Wednesday, October 7, 2020

चाचा चौधरी-

 चाचा चौधरी -


     बच्चे और कॉमिक्स का रिश्ता वही जानता है जिसने कॉमिक्स बचपन में पढ़ी हो । प्राइमरी स्कूल बड़ागांव से लौटते समय रेलवे फाटक के पास बाज़ार में जिस नई दुकान से भेंट हुई वह थी कॉमिक्स की दुकान । तब तक किताब  पढ़ना आने लगा था और कहानियों का चस्का भी लग चुका था । घर में एक दो कॉमिक्स की किताबें अा चुकी थीं तो इतना पता था कि इसमें कहानियां होंगी ।


"हां घर लेे जा सकते हो  एक कॉमिक्स का किराया 25 पैसे प्रति दिन लगेगा " दुकान वाले ने कहा।


    सोच में पड़ गया कि रात भर में पढ़ पाऊंगा कि नहीं 

फिर हिम्मत कर के ले लिया और अगले दिन पढ़ के लौटा भी दिया । इस तरह चाचा चौधरी और साबू के ज्यादातर कथानक बचपन में ही पढ़ डाले । दुकान पर चंदा मामा , नन्दन , पराग, लोट पोट जैसी बच्चो के लायक कई किताबें रहती थीं । कॉमिक्स की इस लत को परवान चढ़ने का समय तब आया जब गर्मी की छुट्टियों में मामा जी के पास गया। 


     मामा जी की पोस्टिंग उस समय रायपुर हुआ करती थी । 1984 में रायपुर मध्य प्रदेश का ही शहर हुआ करता था । शांत , मनभावन रायपुर का तालाब  बड़ा और बहुत खूबसूरत लगता था । रायपुर में जिस किराए के कमरे में मामा जी रहा करते थे उसके नीचे के परिवार में एक बड़े भैया रहते थे जो कॉमिक्स के सुपर शौकीन थे नाम था राम चन्द्र कामत । उनके पास कॉमिक्स का खजाना था जिसमें चाचा चौधरी, पिंकी, बबलू, अमर चित्र कथा , नन्दन, न जाने कितने संग्रह उनके संदूक में मौजूद थे मैंने भी उनसे धीरे धीरे दोस्ती गांठ ली और रोज एक कॉमिक्स पढ़ने लगा  । इन कॉमिक्स को पढ़ते पढ़ते जाने अनजाने  संस्कृति , विज्ञान, देश दुनिया , प्रकृति की समझ अपने आप जेहन में गहराई से उतरने लगी ।

डांट भी खूब पड़ती थी कि हर समय कॉमिक्स में लगे रहते हो पढ़ाई कब होगी । परीक्षा में कैसे पास होगे ?


     खैर कॉमिक्स का ये चस्का जो लगा तो लगा ही रहा । जब थोड़ा और बड़े हुए तो सुमन सौरभ और चंपक माता जी ने डाक से ही मंगवाना शुरू कर दिया । किसी किसी महीने पत्रिका घर तक नहीं पहुंचती थी तो उलझन बनी रहती थी । वैसे तो बड़े भाई साहब बड़े संस्कारित और जेंटल मैन की तरह वाले थे । लेकिन इस मामले में कभी कभी मुझको भी पीछे छोड़ देते थे ।


     इस बीच  गांव यानि गौहन्ना में ही पुस्तकालय का पता चल गया था ये था 'पांडेय पुस्तकालय' . इसके सर्वे सर्वा थे फूल चन्द्र पाण्डेय जिन्हे सब लोग पी सी पांडेय के नाम से ज्यादा जानते थे । पेशे से वो कचहरी में मुंशी थे और पापा के तख्ते पर उनके रोज के सहकर्मी थे इसलिए उनके पुस्तकालय पर धीरे धीरे अपनी पहुंच आसान हो गई । लगभग सौ डेढ़ सौ पुस्तकों का उनका संग्रहालय उनकी एक कोठरी का हिस्सा हुआ करता था । अपने पुस्तकालय के लिए उन्होंने बकायदे मुहर बनवा रखी थी और हर किताब पर ठप्पा लगा रहता था 


' पांडेय पुस्तकालय

गौहन्ना '


   पुस्तकालय का यह नशा कॉमिक्स से गुजरते हुए हम दोनों भाइयों के मन में भी समा गया सोचा कि पुस्तकालय खोला जाए । यही कोई चौथी- पांचवीं कक्षा के छात्र के रूप में हम लोगों ने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की योजना बनाई । नाम रखा गया ' मिश्रा पुस्तकालय '.

खलंगा वाले घर में बकायदे पोस्टर चिपका कर बीस- तीस किताबें जमा की गईं । बड़े भाई साहब ठहरे बड़े सो उन्होंने पुस्तकालयाध्यक्ष मुझे बना के बैठा दिया । दिन भर पुस्तकालय में भूखा प्यासा बैठा रहा बोहनी भी नहीं हुई ।

अगले दिन से मिश्रा पुस्तकालय बन्द कर दिया गया घर वालों की डांट पड़ी सो अलग ।


   पुस्तकालय भले बन्द हो गया लेकिन बिक्रम बेताल , सिंहासन बत्तीसी , पंच तंत्र, हितोपदेश, प्रेरक प्रसंग, बाल महाभारत जैसे न जाने कितनी किताबों के पन्ने गर्मी की छुट्टियों में हम लोगों ने पलट डाले । 75 पैसे की विज्ञान प्रगति घर में अनिवार्यतः आती रहती थी उसका असर ये रहा कि विज्ञान जेहन में घुस गया जो आज भी जिंदा है ।


    नंदन पत्रिका की पहेली में जीता गया पहला पुरस्कार जो उस समय पचास रुपए का था उसने मेरा पहला बैंक एकाउंट खुलवा दिया । बैंक था क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा बड़ागांव । उस पचास रुपए की खुशी अद्भुत थी । उसके बाद आकाश वाणी लखनऊ ने भी इनाम में टॉर्च भेज दी । 


    चंदा मामा पत्रिका का चस्का इतना था कि घर की चोरी चोरी वार्षिक शुल्क उसके पते पर भेज दिया बड़े भाई हमेशा की तरह योजना कार का काम करते थे परदे के सामने नहीं आते थे । इस बार पत्रिका नहीं आई बड़ा दुख हुआ बाद में समझ में आया कि मनी ऑर्डर में पूरी कहानी हम लोगो ने हिंदी में लिख मारी थी और चंदा मामा का मुख्यालय तमिल नाडु में था । आज जब बच्चों के लिए चाचा चौधरी की कॉमिक्स खरीद के लाता हूं तो बच्चों के पहले खुद ही उसे पढ़ने बैठ जाता हूं । पत्रिका नहीं होती तो टी वी पर ही बच्चों बजे साथ कार्टून का मजा लेता हूं । मोटू पतलू डॉ झटका और घसीटा का जमाना अभी बीता नहीं है । कभी मन हो तो आप भी देख लेना कसम से  बचपना लौट आएगा । 


(गौहन्ना डॉट कॉम पुस्तक का अंश)

1 comment:

  1. दिल तो बच्चा है जी।
    बस, महसूस करने भर की देर है😀

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