बहुत दिनों से मन था कि हमारी जिंदगी में रोज ब रोज के विज्ञान को सरल भाषा में लिखा जाय जिसमें पारम्परिक ज्ञान को भी समाहित किया जाय । आज २८ फरवरी को विज्ञान दिवस पर इस सीरीज की शुरुआत करने का विचार मन में आया। वैसे तो बिना विज्ञान हमारी दिनचर्या अधूरी रहती है लेकिन शायद ही हमारा ध्यान इस पर कभी जाता है
जैसे कि नींद एक निश्चित समय पर टूट जाती है विज्ञान की भाषा में हम इसे बायो क्लॉक कहते हैं
जैसे कि हमें भूख और प्यास लगती है आसान शब्दों में शरीर का यह मेटाबोलिज्म है
जैसे कि मिर्च तीखी लगती है क्योंकि उसमें कैप्सिसिन रसायन होता है
जैसे कि ऊनी कपड़े में रगड़ होने पर बिजली सी चमक जाती है क्योंकि इलेक्ट्रिक सर्किट बन जाता है
इस तरह के ढेर सारे सवाल जाने अनजाने मन में उठते होंगे कुछ का जवाब मिल जाता है कुछ का नहीं मिल पाता है
वैसे विज्ञान अपने में रोचक है ये और भी रोचक हो जाता है जब इसकी जड़ पकड़ में आ जाय। रोजमर्रा की जिंदगी के कुछ वैज्ञानिक पहलुओं की चर्चा इस सीरीज में करते रहेंगे। आपकी भागीदारी और टिप्पणी इसे और सरल बनाएगी ऐसा विश्वास है
एसिडिटी होने पर माँ नींबू पानी पीने को क्यों देती है ?
एसिडिटी पेट में अम्ल यानी एसिड बढ़ने का संकेत है अब जब एसिडिटी बढ़ी तो माँ ऐसी चीज पीने को क्यों कह रही जिसमे एसिड है क्योंकि नींबू भी अम्लीय है । लेकिन माँ का विज्ञान अनुभव आधारित है और फायदा भी कर जाता है आइये इसे विज्ञान के नज़रिये से समझते हैं
रसायन विज्ञान में बफर सोल्युशन का नाम तो सुना ही होगा बफर सोल्युशन कमजोर अम्ल या कमजोर क्षार वाला द्रव्य होता है जो pH में बदलाव को रोकने का काम करता है , कहने का मतलब ज्यादा अम्लीय या क्षारीय को अपने बराबर लाने या न्यूट्रल करने की कोशिश कर उसे कमजोर कर देता है
अब नींबू में जो एसिड है वह कमजोर एसिड है और पेट में जो एसिड बना है वो स्ट्रांग एसिड है नींबू पानी बफर सोल्युशन का काम कर के पेट के एसिड के pH को न्यूट्रल की तरफ ले जाता है इसलिए मम्मी का फार्मूला कामयाब हो जाता है
इसी तरह जब मधुमक्खी काट लेती है तो उस पर नींबू या नमक का पानी मां रगड़ देती है और आराम मिल जाता है होता यूं है कि मधुमक्खी के डंक मारते समय फॉर्मिक एसिड शरीर में चला जाता है जिससे असहनीय दर्द होता है। जब नींबू या चूना लगा दिया जाता है तो फॉर्मिक एसिड कमजोर पड़ जाता है और आराम मिलने लगता है।
तो है न रोजमर्रा का विज्ञान इतना आसान।
शेष अगले अंक में
पढ़ते रहिये 'एस फॉर साइंस '
- डॉ ललित नारायण मिश्र
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