Saturday, February 13, 2021

अंगना दलान-

 अंगना दलान-

'झिलमिल सितारों का आंगन होगा
रिमझिम बरसता सावन होगा '
सितारों का आंगन गौहन्ना के गांव में भी हुआ करता था । जहां कुछ पल के लिए पूरा घर सुस्ताता था । गौरैया दाना चुगने आती थी और तुलसी का पौधा सीधे आसमान से आती किरणों से नहाता था । गांव गांव आंगन बनाने की परंपरा सदियों से रही है आज भले ही घर पक्के हो गए हों लेकिन आंगन नहीं तो घर की रौनक नहीं हां शहरों ने आंगन अलबत्ता लगभग लगभग खो दिए हैं ।
गांव में पूरा घर केवल घर नहीं था उसके कई भाग और अनुभाग हुआ करते थे । घर के बाहर का हिस्सा दुआर मुहार कहलाता था । किसी के घर के संस्कार उसके दुआर मुहार की रौनक और साफ सफाई से समझे जा सकते थे । घर में घुसने का पहला दरवाजा शहन दरवाजा कहलाता था । चौखट दरवाजे का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था । चौखट पर मत्था टेकने की कहावत तो सुनी ही होगी । चौखट और दरवाजे से झुक कर प्रवेश की परम्परा घर को मन्दिर की संज्ञा तक स्थापित करते थे ।
घर का सम्मान सबको करना होता था । दरवाजे पर गोबर और गेरू से लिपाई घर घर में होती थी । कुंडा, सांकल या जंजीर आदि दरवाजे के सुरक्षा सरदार होते थे ।बहुत कम ऐसा होता था कि बाहर ताला लगाना पड़े क्योंकि संयुक्त परिवार इतना बड़ा होता था कि उसका कोई न कोई सदस्य घर में रहता ही था ।
चौखट से आगे कदम रखते ही जो कमरा मिलता था उसे दालान कहते थे । प्रायः उसी के बगल एक कमरा चौपार का होता था जहां पुरुष वर्ग सामूहिक चर्चा के लिए इकठ्ठा होते थे । मेहमानों की आवभगत भी उसी कमरे में होती थी ।
दालान में ही अनाज की कोठरी और डेहरी भी हुआ करती थी जिसमे साल भर के अनाज की व्यवस्था पूरी तरह दुरुस्त रहती थी । डेहरी मिट्टी की बनी होती थी ऊपर से भरते थे नीचे के छेद से निकासी की जाती थी।
यही कहीं आस पास एक कमरा बखार का होता था जहां खेत से आया अनाज खासकर गेहूं चना मटर बोरे में भरकर भूसे के अंदर रख दिया जाता था । इस तरह ये अनाज कम ऑक्सीजन के केंद्र में कीड़े मकोड़े से बहुत दिनों तक सुरक्षित रहता था।
चौखट दालान पार करने के बाद घर का सबसे महत्वपूर्ण भाग आंगन होता था जिसे गौहन्ना में अंगना कहते थे।
नरायन दादा सबेरे सबेरे गाते थे
'बहारो गोरी अंगना
होय गवा सबेर ..'
अंगना के तीन तरफ तीन कोठरियों के अलग अलग नाम थे
एक तरफ रसोई होती थी और ज्यादातर उस में ही कुल देवता स्थापित होते थे हर घर का कुल देवता विशिष्ट होता था जिसे आज भी देवतन के नाम से जानते हैं। शादी विवाह, मुंडन , जनेऊ, किसी भी संस्कार या प्रयोजन की सफलता कुल देवता की प्रसन्नता पर निर्भर होती है । रसोई के पकवान , नई फसल आदि सबसे पहले वहीं अर्पित की जाती है । विवाह के समय कोहबर इसी कमरे में बनता है । कोहबर चित्रकला अवध की बेहतरीन लोक कला है जिसे अगर संरक्षण न मिला तो लुप्त हो जाएगी । मधुबनी पेंटिंग से ये कला रत्ती भर कम नहीं है।
रसोई में हर किसी को पैर धुल कर नंगे पैर ही जाना होता था । बिना नहाए कोई खाना नहीं बना सकता था । चूल्हा चौका घर के पवित्र स्थान के रूप में स्थापित होता था ।
जिस संस्कृति में अन्न को ब्रह्म का दर्जा मिला हो वहां चूल्हा चौंका यज्ञ स्थल तो होगा ही । कहते हैं कि दुनिया की सबसे पहली प्रयोग शालाएं रसोई घर ही रहीं होंगी और दुनिया की सबसे पहली वैज्ञानिक महिलाएं ही रही होंगी । पोषण और स्वास्थ्य के जितने प्रयोग यहां हुए वे पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहे।
नई नवेली दुल्हन की कोठरी अलग ही होती थी जिसमे उसका अपना राज्य होता था । पूरब की कोठरी, पछू की कोठरी , दखिन की कोठरी आदि नामों से इन्हे जाना जाता था । दूध गरम करने की जगह को दुध गड़ा कहते थे । अनाज पीसने के लिए बड़े बड़े पत्थर के जांत होते थे । सुबह सुबह उठकर महिलाओं को ये जांत या छोटी चकिया पकड़नी पड़ती थी तब जाकर घर में रोटी की व्यवस्था होती थी। अलग से योग या कसरत करने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता था । आंगन के सिल बट्टे में पिसे मसाले गारंटी के साथ शुद्ध हुआ करते थे। । धान कूटने के लिए पहरुए और ओखली कोने में मौजूद रहते थे ।
पूजा का घर देवतन का स्थान ही हुआ करता था अब तो अलग से भी पूजा का कमरा बनने लगा । किसी किसी घर में दुमहला भी होता था लेकिन होता मिट्टी का ही था । मिट्टी के घर में छत के ऊपर अटारी होती थी ।ये गाना तो सुना ही होगा
'आया आया अटरिया पे कोई चोर'
खैर अब अटारी होती नहीं सो चोर का क्या करना ।
फिर भी उस दौर में दिया यानि दीपक या चिराग रखने के लिए ताखे या डूठी हुआ करती थी । कपड़े टांगने के लिए बांस की अरगनी या लकड़ी की खूंटी पर्याप्त हुआ करती थी । कूड़े , मटके के अनाज छत के ऊपर बनी रावटी में रखे जाते थे । तहखाने या भुइं नशा बड़े बड़े घरों में ही होते थे ।
अवध क्षेत्र के ये घर घर से ज्यादा मन्दिर थे । तब के घर मिट्टी के होने के बावजूद एक अनोखी दुनिया थे जिसमें संपूर्णता थी और अपने पराए सब के लिए दिल खोल के जगह ही जगह थी । चाहे दुआर मुहार हो या अंगना दलान सब की अपनी पहचान और गरिमा थी ।

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