Saturday, February 13, 2021

संहिड़ा-

 संहिड़ा-

अलग अलग क्षेत्रों में इसके नाम अलग अलग हैं लेकिन इसका स्वाद जब बोलता है तो सर चढ़कर बोलता है । एक बार जिसने खा लिया तो ता उम्र इसको ढूंढ़ता फिरता है । हां ये हर जगह नहीं बनता इसीलिए तो ढूंढ़ना ही पड़ता है । गौहन्ना में इसे संहिड़ा कहते हैं अवध क्षेत्र में कहीं कहीं इसे पतोड़ भी कहते हैं क्योंकि ये घुइया यानि अरवी के पत्तों से बनाया जाता है ।
घुइया के नरम पत्तों को एक के ऊपर एक किसी सीरीज की तरह जमाया जाता है इन पत्तों के बीच में रात भर की भीगी हुई उड़द की सफेद दाल का पेस्ट लगा कर उन्हें चिपकाया जाता है । इस दाल के पेस्ट में नमक , मसाला, हींग आदि डाल कर स्वादिष्ट बना दिया जाता है । इन पत्तों को अब रोल कर चार चार अंगुल दूर से काट दिया जाता है । अब ये किसी गोल परतदार प्याज की तरह हो जाता है । ऊपर से भी उड़द की दाल का वहीं पेस्ट लगाकर राई या सरसों के तेल में तल लिया जाता है । तलने के बाद आखिरी प्रक्रिया में खाली कड़ाही में हल्की आंच पर भाप से पकाया जाता है ये भाप उसी तले हुए संहिड़ा की ही होती है अलग से पानी नहीं डालना होता ।
सोंधा पन लिए हुए संहिड़ा को ताजा ताजा इमली या आम की चटनी के साथ खाने का मजा ही कुछ और है ।
इस व्यंजन को कई दिनों तक रखा जा सकता है बासी संहिड़ा को तवे पर गरम कर खाने का भी रिवाज है ।
अवध के इन व्यंजनों में संहिड़ा के साथ बनने वाले रिकवछ को भी उड़द की भीगी दाल से बनाते हैं । दाल की अंगूठे के आकार की पिठी को तेल में तल कर उड़द की ही भुनी और छौंकी कढ़ी में डाल दिया जाता है ।
बेसन के आटे से बनने वाली फुलौरी का नाम तो सुना ही होगा । पकौड़ी से मिलते जुलते इस व्यंजन में केवल बेसन के आटे को राई या सरसों के तेल में मात्र नमक जीरा मिला कर तल लिया जाता है फिर इसे कढ़ी ने डालकर या पना बना कर खाया जाता है ।
पना चावल के आटे को भूनकर गुड़ का रस या घोल मिलाकर धीमी आंच पर घोटकर बनाया जाता है जब घोल गाढ़ा हो जाता है तो इसमें नमक व इमली की या आम की खटाई मिला दी जाती है । पना में रात भर फुलौरी को डाल कर और भी स्वादिष्ट बना दिया जाता है । पना का ये खट्टा मीठा स्वाद आपको किसी कुकरी बुक या वेबसाइट पर शायद ही नसीब हो किन्तु अवध के गांव में ये जरूर मिलेगा । फुलौरी की लोकप्रियता इतनी थी कि इस पर एक लोकगीत बहुत दिनों तक लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा -
'कैसे बनी हो रामा
कैसे बनी ?
फुलौरी बिना चटनी
कैसे बनी ?'
व्यंजन जब ज़बान से आगे आनंद की अभिव्यक्ति बन जाएं तो ये समझ लेना चाहिए कि वह लोक सुख का आधार भी है । जिसे गौहन्ना वाले आज भी खाकर अपने हर ग़म को भूल जाते हैं ।
(गौहन्ना डॉट कॉम पुस्तक का अंश)

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