Saturday, February 13, 2021

कुशहर मास्टर

 कुशहर मास्टर-

कहते हैं शिक्षा का प्रकाश जहां जहां जाता है वहां पीढ़ियों से चल रहा अंधकार ख़तम हो जाता है । वकील साहब लखनऊ यूनिवर्सिटी से पढ़ कर गांव आए थे घर के इकलौती संतान थे सो उनकी पढ़ाई लिखाई में कोई कोर कसर मिसिर दादा ने नहीं छोड़ी थी । ये अलग बात थी कि उनको यूनिवर्सिटी में राजनीति का चस्का कुछ ज्यादा ही लग गया था । ये चस्का परधानी के इलेक्शन में चमका और सबसे कम उमर के परधान यानि गौहन्ना गांव के मुखिया वकील साहब बन गए ।
पढ़े लिखे होने से नजरिया भी बदल जाता है अस्तु गांव की अशिक्षा दूर करने का विचार तेजी से आगे बढ़ा । एक स्कूल खोलने की योजना बनी । भुखल लोध, डाक्टर मौर्या , नेगपाल, कुशहर लोहार, कृष्णा बढ़ई , श्री चंद्र लाला सब इकठ्ठा हुए और स्कूल खोलने की योजना बनी । स्थान के लिए सबसे पिछड़े एरिया डेहवा को चुना गया।
मिसिर दादा ने मूंजा सरपत, झखरा, थूनी , थामरा सब कुछ दिया । गांव वालों के श्रमदान से गौहन्ना का पहला स्कूल देखते देखते खड़ा हो गया । बड़ी हसरत से पूरा गांव स्कूल देखने उमड़ पड़ा । स्कूल के पहले हेडमास्टर बने चन्द्र बहादुर श्रीवास्तव जिन्हे लोग चंद्र बहादुर चाचा कहते थे । उनकी पत्नी सहित दो शिक्षक और बनाए गए नगेसर मास्टर और कुशहर मास्टर । दिन रात मेहनत कर स्कूल को इस टीम ने चमका दिया ।
कुशहर मास्टर पतली कद काठी के लंबे शरीर के सौम्य व्यक्तित्व के धनी थे । ज्यादा पढ़े तो नहीं थे यही कोई आठवीं पास रहें होंगे लेकिन जिन बच्चों को पढ़ा दिया उन्हें सब कुछ मुंह जबानी याद रहता था । बीस तक पहाड़ा , ककहरा ये सब आस पास के किसी भी सरकारी स्कूल से बेहतर गौहन्ना के बच्चों को याद था । कुशहर मास्टर घर घर से बच्चों को बुला बुला कर था यूं कहें पकड़ पकड़ कर स्कूल लाते थे । स्कूल से उनका जुड़ाव इस कदर था कि रात में भी स्कूल का चक्कर मार आते थे । जब स्कूल सरकारी प्राइमरी स्कूल में बदल गया तो भी उन्होंने स्कूल जाना न छोड़ा । पहले तो सरकार की तरफ से नियुक्त अध्यापकों ने इनको स्कूल न आने को कहा सो इनकी तबियत धीरे धीरे बिगड़ने लगी । गांव के बच्चे इनके घर पढ़ने जाने लगे । स्कूल में छात्र संख्या भी घटने लगी। सरकारी मास्टर साहबान समझ गए कि स्कूल में इनकी आत्मा बसती है और बच्चों के लिए मास्टर साहब का मतलब कुशहर मास्टर ही था इसलिए सब ने मिल कर तय किया की अपनी तनख़ाह से कुछ रुपए हर महीने कुशहर मास्टर को दे के इन्हे यहीं स्कूल में अनौपचारिक रूप से रहने दिया जाय । इस तरह कुशहर मास्टर स्कूल में फिर से आने लगे और स्कूल की रौनक वापस लौट आई ।
वैसे भी छप्पर में शुरू हुए गांव के स्कूल की तनख़ाह मुश्किल से दस बीस रुपए महीना थी । बात दस बीस रुपए की नहीं थी गांव के विकास की थी अतएव किसी ने वेतन नहीं देखा बस ये देखा कि गांव शिक्षित कैसे हो . वकील साहब की मुहिम में सारे अध्यापक दिल से जुड़े थे । कुशहर मास्टर की तो आत्मा ही स्कूल में बसती थी । वकील साहब कभी कभी वेतन नहीं दे पाते थे लेकिन कुशहर मास्टर कभी शिकायत नहीं करते थे । उनके दो बेटे थे और दोनों फैजाबाद शहर में प्राइवेट संस्था में नौकरी करते थे । उनके बेटे परशु राम वकील साहब के साथ पढ़े भी थे इसलिए कुशहर मास्टर वकील साहब के अभिभावक की भूमिका में भी रहते थे । स्कूल कैसे चलाना है ये सब चंद बहादुर चाचा को कुशहर मास्टर बताते थे ।
गांव का स्कूल किसी तरह सरकारी हो जाय ये हसरत पूरी होने में लगभग छः साल लग गए । वकील साहब ने लड़ झगड़ के स्कूल को सरकारी में तब्दील करवा दिया । लेकिन अब भी स्कूल छप्पर में ही चल रहा था । वकील साहब भी कहां मानने वाले थे आखिर लखनऊ यूनिवर्सिटी के पढ़े थे । लंबी जद्दो जहद के बाद स्कूल की बिल्डिंग पास हो गई । इस बीच सरकारी हेड मास्टर ने स्कूल की ईंट अपने घर गिरवा कर अपना घर बनवाना शुरू कर दिया । गांव वाले अवाक रह गए जब हेड मास्टर प पर कार्यवाही की नौबत आई तो आनन फानन में ईंट स्कूल तक पहुंची लेकिन फिर भी सीमेंट बालू कम पड़ गई । वकील साहब ने अपने घर की ईंट सीमेंट बालू कुशहर मास्टर के कहने से स्कूल में लगवा दी मिसिर दादा अपने बेटे के इस कृत्य को बेबसी में स्वीकार कर गए । पूरे गांव ने फिर से एकबार श्रमदान कर स्कूल का लिंटर डलवा दिया । इस तरह कुशहर मास्टर के सपनों को स्कूल गौहन्ना बनकर तैयार हो गया और हेड मास्टर सस्पेंड होने से बच गया । कुशहर मास्टर धीरे धीरे उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंच गए थे लेकिन उनकी आत्मा और प्राण में बसा यह स्कूल आज जूनियर हाई स्कूल हो चुका है । कुशहर मास्टर की आत्मा स्वर्ग से जब इसे देखती होगी तो उसे अपार खुशी मिलती होगी ।
(गौहन्ना डॉट कॉम पुस्तक का अंश)

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