Tuesday, May 10, 2011

हम जहाँ से चले थे वहीं आ गए -

आज के हालात पर -
ऐसा मौसम है हम बोल सकते नहीं
बन विरोधी भी मुंह खोल सकते नहीं
फ़ैल फिर से है शोषण का कोहरा रहा
जैसे इतिहास अपने को दोहरा रहा
प्रष्ट जो खुल रहे सनसनी खेज हैं
तब थे गोरे तो अब काले अंग्रेज हैं
यानी फिर से गुलामी के घन छा गए
हम जहाँ से चले थे वहीं आ गए

सोच कर हम चले थे सबेरा हुआ
किन्तु कुछ पग चले तम घनेरा हुआ
रौशनी झोपडी से बहुत दूर है
वह अंधेरों में जीने को मजबूर है
जिनके हाथों में सारे ही अधिकार हैं
सूर्य के क़त्ल के वे गुनहगार हैं
सच तो ये है वही रश्मिरथ पा गए
हम जहाँ से चले थे वहीं आ गए - कवि कमलेश शर्मा 9412660893

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