीब व्यक्ति भी कोशिश करता है कि उसका बच्चा कान्वेंट में पढ़े।  कान्वेंट और प्राइवेट स्कूलों की लॉबी ने सरकारी स्कूलों को शिक्षा की गुणवत्ता के दौर में बहुत पीछे छोड़ दिया। धीरे -धीरे  सरकारी स्कूल गांव, गरीब और लड़कियों के स्कूल बन कर रह गए।
          आप सोच रहे होंगे कि प्राइवेट और कान्वेंट स्कूलों ने बहुत अच्छे टीचर रखे होंगे तो सच्चाई इसके बिलकुल उलट मिलेगी।  सरकारी स्कूलों के  टीचर प्राइवेट स्कूलों के मुकाबले ज्यादा योग्य थे और आज भी हैं  और उन्हें कई परीक्षाओं से गुजरने के बाद अपनी योग्यता के बल पर नौकरी मिलती है । अगर सरकारी स्कूलों के टीचर्स के वेतन की तुलना करें तो उनके मुकाबले प्राइवेट स्कूल के  टीचर मात्र 10 से 30 प्रतिशत वेतन पाकर अपने छात्रों को पढ़ाते है लेकिन ये बात भी सही है कि वे अपने छात्रों को जी जान से पढ़ाते  हैं  क्योंकि वे जानते  हैं  कि यदि रिजल्ट खराब आया तो उनकी  छुट्टी कर दी जाएगी। प्राइवेट और कान्वेंट स्कूलों में इस बात की होड़ लगी रहती है कि किसका रिजल्ट सबसे अच्छा रहा इसके लिए उन्हें जो भी तरीका अपनाना पड़े वो अपनाते हैं जैसे वो उन बच्चों को अपने स्कूल में दाखिल ही नही करते जो कमजोर होते हैं, केवल वही कमजोर बच्चे दाखिला पाते हैं जिनके मां बाप हज़ारों लाखों का डोनेशन दे सकते हैं स्कूल वालों को पता होता है कि ये ट्यूशन पढ़ के पास तो हो ही जायेगा । इनकी फीस को नियंत्रित करने वाला आज तक कोई  कानून नही बन सका जो बना भी वो गोल मोल था। बच्चों के एडमिशन के लिए माँ बाप का इंटरव्यू पहले ही ले लिया जाता है।              अब नज़र डालते हैं सरकारी स्कूल पर जो किसी भी बच्चे का एडमिशन मना नही कर सकता किसी तरह का डोनेशन नही ले सकता उसके पास पढ़ाने के लिए अच्छे से लेकर डग्गामार हर तरह का लॉट होता है । एक तरफ कान्वेंट स्कूल में यदि बच्चा दो दिन पढ़ने न आये तो पैरेंट्स को नोटिस आ जाता है वही सरकारी स्कूल में घर से बुलाने पर भी बच्चे  नही आते -मास्टर उन्हें  फेल तो कर ही नही सकता।  अब ये बिना स्कूल आये प्रोमोट किए  छात्र अगली कक्षाओं का रिजल्ट बिगाड़ देता है।  कान्वेंट स्कूल सौ प्रतिशत रिजल्ट के लिए हर हथकण्डे अपनाते हैं ये हथकंडे क्या होते हैं आप बेहतर जानते हैं।
           कुल मिलाकर एक तरफ अमीर स्कूल हैं दूसरी तरफ गरीब स्कूल ,अमीर स्कूल के बच्चे अमीर हैं और मास्टर गरीब (प्रबंधक व् प्रिंसिपल को छोड़कर ) वहीं गरीब स्कूल के बच्चे गरीब हैं और मास्टर अमीर।  इन दोनों के बीच लड़ाई है परफॉरमेंस की।  एक की रोजी रोटी रोज की मेहनत  पर है दुसरे की मिड डे मील का रजिस्टर भरने पर।  एक ए सी बाथरूम का आदी है वहीं दूसरे के लिए बाथरूम ही नही है। हमारी अपेक्षाएं सरकारी से ज्यादा हैं क्योंकि उनके वेतन प्राइवेट से ज्यादा हैं हम सरकारी स्कूल को कोसते हैं- कोसते हैं और सिर्फ कोसते हैं मीडिया हाउस की टी आर पी बढ़ाने का ये सबसे आसान जरिया बन चुका है कैमरे के सामने स्कूल की मदद के बजाय उन्हें नीचा दिखाया जाता है , सरकारी स्कूलों को कान्वेंट लॉबी  फूटी आँख नही देखना चाहती जितने पैरेंट्स  सरकारी स्कूल से अपने बच्चे को  निकालते हैं वे उन्हें कान्वेंट में दाखिल करा देना चाहते हैं वे कान्वेंट स्कूल को हर महीने हज़ारों की फीस देने को तैयार हैं लेकिन सरकारी स्कूल में चाक का डिब्बा गिफ्ट करने को तैयार नही हैं।  ये हाल सिर्फ पेरेंट्स का नही है ये हाल हम सबका है जो सरकारी स्कूल से पढ़  कर निकले हैं हमारी उम्मीदें इस मामले में दिवा स्वप्न जैसी हैं हम सरकारी स्कूल के आलोचक बन कर आनन्द की अनुभूति करने लगे हैं किसी बच्चे को रोज रोज हतोत्साहित किया जाय तो उसे अपने ऊपर शंका होने लगती है सरकारी स्कूल इतनी आलोचनाओं के बावजूद गरीब तबकों और लड़कियों के लिए आशा के केंद्र आज भी हैं जहाँ 100-200  रूपये सालाना भरकर वे अपनी पढाई कर सकते हैं।  जिस संस्था या संगठन को आम जनमानस का समर्थन नही मिलता उसे ज्यादा दिन जिन्दा रहना मुश्किल होता है सरकारी स्कूल कुछेक अपवादों को छोड़कर वेंटीलेटर पे जा चुके हैं कई सरकारी स्कूलों को यह कह दिया गया है कि अब वे नए एडमिशन न लें।सरकारी स्कूलों से पढ़े बड़े बड़े ओहदेदारों की कलम से जब ऐसे आदेश जारी होते हैं तो लगता है कि  कान्वेंट लॉबी हर स्तर पर हावी है सरकारी स्कूल से पढ़े हम आप तमाशबीन बन कर रह गए हैं इन  दम तोड़ते स्कूलों  को मदद करने का ख्याल यदि आ जाय तो शायद सरकारी स्कूल में की गई पढाई का कर्ज उतर जाय. फ़िलहाल मदद करें या न करें लेकिन आलोचक भीड़ का हिस्सा न बनें सिर्फ इतना अहसान शायद इन गांव ,गरीब  और लड़कियों के  स्कूल के पर्याय वाची बन चुके  स्कूलों में फिर से जिंदगी की उम्मीद जगा दे। -(डॉ ललित नारायण मिश्र )

6 comments:

  1. Absolutely right sir...
    Fir bhi sir kya primary school ki gudvatta me sudhar ki aavshyakta hai?agar hai to kis prakaar laayi ja sakti hai???(Suraj mishra ajarka faizabad u.p.)

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  2. yes it can be. quality of education can be improved by teacher and school maintenance through gram siksha samiti . there r several examples . one have to lead.

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  3. Very thought provoking article.
    We should think of ways to provide organised help to Govt Schools.

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  4. Very thought provoking article.
    We should think of ways to provide organised help to Govt Schools.

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  5. सर,सरकारी स्कूलों में नवोदय विद्यालय जैसे विद्यालय यदि देश के हर जिले में कम से कम 10 तत्काल बन जाते तो काफी हद तक भारत की शिक्षापद्धति सुधर जाती और प्राइवेट स्कूल घुटनें के बल आ जाते।

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