Thursday, September 24, 2020

मिसिराइन आजी

 *मिसिराइन आजी* 


(ललित मिश्र के ब्लॉग *झल्लर मल्लर दुनिया* से )


   "ये तीन खुराक दवा है तीन दिन सुबह सुबह खाली पेट खाना है ठीक हो जाओगे" । 


"फिर कब आना है आजी "


"भगवान चाहे तो इतने में ही ठीक हो जाओगे छत्तीस रोग की मारंग है ये जड़ी "

"अच्छा आजी पांय लागी "

 

    दूर दूर इलाके में सफेद बालों वाली बुढ़िया आजी का बड़ा नाम था उनके ठीक होने वाले मरीजों में कोसों दूर दूर तक के लोग थे । गांव में सब लोग उन्हें मिसिराइन आजी के नाम से जानते थे । वैसे उनका असली नाम बृज रानी था ।


   जबसे हमने उन्हें देखा तो  कमर से झुक कर चलते ही देखा। लेकिन जीवटता इतनी थी कि एक बार पेड़ से गिरते बच्चे को  गोद में ही लपक लिया था और एक बार 'पनिहा सांप' को अपनी कुबरी से जमलोक का रास्ता दिखा दिया था । सौ साल की उमर में भी अपने बेटे यानि मिसिर  दादा से दुगुनी-तिगुनी मेहनत वो करती थीं  ।बगिया और बरिया के सैकड़ों पेड़-पौधों की वो मां भी थीं । 

       झक सफेद बाल के साथ उनके चेहरे की चमक सारी झुर्रियों पर भारी थी । 


"मिसिराइन आजी तोहार इमलिया केहू बीने लेत है "

.. किसी की आवाज आती 


प्रति उत्तर में ..


"आइत है दहि जरऊ मोंछ उखार लेब "



"अरे दहिजरा क नाती खेत खवाय लिहिस केकै बकरी आय रे"

 

    ये आवाज़ पांच सौ मीटर तक गूंज जाती थी जब मिसिराइन आजी की दहाड़ सुनाई देती थी ।


    वो जिस गांव से पली बढ़ी थीं वहां उनका घर अकेला ही था। अकेले घर का गांव, आस-पास कोई डॉक्टर नहीं तो अगर जिंदा रहना है तो जड़ी-बूटियों का ज्ञान न हो तो जीवन चलना मुश्किल हो जाय । ज्ञान विज्ञान के गंवई रिसर्च को सूट-बूट टाई वाले डॉक्टर साहब को हज़म होना भी नहीं था सो आज तक नहीं हुआ उनको कौन बताए कि जब एंटीबायोटिक की चिड़िया पैदा भी नहीं हुई थी तब से लोग ऐसे ही ठीक होते आए थे।मिसराइन आजी जड़ी बूटियों का चलता-फिरता एनसाइक्लोपडिया थीं ।


   गांव में इस तरह के लोग अक्सर मिल जाया करते थे।  गांव के ही शिवराम मुराव किसी भी तरह की टूटी हड्डी को बिना प्लास्टर खींच -खांच के सेट कर देते थे और हां मजाल कि कोई उन्हें पैसा दे दे । न बाबा न । गुरूजी सिखा गए थे कि किसी से पैसा मत लेना सो गरीबी में गुजर-बसर कर लिया लेकिन पैसा नहीं लिया ।

 

     मिसिराइन आजी के सामने गांव की चौथी और पांचवीं पीढ़ी धीरे धीरे बड़ी हो रही थी लेकिन क्या छोटा, क्या बड़ा सब उन्हें 'मिसिराइन आजी' ही कहते थे । याददाश्त इतनी तगड़ी कि किसकी शादी कब कहां से हुई क्या- क्या हुआ सब ज़बान पर रटा पड़ा था. किसकी रिश्तेदारी कहां है? कौन खानदानी है  कौन बहेल्ला ? सब पता था । 

सैकड़ों सोहर और भजन मुंह जबानी  याद थे । पढ़ी लिखी तो थी नहीं लेकिन कढ़ी जरूर थीं ।


    मांगलिक कार्यक्रमों में पुरवाने वाले थक जाते थे लेकिन मजाल था कि मिसिराइन आजी थक जाएं । 

उनकी चार बेटियों की शादी चारों दिशाओं के हिसाब से हुई थी 

ब्रह्मा देई उत्तर तो सावित्री दक्षिण में थीं , मोहर कली पूरब तो सुबरन पश्चिम में थीं लेकिन उनकी कला तक कोई भी नहीं पहुंच पाया था ।


  शाम को ओसार के नीचे बैठ के नन्ही लाल चुन्नी व भेड़िया की कहानी ,राजा शिवि, ऋषि दधीचि और हरिचंद नरेश की कहानी , राजा भगीरथ, विक्रमाजीत की कहानी सुन के न जाने कितनी पीढ़ी बड़ी हुई थी।


 पति और बड़े बेटे के जाने के बाद 

गया-जगन्नाथ-बदरीनाथ सब कर आई थीं . उनका चारों धाम का यात्रा वृतांत सांकृत्यायन जी को भी फेल करता था ।

  

     मिसिराइन आजी की कई पीढ़ियाँ कृतज्ञ रहीं । मजाल कि आस-पास का कोई बिना खाए सो जाय । बकौल बृजराज पांड़े "आजी ने ही उन्हे जिंदा बचा के रखा था  । घर में कभी -कभी ऐसी भी नौबत आती थी कि चूल्हा नहीं जलता था लेकिन आजी ने भूखे नहीं सोने दिया" । 

   बीरे और जय कुमार के लिए मिसराइन आजी मां -बाप सब कुछ थीं ।


    मिसिराइन आजी की रावटी में दसियों मटकी- कूड़ों में अलग अलग तरह के न जाने कितने बीज होते थे आज के जमाने के अच्छे अच्छे जीन बैंक उसके आगे फेल थे । 

 

'हे लल्ला ई बिया बोवै का है '

कद्दू का बीज और लौकी का बीज छोटे छोटे बच्चों से बुवाई करवा कर गृह वाटिका की मानो ट्रेनिंग दे देती थी उनकी लौकी और कद्दू कुछ ही दिनों में झखरा से चढ़ कर छप्पर पर छा जाती थी और फिर बड़े बड़े फल , क्या कहने..


नखत वितान  भोरहरी उठ कर जांता में कई सेर आटा पीसने के बाद मिसराइन आजी का भजन जब गूंजता था तो ऐसा लगता था कि भोर की किरण राग भैरवी सुना रही हो 

जब तक हम लोग नित्य क्रिया से निवृत होकर आते थे तब तक आजी *बासी* गरम कर हम लोगो के लिए तैयार रखती थीं ।

 दिन भर की थकान के बाद रात में मिसिराइन आजी का भजन गूंजता था ..


अबकी राख लेव भगवान

तरे पारधी बान साधे

ऊपर उड़त सचान 

अबकी राख लेव भगवान ...


   तो पूरा टोला उस भजन में लीन हो जाता था। उनके भजन में वो मधुरता थी कि इतने दिनों बाद भी कभी- कभी ऐसा लगता है कि कहीं  दूsssर  से


मिसिराइन आजी कोई भजन गा रही हों..


...जतन बताए जायो कैसे दिन बितिहैं?

   यहि पार गंगा वहि पार जमुना 

बिचवा मा मड़ैया छवाए जायो 


कैसे दिन बितिहैं ?

जतन बताए जायो ! ...


माया महा ठगिनी हम जानी 

निरगुन फांस लिए कर बैठी 

बोले मधुरी बानी 

ये सब अकथ कहानी

माया महा ...


(Gauhanna.com से, शेष अगले अंक में .. )

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