Friday, April 25, 2014

गली मोहल्ला संस्करण -

मीडिया खास तौर से अख़बारों और रीजनल चैनल पर स्थानीय घटनाएं जिस तरह जगह घेरती जा रही हैं उसको देखकर लगता है कि कुछ दिन बाद किस घर- किस किचन में क्या खाना बना यह भी इनमें प्रकाशित होगा।  आपत्ति इस बात पर नहीं वरन प्रश्न यह है कि देश दुनिया की खबर कहाँ से पढ़ी जाय ? इनके पेज का आधे से ज्यादा  विज्ञापन होता है।  विज्ञापन किसी अखबार और मीडिया में कितना होगा इसकी भी कोई सीमा नहीं। होगी भी तो पाठक क्या कर लेगा ? पढ़ते रहिये आज फलां गांव के फलां  स्कूल में बकरी चरने आयी और इस मोहल्ले में कुछ लोगों  को कुत्ते ने दौड़ा लिया। फ़िलहाल अगर मार्केटिंग बढ़ाने का यही तौर तरीका रहा तो अगले कुछ दिनों में  गली मोहल्ला संस्करण पढ़ने के लिए तैयार रहिये,कम से कम पराठा लपेटने के काम  जरूर आएगा ।  इक्के (तांगे ) का घोड़ा फिर भी दूर तक देख लेगा लेकिन  इक्कीसवीं सदी के हिन्दुस्तान को गली-मोहल्ले वाले चौथे खम्भे के आगे पीछे  घूमना ही बदा है।Exceptions r everywhere . -(सत्यमेव जयते)  

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