Friday, October 2, 2020

बासी

 बासी 


बासी शब्द से आप परिचित हो या न हों हिंदी की ये लोकोक्ति जरूर सुनी होगी 


'बासी बचे न कुत्ता खाय '


     मतलब जब बासी बचेगी ही नहीं तो कुत्ता क्या चोरी करेगा । रात के भोजन का बचा हुआ अंश अवध क्षेत्र में बासी के रूप में प्रसिद्ध है । सुबह का नाश्ता या यूं कहें कि कलेवा बासी से ही होता है । अक्सर घरों में इतना भोजन बनता है कि रात को बच ही जाता है वहां शहरी सभ्यता के अनुसार रोटियां गिन कर नहीं बनती कोई किसी से पूछता नहीं कितना खाओगे जितना मन हो उतना खाओ । रात के बचे भोजन को बड़े सलीके से छत से टंगे सिक हर पर इस तरह रखा जाता था जिससे चूहे और बिल्ली से बचा रहे । सुबह वह भोजन खाने योग्य रहा या नहीं रहा ये भी माताएं बहनें उसकी महक सूंघ कर बता दिया करती थीं उसके लिए तब तक कोई फूड सेफ्टी प्रोटोकॉल विकसित नहीं हुआ था ।


     सुबह -सुबह जब दाल भात सान कर चूल्हे पर गरम किया जाता था तो बच्चों के साथ साथ बड़ों बड़ों की लार टपक जाती थी और अगर उसमे घी पड़ जाय तो उसका आनंद कुछ और ही होता था । करोनी यानि खुरचन का झगड़ा बच्चों में आम होता था । वो सोंधा पन आजतक दुर्लभ ही रहा ।


    बताते हैं कि वाजिद अली शाह के राज में जिन तीतरों को लड़ाई के लिए तैयार किया जाता था उन्हें रात की घी लगी रोटी सुबह सुबह खिलाई जाती थी । जिसका तीतर जीतता था उस के बारे में ये चर्चा रहती थी कि इसने अपने तीतर को घी लगी बासी रोटी जम के खिलाई होगी । 


  "बच्चों ताज़ा भोजन ही खाना चाहिए बासी खाना हमें नहीं खाना चाहिए " ..मास्टर साहब ने कहा । 


बासी खाना खाने से बीमारियों का खतरा रहता है ।


"जी गुरु जी "... बच्चे समवेत स्वर में बोले ।


....अगले दिन बच्चे फिर वही बासी खा कर आते । 


"अरे जब खाना गरम कर दिया तो बीमारी कैसे फैलेगी"


  लाल जी भैया बोले ।


"मनसुख आज तुमने क्या खाया" ? नौमी लाल ने पूछा ।


"बासी रोटी बची थी भैया अम्मा खेत निरावै जात रहीं तौ वही रोटी मा सरसई कै तेल लगाय कै पियाजी के साथ खाय लिहन । का करी जाड़ा मा इतनी जल्दी खाब थोड़े खराब होत है।".. मनसुख ने जवाब दिया।


"खेल के बाद आज सभी बच्चों को कुछ खाने को मिलेगा" ..मास्टर साहब बोले


"गुरु जी ये तो ब्रेड है "..मनसुख ने कहा 


"आप तो बासी खाने को मना करते हो ये ब्रेड तो 

दो दिन पहले बनी है न विश्वास हो तो पैकेट पर लिखा है देख लो । हम तो रात की ही बासी रोटी सुबह खाते है ।

उसके बाद भी बचता है तो जानवर को खिला के ख़तम कर देते हैं" ।


"चुप रहो बहुत बोलते हो" मास्टर जी ने कहा 


मनसुख सहित पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया । सभी बच्चे चुपचाप ब्रेड खाने लगे ।


दिल्ली में पढ़ाई करते समय यमन के रहमान के घर जाना हुआ। वो परिवार के साथ पूसा में सरस्वती हॉस्टल में रहा करते थे । रहमान ने जब रोटी ला के रखी तो मैं दंग रह गया । इतनी लंबी चौड़ी रोटी पहली बार देख रहा था रहमान भांप गया, बोला ये अफगानी रोटी है बाज़ार से खरीद कर लाया हूं खासतौर से आपके लिए क्योंकि आप शाकाहारी हो ।


.....वो रोटी किसी तौलिए के बराबर बड़ी थी और इतनी सूखी हुई थी कि लगभग दस दिन पहले की बनी लग रही थी । बाद में पता चला कि कई देशों में ऐसी ही सूखी रोटी खाने का चलन है । हिन्दुस्तान की तरह ताजी रोटी सब मुल्क में नहीं चलती । ज्यादातर लोग दुकान दे ही रोटी खरीद कर लाते हैं । भारत में तवे की गरमा गरम रोटी का ही जलवा रहता है ।


    आयुर्वेद के अनुसार बासी रोटी के अलग ही गुण हैं कई रोगों को मिटाने के लिए बासी रोटी खाने की सलाह भी दी जाती है । आधुनिक विज्ञान दस दिन पुराने ब्रेड और महीनों पुराने बिस्किट को तो बर्दाश्त कर लेता है लेकिन रात की बासी पर आज भी नाक भौं सिकोड़ लेता है । खैर ये परम्परा धीरे धीरे गौहन्ना से भी गायब हो रही है 


    फिर भी सुबह सुबह काम पर जाने वाले किसान को जब बासी लेे के उसकी घरैतिन पहुंचती है तो उसके चेहरे की मुस्कान दुगुनी हो जाती है । थकान तो बासी खाते खाते अपने आप ही उतर जाती है ।


(गौहन्ना. कॉम पुस्तक का अंश)

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