Wednesday, June 15, 2011

इस तेज़ धुप में-

संजय मालवीय की एक रचना गर्मी और भ्रष्टाचार पर-
कुल शहर बदहवास है इस तेज़ धूप में
हर शख्स जिन्दा लाश है इस तेज़ धूप में ..
हारे थके मुसाफिरों आवाज़ उन्हें दो
जल की जिन्हें तलाश है इस तेज़ धूप में ..
दुनिया के अमनो-चैन के दुश्मन हैं वही तो
सब छाँव जिनके पास है इस तेज़ धूप में ..
नंगी हर एक शाख हर एक फूल है यतीम
फिर भी सुखी पलाश है इस तेज़ धूप में ..
वो सिर्फ तेरा ध्यान बंटाने के लिए है
जितना भी जो प्रकाश है इस तेज़ धूप में ..
पानी सब अपना पी गयी खुद हर कोई नदी
कैसी अजीब प्यास है इस तेज़ धूप में ..
बीतेगी हाँ बीतेगी ये दुःख की घड़ी जरूर
संजय तू क्यों निराश है इस तेज़ धूप में ..।-
-संजय मालवीय ( पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारी सीतापुरउत्तर प्रदेश ०९८३८५३६६५१)

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