Saturday, June 4, 2011

छोटे- छोटे देवता

छोटे - छोटे देवता -
हम यह तो आरोप लगते हैं क़ि इस देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा किन्तु हम क्या कर रहे हैं देश और समाज के लिए ये हम कभी देखना नहीं चाहते । हम सिर्फ बोलते हैं बोलते हैं और बोलते हैं । आइये एक नवयुवक के बारे में आपको बताते हैं -

एक २०-२२ साल का नवयुवक अनिल मुझे हिन्दू हॉस्टल इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मिला। मैंने पूछा तुम आगे क्या करना चाहोगे? उसने जवाब दिया "इस देश और समाज के लिए कुछ नया करना चाहता हूँ । जैसे ही मैं अपने रोज़गार क़ि तलाश पूरी कर लूँगा मैं अपने मिशन में जुट जाऊँगा ।" उसने अपनी लिखी कहानियां और अन्य रचनाएँ भी मुझे दिखाईं । बीच बीच में कभी- कभी उसका फोन आता रहता । अनिल ने विपस्याना की साधना भी की है. एक दिन अनिल ने बताया क़ि भैया मैंने इलाहाबाद इंजिनीयरिंग कॉलेज के निकट संपेरों की बस्ती में जाकर उनके बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है । इस मलिन बस्ती में रहने वाले संपेरों की एक अपनी दुनिया है । सांप दिखाना उस से पैसा कमाना परिवार पालना यही उनका धंधा है इस मलिन बस्ती में सुविधाओं का आभाव है .ये अपने बच्चों को धनाभाव तथा जागरूकता की कमी से स्कूल नहीं भेजते । बच्चे साँपों के साथ खिलौनों की तरह खेलते हैं । अनिल ने जब यहाँ पढ़ाना शुरू किया तो लोगों ने रूचि नहीं ली अनिल और उनके साथियों के लगातार समझाने से कुछ बच्चे उनकी पाठशाला में आने लगे जो उसी बस्ती में चलायी गयी। कभी- कभी ये बच्चे अपने बस्तों में साँपों को भरकर ले आते थे पहले तो अनिल घबरा जाते थे धीरे-धीरे उनकी आदत पढ़ गयी । संपेरों को विश्वास नहीं था क़ि उनके बच्चे पढ़ लिख कर किसी लायक बन सकेंगे ।धीरे-धीरे पूरी bastee के बच्चे वहां aane लगे . अनिल नाम का यह फ़रिश्ता उन मासूम आँखों में एक चमक जगाने का काम कर रहा है। धन की कमी जज्बे के आगे हार रही है। अनिल और उनके साथियों का कारवां लगातार आगे बढ़ रहा है । यद्यपि अनिल आज भी रोज़गार के लिए संघर्ष कर रहे हैं फिर भी संपेरों की इस बस्ती में सैकड़ों हाथ उनके लिए रोज़ दुआ में उठ जाते हैं । (अनिल का नम्बर है -09452158703)।

No comments:

Post a Comment