Saturday, November 12, 2011

मीडिया का सच-

पत्रकारिता उर्फ़ जर्नलिज्म बहुत से लोगों की चाहत है ,तमन्ना है. कुछ शौकिया करते हैं तो कुछ पत्रकारिता के लबादे में बड़े-बड़े खेल करते हैं । चाहे न्यूज़ पेपर/ चैनल के शिखर पर बैठे मालिक हों या हाकर से पत्रकार बन बैठे लेफ्ट -राईट पत्रकार । इस पत्रकारिता की दुनिया में कुछ ऐसे हैं जो लाखों का पॅकेज लेकर काम करते हैं हर महीने ५० हज़ार या ज्यादा वेतन पाते हैं तो वहीं कुछ या यूँ कहें तमाम सर्वहारा वर्ग वाले पत्रकार हैं जो दिन भर खबर जुटाने के बावजूद रोटी का जुगाड़ भी नहीं कर पाते । फिर कुछ मुड़ते हैं दर-दर विज्ञापन ढूँढने के लिए तो कुछ ख़बरों के खुलासे का भय दिखाकर नेताओं, अधिकारियों को ब्लैक मेल करने के इरादे से धमकाने की राह पर । इस सर्वहारा वर्ग के पत्रकारों पर न तो उस अखबार का आई कार्ड होता है जिसके लिए वे काम करते हैं और न ही उनकी लाइफ का बीमा । उनकी भेजी ख़बरें छपती तो जरूर हैं पर उनकी अपनी पहचान .......?? पता नहीं । जिसको अपनी ख़बरें छपवानी होती है वो उन्हें कुछ नजराना देता है और अगले दिन अखबार या टी वी पर उसकी खबर लग जाती है मीडिया की चकाचौंध में अँधेरे की एक लम्बी फेहरिस्त है । कभी किसी सर्वहारा पत्रकार से मिलकर देखिये इस सबके बावजूद उसकी ऐंठ बरक़रार मिलेगी बातें ऐसी क़ि जर्नलिज्म में पीएचडी कर रखी है. सबकी लड़ाई लड़ने वाले इन पत्रकारों के हक में खड़ा होने वाला कोई नहीं । दूसरों को हक दिलाने वाला खुद हक मांगे तो किससे और फिर देगा कौन ?

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