Monday, January 15, 2018

हमें पागल ही रहने दो - (पार्ट -1)-


       दुनिया में बहुत से लोगों से मुलाकात हुई। लोग आये और गए लेकिन इस सफर में कुछ ऐसे अनूठे पागलों से मुलाकात हुई जिन्होंने दिल को छू लिया। ऐसे ही एक शख्शियत का नाम नीरज मिश्र उर्फ़ क्रांतिकारी है।  दिल्ली से जब डॉक्ट्रेट डिग्री लेकर वापस लौटा तो लखनऊ में बड़े भाई साहब के साथ रहने लगा साथ में गोपाल जी भी थे ।  नीचे के कमरे में नीरज जी अपने चार भाइयों के साथ रहा करते थे लखनऊ से दूर कुशीनगर जनपद से चारों भाई पढ़ने के लिए आये थे सबकी जिम्मेदारी नीरज जी पर थी । जब कभी नीरज जी मेरे कमरे में आते थे तो कुछ कविता की पंक्तियाँ जरूर पढ़ते थे।  उनकी पसंदीदा लाइनें किसी कवि की यूँ थीं -     
माटी की है देह रात भर जलना है
हमें अमावस की आँखों में गड़ना है
होगी सुबह कि इतना है विश्वास हमे
 हम हैं दिए सहेजो अपने पास हमें ... ,
इन्हीं उलझे दिमागों में घनी खुशियों के लच्छे हैं
हमे पागल ही रहने दो कि हम पागल ही अच्छे हैं   .
   नीरज जी लखनऊ यूनिवर्सिटी में  केमिस्ट्री में एम् एस सी  कर रहे थे। स्वभाव से विनम्र नीरज जी लख़नऊ यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति में कुछ सपना संजोते हुए नीरज मिश्र से नीरज मिश्र उर्फ़ "क्रांतिकारी जी" बन गए।  एक दो चुनाव लड़ने के बाद असफलता ने क्रन्तिकारी जी को कुछ नया सोचने को मजबूर कर दिया।  इसी बीच राजकुमार सिंह और राम कृष्ण मिशन निराला नगर लखनऊ ने उनके जीवन को अप्रत्याशित मोड़ दे दिया।  मिशन के ध्यान कक्ष में रोज जाते जाते क्रांतिकारी जी आध्यात्म की  तरफ बढ़ने लगे।  इसी बीच वर्ष 2010 में नीरज जी ने गौमुख से गंगासागर तक गंगा बचाओ अभियान छेड़ कर  गंगा जी की पूरी परिक्रमा पैदल ही कर डाली। जीवन के सत्य की  तलाश ने उन्हें क्रिया योग तक पहुंचा दिया।  आध्यात्म की लत इतनी तगड़ी लगी कि घर से भाग गए थक हार कर माँ बाप ने छोटे भाइयों की शादी कर के संतोष कर लिया लेकिन किस्मत में कुछ और भी होना था।  क्रिया योग की साधना में अपने गुरु के बहुत कृपापात्र क्रांतिकारी जी इटली जाकर लोगों को ध्यान सिखाने लगे।वहाँ भी नीरज जी का बहता मन समन्दर के तीरे-तीरे पुर्तगाल से स्पेन तक पैदल ही चल निकला इस शांति मिशन में उनके साथ कई विदेशी लोग जुड़ते गए।  नीरज जी जब यूरोप में किसी के घर जाकर खाना मांगते थे तो लोग उनको हैरानी से देखते थे लेकिन बाद में बहुत प्यार से खाना खिलाते थे।  नीरज जी की  जेब में कभी भी इतना पैसा नहीं रहा कि अगले दिन के बारे में निश्चिन्त हो सकें लेकिन ये चिंता कभी भी उनके चेहरे पर नहीं झलकी।  अंग्रेजी भाषा बोलने की समस्या हल करने में उनको सहयोग मिला सुश्री मैडेलेना बिलेकी का जो अब उनकी सहधर्मिणी हैं। बहुत प्रेम से भोजन बनाने और परोसने खिलाने वाले  मृदु भाषी और विनम्र नीरज जी ऋषिकेश के क्रियायोग आश्रम में कभी न कभी आपको जरूर मिल जायेंगे। उनका पागलपन आज भी कायम है यह उन्हें कहां तक ले जायेगा ये देखने वाली बात होगी। -ललित 

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