Tuesday, January 16, 2018

हमें पागल ही रहने दो (पार्ट-2)-

         इस सीरीज के भाग दो में जिस पागल का जिक्र करने जा रहा हूँ उन्होंने अपनी जिंदगी को सिर्फ और सिर्फ अपने अंदाज में जिया है इस बात से उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता कि लोग उनके बारे में क्या कहेंगे।  लेकिन हाँ जिसकी जिंदगी को छुआ तो उसको हिला के रख दिया।  इस अजीबोगरीब शख़्स का नाम राजकुमार सिंह है जिन्हें प्यार से लोग आर. के. सिंह कहते हैं। हम इस सनकी बादशाह को "बाबा" कहते हैं।  कानपुर के हाथीपुर गांव के आर के सिंह कम्पटीशन की तैयारी करने जब इलाहाबाद गए तो कुछ ऐसे लोगों की संगत में आ गए जो फक्क्ड़ मिजाजी थे इन फक्क्ड़ मिजाजियों में ज्ञानेश कमल,रविराज सिंह जैसी हस्तियों  के नाम प्रमुख हैं। पढ़ाई के साथ -साथ माघ मेले में संगम तट की धूल फांकते इन घुमक्क्ड़ों ने आध्यात्मिक रंगबाजी सीख ली जो हमेशा हमेशा के लिए उनके पीछे पड़ गई। बिना टिकट कानपुर से इलाहाबाद की यात्रा करने वाले आर के सिंह एक बार गुंडे के भ्रम में पुलिस के हाथों पड़ते-पड़ते बचे  सही समय पर दो डिब्बों के बीच की कपलिंग में छुप छुपा के इलाहाबाद पहुंचे आर के सिंह को ये नया ज्ञान बहुत कुछ दे गया। अब पढ़ाई के साथ आर के सिंह कोचिंग चलाने और जानवरों का इलाज सीखने लगे।  इस सीखने के दौर में लावारिश पड़े मृत जानवरों की खुद चीरफाड़ कर पूरी एनिमल फिजिओलॉजी उन्हें समझ में आ गयी।  पशु डॉक्टर के रूप में धीरे धीरे किसानों के भगवान बन चुके आर के सिंह को फिर याद आया कि नौकरी भी तलाशनी है इस बार फिर से मेहनत की तो गन्ना इंस्पेक्टर बन गए।  नौकरी तो मिल गई लेकिन फक्क्ड़ मिजाजी से इश्क़ बरकरार रहा। शादी हुई बच्चे भी हुए लेकिन आर के सिंह के अंदाज में कोई फरक नहीं आया पत्नी कानपुर अपने माँ बाप को नहीं छोड़ना चाहती थी तो आर के सिंह अपने जीने के अंदाज को। तो समझौता ये हुआ कि तुम अपने अंदाज से जियो और हम अपने अंदाज से जीते हैं।
                   गन्ना विभाग में काम करते करते आयुक्त सूर्य प्रताप सिंह उन्हें श्री श्री रविशंकर जी की आध्यात्म धारा की ओर ले गए। संयोगवश लख़नऊ के उसी विभाग में मेरी भी ज्वाइनिंग हो गई जिस में आर के सिंह थे वैसे तो मेरा और बाबा का कोई वास्ता नहीं था लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि हम दोनों एक दूसरे से परिचित हो गए ये दोस्ती कब परवान चढ़ गई पता ही नहीं चला।  आर्ट ऑफ़ लिविंग के कोर्स में पहली बार मुझे मुफ्त में (उस समय फीस 600 रूपये थी )घुसाने वाले आर के सिंह ने मुझे एक नई विधा से जोड़ दिया। उसके बाद जब मैंने विपस्सना कोर्स किया तो मै आर के सिंह को विपस्सना में भेजने की सोचने लगा डर ये भी था कि बात मानेंगे भी या नहीं। खैर मेरा ये डर निर्मूल था बाबा खुद ही साधना के लिए तैयार बैठे थे दस दिन बाद जब साधना से लौट के आये तो सच में बाबा "पागल" हो रहे थे।  मस्त मौला आर के सिंह अब फुल मनमौजी हो गए थे खाना मिले चाहे न मिले जीवन के आनंद को बाँटना उनके लिए जरूरी काम था।  इसी बीच स्वामी मुक्तेश्वर भारती को भगवा से जींस तक उतार लाने का काम और उनकी जिंदगी को नव सन्यास में दीक्षित करने का काम भी बाबा ने कर डाला आज दोनों बहुत घनिष्ठ मित्र हैं लेकिन स्वामी मुक्तेश्वर भारती  की जिंदगी में कपड़े के सन्यास को आत्मा के सन्यास में बदलने का काम आर के सिंह ने ही किया। कभी मोटर साइकिल तो कभी सेकंड हैंड कार से आज भी आर के सिंह लखनऊ से कानपुर तक घूम डालते हैं।  गन्ना विभाग उनका ठिकाना जरूर है लेकिन वो कब वहाँ मिलेंगे -कब नहीं कोई नहीं बता सकता। नौकरी से बुरी तरह त्रस्त आर. के. सिंह की इच्छा यह भी है की नई पीढ़ी के बच्चे बेलौस अंदाज में जिएं।  पुराने ढर्रों पर चल रही जिंदगी को वो 180  डिग्री पर मोड़ देना चाहते हैं और इस रिस्क को भले कोई अभिभावक न स्वीकारे पर बच्चे उनके फैन हो ही जाते हैं। समाज के नियम कायदों को झटका देते रहने वाले इस सनकी और मस्त मलंग को उनकी जिंदगी उनके ढंग से मुबारक। -ललित 

2 comments:

  1. very true mr rk singh is ......nice person

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  2. Jai ho
    Honge raje raj kuwanr ham bigade dil sahjade
    Chalna jiwan ki nishani rukana maut ki lakhani
    Nikal pade hai khulli sadak apana sina take

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