हिन्दी के मूर्धन्य मनीषी डॉ कुश अक्सर कहा करते हैं कि टक्सालें ही खराब हो जांय तो अच्छे सिक्कों की उम्मीद नहीं की जा सकती। कुछ चयन आयोगों को देखकर तो फिलहाल इस बात पर धीरे -धीरे यकीन बढ़ चला है। कर भी क्या लेंगे? जिस देश में कुलपति और शिक्षा आयोगों के मुखिया राजनैतिक पकड़ और धनबल के आधार पर बन ने लगे हों वहां शिक्षा की दुर्गति होने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा। लेकिन इसकी कीमत पूरे देश को जरूर चुकानी पड़ेगी।
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