Saturday, February 13, 2021

मुल्ला पाड़े

 मुल्ला पाड़े

है न सुनने में कुछ अजीब सा लेकिन ये सच है जब गौहन्ना गांव की अदब की संस्कृति में कुछ नई बात तलाशी जाएगी तो इस परम्परा को देख सुन कर लोग चौंक पड़ेंगे क्योंकि शायद ही इस तहजीब व मजाक का सिलसिला कही और चलन में हो ।
दरअसल मुल्ला पाड़े का असली नाम सतीश चंद्र पांडेय था अब गौहन्ना की मजाकिया संस्कृति में एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को मौलाना कह के चिढ़ाती है । बगल मे बड़ागांव मुस्लिम बाहुल्य गांव है और कोई भी हिन्दू अपने को मुसलमान कहलाना क्यों पसंद करेगा सो चिढ़ाने की यह परम्परा चल पड़ी होगी । इसी चलन को जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चल रहा है और आज भी बदस्तूर जारी है उसमें वकील साहब के जिगरी दोस्त सतीश चंद्र पांडेय जो वकील साहब के गांव के रिश्ते में चाचा लगते थे को मुल्ला पाड़े की उपाधि मिल गई । उपाधि वकील साहब ने दी तो वकील साहब को भी पांडेय जी ने मौलवी साहब कहना शुरू कर दिया ।
मुल्ला पाड़े को वकील साहब के तंज पर अपनी पीढ़ी यानि वकील साहब के पिता जी का साथ मिलता था । इतना ही नहीं वकील साहब के बच्चे अपने बाबा की पीढ़ी का साथ देते थे यानि उनके लिए वकील साहब की पीढ़ी मौलाना वाली पीढ़ी थी । कहने का मतलब हर अगली पीढ़ी तुरन्त पहले वाली पीढ़ी के लिए चिढ़ाने व मजाक का सिलसिला जारी रखती थी ।
"का हो उस्मानी नमाज पढ़ आयो का"?
-- बाल जी ने पवन बढ़ई को चिढ़ाया
पवन बढ़ई भला क्यों पीछे रहते उन्होंने भी पलट वार किया
"तोहार रोज़ा खुला कि नाही
न खोले होव तो बड़े गांव चले जाव
सेंवई खाय का मिल जाए".
इस तरह के संवाद गौहन्ना के रोजमर्रा की आदतों में है ।
ये सिलसिला कब से शुरू हुआ होगा कहना मुश्किल है लेकिन मजहब परिवर्तन से इसको जोड़ कर देखा जा सकता है जब कुछ हिन्दुओं ने आक्रांताओं से डर कर या लालच में मुस्लिम धर्म अपना लिया होगा तो उन्हें सामाजिक पद क्रम सोपान में नीचे रख दिया गया होगा । यह बात इससे भी समझी जा सकती है कि मुस्लिम समुदाय के लिए हिन्दुओं के घरों में वहां बर्तन अलग ही होते थे जो प्रायः कांच आदि के होते थे जैसे कांच का गिलास या चीनी मिट्टी की प्लेट ।
ऐसा नहीं है कि गौहन्ना गांव में मुसलमान बिरादरी नहीं थी । दर्जी टोला मुसलमानों का ही था जिनको हर हिन्दू हर फसल पर तिहाई के रूप में मेहनताना देता था । बड़े अदब और सम्मान से अब्दुल बाबा मतलब अब्दुल दर्जी को पूरा गांव बाबा बुलाता था ।
पीढ़ी अंतराल वाले इस मजाकिया सिलसिले को जब तक समाज शास्त्री अपने नजरिए से समझे तब तक पुख्ता रूप से बस इतना समझिए कि इस परम्परा को गौहन्ना और आस पास के गांव जाने अनजाने आज भी निभा रहे हैं और उनके रोजमर्रा के जीवन में ये चुहल बाजी रिश्तों में मिठास घोलती रहती है। बताते चलें कि सतीश चंद्र पांडेय उर्फ मुल्ला पाड़े अंत समय तक वकील साहब यानि राम तेज मिश्रा से दोस्ती निभाते रहे उनके जाने के बाद वकील साहब अकेले पड़ गए । सब कुछ होते हुए भी मुल्ला पाड़े के जाने का सूनापन वकील साहब जिन्हे मुल्ला पाड़े मौलवी साहब कहते थे कोई दूसरा न भर सका , उनकी जिंदगी में कोई दूसरा मुल्ला पाड़े दोबारा न मिला ।
(गौहन्ना डॉट कॉम पुस्तक का अंश)

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